गुजरात में चक्रवात बिपरजॉय तबाही मचाकर निकल चुका है. तूफान इतना भयावह था कि इसके चलते दो लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी और राज्य की करोड़ो की संपत्ति नष्ट हो गई. तूफान के बीच द्वारकाधीश मंदिर में एक साथ दो ध्वज फहराएं गए, जिसका बहुत से लोगों ने ध्यान खींचा. श्रध्दालुओं ने दावा किया कि ऐसा चक्रवात से आई आपदा को दूर करने के लिए किया गया , वहीं वैज्ञानिकों का कहना था कि मंदिर में ऐसा होता रहता है. ऐसे में सोशल मीडिया पर धर्म और विज्ञान के बीच लड़ाई छिड़ गई है. लेकिन इस विश्वास और विज्ञान की लड़ाई का सच क्या है, चलिए आपको बताते हैं.
क्या है सच ?
दावा किया जा रहा था कि बिपरजॉय तूफान की आपदा को दूर करने के लिए मंदिर के शिखर पर दो झंडे फहराए गए है, जबकि ऐसा बिलुकल नहीं था. पुजारियों ने बताया कि बिपरजॉय तूफान के कारण मंदिर के शिखर पर ध्वजारोहण नहीं हो पा रहा था, ऐसे में जो पुराना ध्वज लगा था, उसी के नीचे नया ध्वज फहराया गया. इसका बिपरजॉय तूफान के साथ कोई संबंध नहीं हैं. साथ ही पुजारियों ने यह भी कहा कि ये घटना इतिहास में पहले भी कई बार हो चुकी है, जब एक साथ दो ध्वज फहराएं गए हैं.
मंदिर में प्रतिदन फहराएं जाते है पांच ध्वज
भगवान द्वारकाधीश का मंदिर भारत के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है. यहां रोजाना शिखर पर 5 बार ध्वज फहराए जाते हैं. सोमवार को भी ध्वज फहराया गया, उसके बाद शाम को पुराने ध्वज के नीचे ही नया ध्वज फहरा दिया गया. इसके बाद चर्चाएं शुरू हो गई कि तूफान से बचने के लिए दो झंडे फहराएं गए है जो सोशल मीडिया पर वायरल हो गई. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि तूफान के कारण नया झंडा फहराना खतरे से खाली नहीं था. तूफान के कारण तेज हवाएं चल रही थी, जिसके चलते ऊपर चढ़ना खतरनाक साबित होता, इसलिए नए ध्वज को पुराने के नीचे फहराया गया.
पहले भी फहराएं जा चुके है दो ध्वज
ऐसा पहली बार नहीं हुआ था , जब जगत मंदिर में एक साथ दो ध्वज फहराएं गए हो. आपको बता दें कि ऐसा पहले भी कई बार हो चुका है. जब अतिवृष्टि के कारण गुजरात के मोरबी में डैम बह गया था, तब भी मंदिर में दो ध्वज फहराएं गए थे. इसके बाद साल 2021 में भी एक तूफान आया था जिसके पहले भी मंदिर में दो ध्वज फहराएं गए थे. ये ध्वज रक्षा ध्वज कहा जाता है. श्रध्दालु मानते है कि यह ध्वज आपदाओं से मंदिर और शहर की रक्षा करता है. इसलिए बिपरजॉय तूफान के बाद दो ध्वज फहराने की घटना को इस मान्यता के साथ जोड़ा गया. हालांकि श्रध्दालुओं के विश्वास को भी गलत नहीं माना जा सकता है क्योंकि गुजरात से टकराने के बाद तूफान की रफ्तार धीमी पड़ गई थी.