देश में 48 साल पहले आज ही के दिन 25 जून 1975 को आपातकाल लागू किया गया था। वह आज का ही दिन था जब तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी ने अपनी सत्ता की खातिर देश को आपातकाल की आग में झोक दिया था। आज की तारीख 25 जून को भारत के इतिहास में दर्ज है, जिसे कभी भुलाया नहीं सकेगा। देषवासियों के सभी नागरिक अधिकार खत्म कर दिए गए थे। वह आज का ही दिन था जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने संविधान के आर्टिकल 352 के आधार पर आपात काल लगाने वाले आदेश पर तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद से हस्ताक्षर कराए थे। इसकी भनक उस समय की कैबिनेट तक को नहीं दी थी। रात 12 बजे राष्ट्रपति से गुपचुप ढंग से हस्ताक्षर कराकर 26 जून 1975 को सुबह सुबह आकाशवाणी पर इंदिरा गांधी ने इसका ऐलान कर दिया कि देश में आपातकाल लागू कर दिया गया है। जिसके समर्थन में तर्क दिया गया कि देश की सुरक्षा को खतरा है। इसके चलते इमरजेंसी लागू की गई है। यह इमरजेंसी पूरे 21 महीने लागू रही।
- 25 जून 1975 को लागू किया गया था आपातकाल
- 26 जून की सुबह इंदिरा गांधी ने किया था ऐलान
- देश में 21 महीने लागू रहा आपातकाल
- देश की सुरक्षा का तर्क देकर लगाया था आपातकाल
- जेल में ठूंस दिए गए थे 1 लाख से ज्यादा राजनीतिक विरोधी
21 महीने में जो कुछ देश में घटित हुआ वह इतिहास में दर्ज हो गया। भारत में ऐतिहासिक आंतरिक आपातकाल के आज 25 जून को 48 साल पूरे चुके हैं। 21 महीने के आपातकाल में 1 लाख से ज्यादा राजनीतिक विरोधी जेल में बंद किये गये थे। इतना नहीं आपातकाल के उस दौर में आमजन के जीने के अधिकार छीन लिए गए थे। राजनीतिक विरोधियों पर आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था अधिनियम जिसे मीसा कहा गया उसके तहत कार्रवाई की जाती थी। मीसा कानून ऐसा था जिसके आरोपियों की सुनवाई तो अदालत भी नहीं करती थी। हम आपको उन पांच प्रमुख लोगों के बारे में बताते हैं जो आपातकाल को देश में लागू करने में प्रमुख भूमिका में थे। आपातकाल लागू करने में देश के 5 नेताओं की भूमिका अहम थी। जिस पर बाद में सवाल भी खडे़ हुए थे। आपातकाल के 48 साल पूरे होने पर इन्हीं पांच नेताओं के बारे में जानते हैं
इंदिरा गांधी की सांसदी को था खतरा
पहला नाम तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी का ही लिया जाएगा। साल 1971 में रायबरेली के लोकसभा चुनाव में इंदिरा ने जीत जो हासिल की थी। तय समय से पहले कराए गए लोकसभा के इस चुनाव में उस वक्त कांग्रेस को देशभर में जबरदस्त जीत मिली। हालांकि राजनरायण ने इंदिरा गांधी के सांसद होने के खिलाफ अदालत में चुनौती दी थी। उस समय राजनारायण ने इंदिरा गांधी पर चुनाव जीतने के लिए सरकारी मशीनरी और संसाधनों का दुरुपयोग करने का आरोप लगाया था। इसलिए इंदिरा का चुनाव निरस्त करने की मांग की गई थी।साल 1975 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय में जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा की बेंच को राजनारायण के आरोप को सही लगे। उन्होंने इंदिरा गांधी की सदस्यता रद्द कर दी थी। लेहिन इससे बुरी तरह बौखलाई इंदिरा गांधी ने आनन.फानन में आंतरिक आपातकाल लागू कर दिया। आपातकाल की घोषणा भी स्वयं इंदिरा गांधी ने ही आकाषवाणी से की थी।
बिना विचार किये फखरुद्दीन अली अहमद ने किये थे हस्ताक्षर
फखरुद्दीन अली अहमद की भी आपातकाल लगाए जाने में अहम भूमिका थी। साल 1974 में इंदिरा गांधी ने फखरुद्दीन अली अहमद को राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाया था। जबकि बड़े दावेदार गोपाल स्वरूप पाठक थे, लेकिन उनकी अनदेखी कर ये फैसला लिया गया। राष्ट्रपति बनने के एक साल बाद ही अहमद ने राश्ट्र्पति के रुप में आपालकाल के प्रस्ताव पर हस्ताक्षर कर इंदिरा गांधी का यह कर्ज उतार दिया था।
