मुगल काल में होली का उत्सव एक विशेष महत्त्वपूर्ण और शाही रूप में मनाया जाता था। मुगलों के शासन में होली केवल एक धार्मिक या महज सांस्कृतिक त्योहार नहीं बल्कि एक राजकीय उत्सव बन गया था। इस समय होली के आयोजन में शाही रौनक, भव्यता और समृद्धि का खास असर था। आइए जानते हैं कि मुगल काल में होली कैसे मनाई जाती थी।
शाही दरबार में होली
मुगल सम्राटों के दरबारों में होली का उत्सव अत्यंत भव्य रूप से मनाया जाता था। सम्राट अकबर के समय में होली का आयोजन बहुत बड़े पैमाने पर किया जाता था। अकबर ने होली को एक राजकीय उत्सव बना दिया था। जिसमें शाही दरबार में सभी कर्मचारी और लोग हिस्सा लेते थे। चाहे वे राजदरबारी हों या आम जनता।
होली के दिन, अकबर अपने दरबार में शाही समारोह आयोजित करता था। जिसमें रंगों से खेलने, नृत्य, संगीत और खानपान का आयोजन होता था। अकबर के बारे में यह कहा जाता है कि वह होली के दिन सभी वर्गों के लोगों को आमंत्रित करते थे, और विभिन्न वर्गों के बीच भेदभाव को मिटाते हुए यह दिन सबको समान रूप से एकता और खुशी का अनुभव कराता था।
हर्बल रंगों का उपयोग
मुगलकाल में रंगों का इस्तेमाल बहुत प्रचलित था, और यह सिर्फ साधारण रंगों तक सीमित नहीं था। रंग प्राकृतिक स्रोतों से बनाए जाते थे, जैसे पत्तियां, फूल और फलों से….अकबर के शासनकाल में रंगों का उपयोग भी शाही और भव्य होता था। सुरेख गुलाल और रंगीन जल का प्रयोग होली के दिन किया जाता था, जो महलों और बागों में फैलकर एक अद्वितीय दृश्य उत्पन्न करता था।
बागों में होली
मुगल सम्राटों के समय में शाही बाग और महल के बगीचों में होली मनाना एक आम परंपरा थी। शाही बाग में विशेष रूप से रंगों से खेलने के लिए बड़ी महफिलें आयोजित की जाती थीं। सम्राट अकबर के फतेहपुर सीकरी और सम्राट शाहजहाँ के दिल्ली और आगरा के महल में ऐसे आयोजन होते थे। जिनमें बागों में रंगों की बौछार की जाती थी। यहां हर किसी को रंगों में रंगने का मौका मिलता था। यह सिर्फ शाही परिवार तक सीमित नहीं था, बल्कि दरबारियों और आम नागरिकों के लिए भी खुला रहता था।
नृत्य और संगीत
मुगल दरबारों में होली के अवसर पर नृत्य और संगीत का विशेष महत्व था। मुगलों के दरबार में नृत्यांगनाएं और गायक अपनी कला का प्रदर्शन करते थे। संगीत और नृत्य के साथ होली का उत्सव और भी शानदार बन जाता था…अकबर और शाहजहाँ के समय में इस दिन के उत्सव में कविता पाठ और कला प्रदर्शन भी होते थे। जिससे दरबार की रौनक और बढ़ जाती थी। विशेष तौर पर मीरा बाई और कृष्ण भक्ति के गीतों का गायन होता था, जो होली के उत्सव को और भी धार्मिक और आध्यात्मिक रंग देता था।
शाही दावतें और भोज
मुगल काल में होली के दौरान शाही भोज का आयोजन भी होता था। जिसमें दरबारियों और प्रमुख व्यक्तियों को आमंत्रित किया जाता था। अकबर के समय में होली के दिन विशाल भोज आयोजित किए जाते थे। जिनमें तरह-तरह के व्यंजन और मिष्ठान्न परोसे जाते थे। यह भोज सिर्फ स्वाद के लिए नहीं होते थे, बल्कि एक सामूहिक एकता और शाही मान-सम्मान का प्रतीक होते थे। इस दिन आम जनता को भी विशेष अवसरों पर खुशियों का भागीदार बनाया जाता था और उन्हें भी उत्सव का हिस्सा बनने का मौका मिलता था।
सम्राट के साथ रंगों से खेलना
मुगल सम्राट, खासकर सम्राट अकबर, आम जनता के साथ रंगों से खेलते थे। जो उस समय एक अनोखा दृश्य था। अकबर खुद भी रंगों के साथ खेलते थे और दरबारियों और आम लोगों के साथ मिलकर खुशी मनाते थे। यह सम्राट और जनता के बीच के संबंधों को और भी मज़बूत करता था। अकबर ने अपने दरबार में एक पारिवारिक और समान वातावरण बनाए रखा, जहां राजा और प्रजा एक साथ होली के इस पवित्र और खुशी के दिन का आनंद लेते थे।
महिलाओं का भागीदारी
मुगल दरबारों में महिलाओं की भी होली में विशेष भागीदारी थी। शाहजहाँ और अकबर के समय में महिलाओं को भी शाही उत्सवों में भाग लेने की स्वतंत्रता थी। महिलाएं भी रंगों से खेलती थीं और महलों में रंगीन जल की बौछार होती थी। इस दिन विशेष रूप से महिलाओं के साथ शाही सम्मान के साथ होली खेली जाती थी, जो सामाजिक समानता का प्रतीक था। मुगल काल में होली एक अत्यंत भव्य और शाही उत्सव था। जिसमें रंगों, संगीत, नृत्य, भोज और समाजिक समरसता का अद्वितीय मिश्रण था। सम्राट अकबर और शाहजहाँ जैसे शासकों ने इस पर्व को राजकीय रूप से मनाने की परंपरा स्थापित की। जिसमें शाही दरबार में उत्सव होता था और सभी वर्गों के लोग एक साथ खुशियों में शामिल होते थे। यह त्योहार समानता, एकता और समृद्धि का प्रतीक बन गया था। इसे एक सामाजिक और धार्मिक अवसर के रूप में मनाया जाता था।….प्रकाश कुमार पांडेय