चुनावी चकल्लस : राजस्थान में लोकसभा की इन 18 सीटों पर हावी जाति की राजनीति

Rajasthan Lok Sabha 18 seat

विधानसभा चुनाव सरगर्मी के साथ राजस्थान की हवा में लोकसभा चुनाव की महक भी घुलती नजर आ रही है। इंडिया गठबंधन और एनडीए के घटक दल राज्य की 25 लोकसभा सीटों को लेकर अपनी अपनी बिसात बिछाने में जुटे हैं। राज्य में कांग्रेस और बीजेपी दोनों प्रमुख पार्टियों के शीर्ष नेताओं के दौरे और रैलियां बढ़ गई हैं। इसमें विधानसभा के साथ लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर भी सियासी दलों में मंथन ​शुरु हो गया है। विधानसभा चुनाव के नतीजों का प्रभाव लोकसभा चुनाव पर भी पड़ना तय है। ऐसे में लोकसभा की 25 सीटों का सियासी गणित भी लगाया जाने लगा है।

राजस्थान की 25 लोकसभा सीटों में 7 सीट आरक्षित वर्ग के लिए है। इसके बाद बाकी की 18 सीटों पर किसी भी वर्ग का प्रत्याशी अपनी भाग्य आजमा सकता है। हालांकि इन 18 सीटों में भी वोट बैंक की राजनीति के चलते कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही पार्टियां प्रत्याशियों के चयन में जातिगत समीकरण पर नजर रखती हैं। जातिगत समीकरण के आधार पर ही यहां प्रत्याशियों का चयन किया जाता है। लिहाजा कुछ सीटों को अघोषित रूप से उन जातियों के लिए लगभग आरक्षित मान लिया गया है। यहां जातिगत समीकरण हमेशा बलवान रहे हैं।

चार सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित

राजस्थान में लोकसभा की 25 सीटों में से 4 सीट करौली-धौलपुर, भरतपुर, श्रीगंगानगर और बीकानेर लोकसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। 3 सीट उदयपुर, बांसवाड़ा-डूंगरपुर और दौसा सीट अनुसूचित जनजाति वर्ग के प्रत्याशी के लिए आरक्षित रखी गई है। इसके बाद बाकी की 18 सीटें सामान्य वर्ग के उम्मीदवारों के लिए है। लेकिन यहां हालांकि आरक्षित सीट जैसे ही हैं,क्योंकि इन 18 सीटों में से अधिकांश सीट अघोषित तौर पर बड़ी जातियों के लिए आरक्षित हो गई हैं।

लोकसभा की 18 सीटों पर जातीय समीकरण

नागौर लोकसभा सीट की बात करें तो यह जाट बाहुल्य है। नागौर को देश में जाट राजनीति का केन्द्र माना जाता है। हालात ये हैं कि पिछले 13 चुनावों में यहां जाट समाज के ही प्रत्याशी ने जीत दर्ज की है। यहां से कभी बीजेपी तो कभी कांग्रेस दोनों ही प्रमुख दल जाट प्रत्याशी पर दांव खेलती रही हैं। नागौर सीट पर मिर्धा परिवार का भी आधिपत्य माना जाता रहा है। इसके बाद चूरू और सीकर के साथ झुंझुनूं लोकसभा सीट शेखावाटी वर्ग के लिए हैं। ये तीनों लोकसभा सीटें भी जाट बाहुल्य हैं। लोकसभा की इन तीनों सीटों पर भी जाट समाज के आशीर्वाद से ही चुनाव में प्रत्याशी की जीत होती रही है। जाट समाज के मतदाता जिस तरफ होते हैं वही किला भी फतह करता है। ऐसे में यहां भी अधिकांश समय जाट समाज के प्रत्याशी ही विजयी रहे हैं। लोकसभा की जयपुर ग्रामीण सीट पर जाट और राजपूत के साथ गुर्जर, यादव, मीणा और एससी वर्ग के मतदाताओं का प्रभाव देखा जाता है। यहां बीजेपी ही नहीं कांग्रेस भी जाट या राजपूत समाज के ही प्रत्याशी को मैदान में उतारती रही है। मौजूदा स्थिति में यहां राज्यवर्धन सिंह राठौड़ बीजेपी से सांसद हैं। जोधपुर लोकसभा सीट पर राजपूत के साथ विश्नोई वर्ग का प्रभुाव देखा जाता है। दोनों प्रमुख पार्टियां यहां राजपूत कार्ड खेलती हैं। 2019 के चुनाव में बीजेपी के गजेन्द्र सिंह शेखावत को लोगों ने सांसद चुना था जो फिलहाल मोदी सरकार में मंत्री हैं। बाड़मेर सीट की बात करें तो यहां जाट और राजपूत वर्ग के मतदाताओं का प्रभुत्व देखा जाता है लेकिन यहां दलित और मुस्लिम मतदाता हार-जीत तय करते हैं। हालांकि पिछले कई चुनावों में बीजेपी कांग्रेस दोनों पार्टियां जाट-राजपूत पर ही दांव खेलती रही हैं। यहां से पूर्व विदेश मंत्री जसवंत सिंह भी सांसद रह चुके हैं। 2019 के चुनाव में कर्नल सोनाराम को सांसद चुना गया।