1975 के दिन इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगाने का प्रस्ताव राष्ट्रपति के पास लेकर गई थीं जिस पर अहमद ने बगैर विचार किए सहमति दे दी।
संजय गांधी के हाथों की कठपुतली था प्रशासन
इसमें सबसे अहम नाम है संजय गांधी का। संजय गांधी ने ही आपातकाल लगाने को लेकर अपनी मां तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी को राजी किया था। संजय गांधी तब कांग्रेस के युवा संगठन में थे। इलाहाबाद उच्च न्यायालय से इंदिरा गांधी की सदस्यता खारिज करने के बाद संजय गांधी ने उनसे पीएम कुर्सी न छोड़ने की अपील की थी। दरअसल उस वक्त तर्क दिया गया था कि अगर किसी दूसरे व्यक्ति को पीएम की कुर्सी दी गई तो वे तख्तापलट भी कर सकते हैं। आपातकाल की घोषणा के बाद संजय के हाथों में प्रशासन की पूरी कमान आ गई थी। इतना ही नहीं संजय गांधी पर राजनीतिक विरोधियों को कुचलने के साथ ही जबरिया नसबंदी अभियान चलाने का भी आरोप लगाया गया।
सिद्धार्थ शंकर रे ने दिया था सुझाव
सिद्धार्थ शंकर रे ये वो व्यक्ति हैं जिनके सुझावप र आपातकाल लागू किया गया। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी देशबंधु चित्तरंजन दास के पोते और प.बंगाल के सीएम सिद्धार्थ शंकर रे की बड़ी भूमिका थी। वह रे ही थे जिन्होंने इंदिरा गांधी को आपातकाल लगाने की सलाह दी थी। इसका प्रस्ताव तैयार करने से लेकर वरिष्ठ नेताओं को मनाने तक का काम रे के कंधे पर था। साल 2009 में बीबीसी को दिए साक्षात्कार में रे उस वक्त भी आपातकाल को सही भी ठहराया था। रे कानूनविद् तो थे ही साथ अच्छे वक्ता भी थे। बंगाल की राजनीति से निकलकर जल्द ही वे केंद्र में सक्रिय हो गए। बांग्लादेश युद्ध के दौरान भी रे मीडिएटर की भूमिका में थे। इतना ही नहीं बांग्लादेश मुक्ति सेना और भारत सरकार के बीच समन्वय का काम करते थे। इंदिरा गांधी की नजदीकी का लाभ भी उन्हें मिला और वे बंगाल के मुख्यमंत्री भी बनाए गए थे। इतना ही नहीं 1977 में इंदिरा गांधी की चुनावी हार के बाद रे ने भी सक्रिय राजनीति से संयास ले लिया था। हालांकि साल 1986 में रे को पंजाब का राज्यपाल बनाया गया था। इसके बाद नरसिम्हा राव सरकार के कार्यकाल में रे अमेरिका में राजदूत भी रहे। एक नाम और है बंसीलाल का। हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री और संजय गांधी के करीबी रहे बंसीलाल की गिनती उन लोगों में होती है जिनकी वजह से देष में आपातकाल लागू किया गया। इंदिरा गांधी के चचेरे भाई और गुजरात के राज्यपाल रह चुके बीके नेहरू ने भी अपनी आत्मकथा नाइस गाइज़ फ़िनिश सेकेंड में इस बात का उल्लेख किया है। बीके नेहरु लिखते हैं वे आपातकाल लगने से पहले बंसीलाल से मिले थे। उन्हें राष्ट्रपति शासन के बारे में बताया तो वे हरियाणवी लहजे में बोले अरे नेहरू साहब। ये सब इलेक्शन.फिलेक्शन का झगड़ा खत्म करिए। वे तो कहते हैं बहनजी को प्रेसिडेंट फॉर लाइफ बना दीजिए। इतना ही नहीं बंसीलाल के ही सुझाव पर राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की गई। उन्हें इसका कभी मलाल भी नहीं रहा। बंसीलाल के कहने पर ही गुड़गांव जो अब गुरुग्राम है उसके 200 मुसलमानों का प्रशासन की ओर से जबरिया नसबंदी कराई। वहीं 1978 में अदालत में सुनवाई के दौरान भिवानी के एक उपायुक्त राम सहाय वर्मा की ओर से कहा गया था कि हरियाणा के सभी अधिकारी बंसीलाल के चमचे के रूप में काम करने के लिए विवष थे। बंषीलाल को इनाम भी मिला। साल 1968 में हरियाणा के सीएम बनाए गए। तो कुछ साल बाद उन्होंने संजय गांधी को मारुति प्रोजेक्ट के लिए राज्य में जमीन दिलाने का काम किया। इतना ही नहीं आपातकाल के दौरान उन्हें रक्षा मंत्री बनाया गया था।