सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार 15 फरवरी को एक ऐतिहासिक निर्णय में चुनावी बांड योजना को असंवैधानिक घोषित कर दिया है। दरअसल राजनीतिक दलों को योगदान देने के लिए 2018 में चुनावी बांड योजना शुरु की गई थी। इसे नागरिकों के सूचना के अधिकार का उल्लंघन करने और बड़ी कंपनियों और व्यक्तिगत योगदानकर्ताओं के साथ समान व्यवहार करने के लिए असंवैधानिक घोषित किया।
- चुनावी बांड को किया असंवैधानिक घोषित
- सुप्रीम कोर्ट में सरकार को लगा झटका
- चुनावी बॉन्ड स्कीम को सुप्रीम कोर्ट ने किया रद्द
- चुनावी बाॅन्ड को सुप्रीम कोर्ट ने दिया असंवैधानिक करार
- सरकार को किसी अन्य विकल्प पर विचार करने के निर्देश
- इलेक्टोरल बॉन्ड योजना की सुप्रीम कोर्ट ने की आलोचना
- सभी को मिले राजनीतिक पार्टियों को मिल रही फंडिंग की जानकारी
- इलेक्टोरल बॉन्ड सूचना अधिकार का उल्लंघन
सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसले में चुनावी बांड को असंवैधानिक करार देते हुए इसे रद्द कर राजनीतिक दलों को बड़ा झटका दिया है। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ की ओर से यह फैसला सुनाया गया है। इस फैसले से राजनीतिक फंडिंग की एक विवादास्पद पद्धति का भी समापन हो गया, यहा दरअसल शुरुआत से ही जांच के दायरे में रही है। भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ के साथ न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, बी आर गवई, जे बी पारदीवाला और मनोज मिश्रा की संवैधानिक पीठ ने इस योजना के गैर प्रकटीकरण प्रावधान और संविधान के अनुच्छेद 19 ए और अनुच्छेद 14 के तहत आरटीआई का उल्लंघन करने के लिए असंवैधानिक घोषित कर दिया है।
बांड योजना काले धन पर रोक लगाने एकमात्र तरीका नहीं
शीर्ष अदालत की ओर से कहा गया है कि राजनीतिक पार्टियों को वित्तीय सहायता से परस्पर लाभ के इंतजाम हो सकते हैं और चुनावी बांड योजना काले धन पर रोक लगाने या अंकुश लगाने का महज एकमात्र तरीका नहीं है। कोर्ट ने कहा कि योजना में सूचना के अधिकार का उल्लंघन हो रहा था जो उचित नहीं है।
चुनावी बांड ने किया आरटीआई का उल्लंघन किया
ऐसे में सर्वसम्मत फैसले में संवैधानिक पीठ ने भारतीय स्टेट बैंक को यह बांड जारी करना बंद करने और अगले 3 सप्ताह में चुनाव आयोग को सभी विवरणों का खुलासा करने के निर्देश दिये गये हैं। इसे एक सप्ताह में अपनी वेबसाइट पर भी प्रकाशित करना होगा। कोर्ट ने राजनीतिक दलों को उन बांडों को वापस करने का निर्देश दिया है जो वैधता के पन्द्रह दिन के अंदर हैं और जिन्हें अब तक भुनाया नहीं जा सका है। दरअसल अदालत ने यह भी पाया कि इस योजना ने गैर प्रकटीकरण खंड के लिए नागरिकों को मिले आरटीआई का उल्लंघन किया है। चुनाव फंड जुटाने की इस योजना आरटीआई ने खिलाफ सूचना की गोपनीयता के अधिकार को प्राथमिकता दी थी।
2 जनवरी 2018 को लागू की थी योजना
केंद्र सरकार की ओर से 2 जनवरी 2018 को यह बॉन्ड स्कीम को नोटिफाई किया गया था। स्कीम के प्रावधानों के अनुसार इलेक्टोरल बॉन्ड को कोई भी व्यक्ति अकेले या किसी के साथ समूह में मिलकर भी खरीद सकता है। बाॅन्ड योजना को 2017 में ही कोर्ट में चुनौती दी गई थी। हालांकि सुनवाई 2019 में प्रारंभ हुई।
देश की तीन बड़ी संस्थाओं ने बताया इलेक्टोरल बॉन्ड को गलत
सुप्रीम कोर्ट का कहना है इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए काले धन को कानूनी किया जा सकता है। विदेशी कंपनियां भी सरकार और राजनीति को प्रभावित कर सकती हैं। वहीं चुनाव आयोग ने भी चंदा देने वालों के नाम गुप्त रखने पर ऐतराज जताया था और कहा था कि ऐसा करने से पता लगाना संभव नहीं होगा कि राजनीतिक दल ने धारा 29 बी का उल्लंघन कर चंदा लिया है या नहीं। विदेशी चंदा लेने वाला कानून भी ऐसे में बेकार हो जाएगा। वहीं आरबीआई की ओर से भी कहा गया था कि इलेक्टोरल बॉन्ड से मनी लॉन्डरिंग को बढ़ावा मिलता है। इसके जरिए काले धन को सफैद करना संभव है।