राहुल गांधी की संसद सदस्यता शुक्रवार को रद्द कर दी गई है। वे केरल के वायनाड से लोकसभा सदस्य थे। लोकसभा सचिवालय से इस संबंध में शुक्रवार को अधिसूचना जारी की है। मानहानि केस में सूरत की कोर्ट ने एक दिन पूर्व ही गुरुवार को उन्हें दो साल की सजा सुनाई थी। बता दें राहुल ने लोकसभा चुनाव 2019 के दौरान कर्नाटक की सभा में मोदी सरनेम को लेकर बयान दिया था। उन्होंने कहा था सभी चोरों का सरनेम मोदी ही क्यों होता है, इसी मामले में सूरत की कोर्ट ने राहुल का सजा सुनाई थी। बता दें सुप्रीम कोर्ट ने साल 2013 में यह फैसला दिया था कि अगर कोई जन प्रतिनिधि विधायक , सांसद को दो साल या उससे ज्यादा की सजा दी जाती है तो उनकी सदस्यता रद्द कर दी जाएगी। इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने तब भी कहा था कि सजा के खिलाफ प्रतिनिधि ऊपरी अदालत में अपील करते हैं तो यह नियम लागू नहीं होगा।
लोकसभा सचिवालय ने जारी की अधिसूचना
लोकसभा सचिवालय ने राहुल गांधी की सदस्यता खत्म करने का लेटर जारी किया है। अधिसूचना में कहा गया है कि उन्हें यानी राहुल गांधी संविधान के अनुच्छेद 102.1 और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत राहुल गांधी को अयोग्य घोषित किया गया है।
क्यों गई राहुल गांधी की सदस्यता
बता दें 2019 लोकसभा चुनाव से पहले कर्नाटक के कोलार में एक रैली के दौरान राहुल गांधी ने कहा था। चोरों का सरनेम मोदी है। सभी चोरों का सरनेम मोदी क्यों होता है। चाहे वह ललित मोदी हो या नीरव मोदी हो चाहे नरेंद्र मोदी।। इसके बाद बीजेपी विधायक पूर्णेश मोदी ने राहुल के खिलाफ मानहानि का केस किया था। पूर्णेश का कहना था कि राहुल ने उनके पूरे समाज को चोर बोला है। यह पूरे समाज की मानहानि है। केस की सुनवाई के समय राहुल गांधी 3 बार कोर्ट में पेश भी हुए थे। आखिरी बार अक्टूबर 2021 की पेशी के दौरान उन्होंने खुद को निर्दोष बताया था। वकील के मुताबिक राहुल ने कहा कि बयान देते वक्त उनकी मंशा किसी भी प्रकार से गलत नहीं थी। उन्होंने तो भ्रष्टाचार के खिलाफ सभा में आवाज उठाई थी।। लेकिन सूरत कोर्ट ने एक दिन पहले गुरुवार को दोषी करार देते हुए राहुल को 2 साज की सजा सुनाई थी। वहीं कुछ देर बाद उसी कोर्ट से राहुल को 30 दिन के लिए जमानत भी मिल चुकी थी।
काश फाड़ी न होती अध्यादेश की कापी
राहुल गांधी ने दस साल पहले मनमोहन सरकार की ओर से लाए गए अध्यादेश को न फाड़ा होता तो उनकी सदस्यता पर किसी भी तरह का संकट नहीं होता। बता दें जनप्रतिनिधि कानून के अनुसार अगर सांसद , विधायक को किसी मामले में दो साल से अधिक की सजा सुनाई जाती है तो उनकी सदस्यता भी रद्द हो जाएगी। इतना ही नहीं सजा की अवधि पूरी करने के बाद छह साल तक चुनाव भी नहीं लड़ पाएंगे। बता दें साल 2013 के सितंबर महीने में यूपीए सरकार ने एक अध्यादेश पारित किया था। इसका मकसद उसी साल जुलाई महीने में सुप्रीम कोर्ट की ओर से पारित एक आदेश को निष्क्रिय किया जाना था। तब अदालत ने कहा था कि दोषी पाए जाने पर सांसद विधायक की सदस्यता रद्द कर दी। कांग्रेस द्वारा इस अध्यादेश को लाए जाने पर बीजेपी। लेफ्ट समेत कई विपक्षी पार्टियों ने कांग्रेस पर जमकर हमला करना शुरू कर दिया। तत्कालीन मनमोहन सरकार पर ये आरोप लग रहे थे कि सरकार भ्रष्टाचारियों को बढ़ावा देना चाह रही है। जिसके चलते अध्यादेश लाया गया।
राहुल गांधी ने तब अध्यादेश को बताया था नानसेंस
राहुल गांधी ने तब प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा था कि हमें राजनीतिक कारणों की वजह से इसे अध्यादेश लाने की जरूरत है। हर कोई यही करता है। कांग्रेस बीजेपी जनता दल सभी यही करते हैं। लेकिन ये सब अब बंद होना चाहिए। हम इस देश में भ्रष्टाचार से लड़ना चाहते हैं, तो सभी को ऐसे छोटे समझौते बंद करना होंगे। कांग्रेस जो कर रही है उसमें उनकी दिलचस्पी है। हमारी सरकार जो कर रही है। उसमें उनकी दिलचस्पी है और उन्हें व्यक्तिगत रूप से लगता है कि इस अध्यादेश के संबंध में कांग्रेस सरकार ने जो किया है वो गलत है।
ऐसी दशा में यूपीए सरकार ने वापस लिया था अध्यादेश
तब कांग्रेस की ओर से ये प्रेस कॉन्फ्रेंस की गई थी उस समय तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह अमेरिका में थे। ऐसे में राहुल गांधी ने मनमोहन सिंह को चिट्ठी लिखी थी। जिसमें अपनी बात रखी थी। इसके बाद तत्कालीन यूपीए सरकार ने अध्यादेश वापस ले लिया था।