जाति की राजनीति, साल 2000 के बाद से बदले सियासी हालात

राजस्थान में कुछ ऐसी सीटें भी हैं जहां से मिश्रित जातियों का असर देखने को मिलता है। एक दो या फिर तीन जातियों का बोलबाला चुनाव में रहा। सियासी दल इन्हीं जातियों में टिकटों का वितरण करते रहे हैं। सियासी जानकारों का मानना है कि राजस्थान में जाति की राजनीति पिछले दो दशकों में ज्यादा देखने को मिली है। राज्य में जाट-राजपूत जातियों का जहां कुछ सीटों पर आधिपत्य है तो वहीं वैश्य, ब्राह्मण, गुर्जर के साथ मीणा समाज का भी प्रभाव दिखाई देता है। सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित सीटों पर इन जातियों का भी पूरा असर है।

​गुलाबी शहर जयपुर में ब्राह्मण मतदाता

राजस्थान के जयपुर शहर को गुलाबी शहर या पिंक सिटी कहा जाता है। यहां पिछले नौ चुनाव की बात करें तो यहां ब्राह्मण वर्ग का ही बोलबाला रहा। जयपुर में राजपरिवार की पूर्व महारानी गायत्री देवी यहां से सांसद चुनी गई थीं। वहीं गिरधारीलाल भार्गव जैसे बड़े नेता भी लोकसभा में जयपुर का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही पार्टियां यहां ब्राह्मण समाज के प्रत्याशी को टिकट देना पसंद करती हैं। हालांकि 2019 के चुनाव में यहां रामचरण बोहरा ने जीत हासिल की थी।

कोटा सीट पर वैश्य और ब्राह्मण वर्ग का प्रभुत्व

भीलवाडा लोकसभा सीट पर ब्राह्मण वर्ग का बोलबाला है। यहां ब्राह्मण के बाद जाट,गुर्जर और राजपूत समाज के लोग निवास करते हैं। इस सीट पर पिछले चुनाव में कांग्रेस की ओर से गुर्जर को टिकट दिया था। जबकी बीजेपी की ओर से ब्राह्मण समाज पर दांव खेला गया। भीलवाड़ा सीट से कांग्रेस के डॉ.सीपी जोशी भी सांसद रह चुके हैं। कोचिंग हब कोटा लोकसभा सीट पर वैश्य के साथ ब्राह्मण वर्ग का बाहुल्य है। यहां भी दोनों ही प्रमुख पार्टियां कांग्रेस बीजेपी इन्हीं जाति के प्रत्याशियों पर दांव खेला जाता रहा है। वहीं अलवर लोकसभा सीट पर राजपूत, मेव,यादव, ब्राह्मण जातियों का प्रभुत्व है। हालांकि यहां यादव समाज के मतदाताओं का जिस पार्टी की तरफ झुकाव होता है विजयश्री उसी को मिलती है। इसी के चलते अलवर सीट पर यादव वर्ग के प्रत्याशी को मैदान में उतारा जाता है। राजस्थान की टोंक और सवाईमाधोपुर के साथ चित्तौड़गढ़ सीट पर अलग अलग जातियों का प्रभाव देखा जाता है। टोंक और सवाईमाधौपुर में जहां मीणा गुर्जर और मुस्लिम मतदाता असरदार हैं तो वहीं अजमेर लोकसभा सीट पर जाट और गुर्जर मतदाताओं की पकड़ मानी जाती है। चित्तौड़गढ़ सीट पर ब्राह्मण के साथ राजपूत तो जालोर सीट पर राजपूत, माली और कलबी जातियों का असर देखा जाता है। ऐसे में सियासी दलों जाति की राजनीति का असर है कि अब इन सीटों पर बाहुल्य वाली जातियों के अलावा दूसरी जाति के प्रत्याशी को टिकट देने की हिम्मत राजनीति पार्टियों ने नहीं की।

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