चौंकिए मत: बहुत ही खतरनाक दिशा में जा रही है बिहार की सियासत !

क्या 1957 जैसी होगी शुरुआत

माफियाओं और बाहुबलियों के दरवाजे पर’दस्तक’दे रही बिहार की राजनीति काफी चिंता जनक है। इसके संकेत उसी समय मिल गए थे जब नीतीश सरकार ने बाहुबली नेता आनंद मोहन सिंह को जेल से निकालने के लिए नियम ही बदल दिया। परिणाम ये हुआ कि आनंद के साथ 27 और अपराधियों को छोड़ना पड़ा। अब दो और बड़े दिग्गज बाहुबली नेताओं को भी रिहा करने की मांग उठने लगी है। इससे पहले अवैध शराब और टाडा जैसे मामलों में बंद कैदियों को रिहा करने की न केवल मांग उठी बल्कि धरना प्रदर्शन भी किया गया।

    लोकसभा चुनाव में रहेगा बाहुबलियों का बोलबाला
    बूथ कैप्चरिंग जैसे हालात बनने की बढ़ी आशंका
.      बिहार से ही हुई थी बूथ कैप्चरिंग की शुरुआत
.      प्रभुनाथ और अनंत सिंह की रिहाई की मांग
.      नीतीश सरकार की दिक्कतें बढ़ाने लगे बाहुबली

अंदाजा लगाया जा सकता है कि आने वाले समय में धीरे धीरे सभी बाहुबली नेता और उनके समर्थक जेल से बाहर आ जाएंगे,और अगले साल होने जा रहे लोकसभा चुनाव में इनका भरपूर राजनैतिक उपयोग होगा। राजनीति से जुड़े जानकारों का कहना है कि जब बिहार के मुख्यमंत्री भाजपा के विरोधियों को एकजुट करने में पसीना बहा रहे है तो क्या इन बाहुबलियों का चुनाव में उपयोग नहीं करेंगे। कई नेता चुनाव लड़ेंगे तो कई समर्थन में साम दाम दंडभेद के साथ वोट बटोरने का काम करेंगे। कुल मिलाकर जिस तरह के राजनैतिक हालात चल रहे हैं उससे आशंका है कि आने वाले दिनों बाहुबलियों के आधार पर चुनाव लड़ा जाएगा।

क्या 1957 जैसी होगी शुरुआत

कहते है इतिहास दोहराता है। जिस तरह के बिहार में राजनैतिक हालात है उसने एक बार फिर वर्ष 1957 की याद दिला दी है। यही वो समय था जब यहां बाहुबलियों के दम पर चुनाव जीतने के लिए लोकतंत्र की धज्ज्यिां उड़ाई गईं थीं। लोगों को गोली और बम के नाम पर धमकाया जाता था,मतदाता से मत करने का अधिकार छीन लिया जाता था। शुरुआत बेगूसराय जिले की मटिहानी विधानसभा सीट के रचियाही इलाके से हुई थी। स्थानीय लोगों ने सरयू प्रसाद सिंह के लिए कछारी टोला बूथ पर कब्जा किया था। इसके बाद बिहार के चुनावों में बूथ कैप्चरिंग आम बात हो गई। ऐसे में राजनैतिक दलों ने माफियाओं का संरक्षण देना शुरु कर दिया। नतीजा ये हुआ कि बूथ कैप्चरिंग का काम बेगूसराय के डॉन कामदेव सिंह ने शुरु कर दिया। बताया जाता है कि उसकी दबंगता को देखते हुए तमाम नेताओं में बूथ कैप्चरिंग की सुपारी देने की होड़ लगने लगी। जिससे कामदेव का बढ़िया धंध चल पड़ा। फिर क्या था देखते ही देखते 70 के दशक तक बिहार गन गोली और गूंस के लिए जाना जाने लगा। फिर बूथ कैप्चरिंग ने पांव पंसारे तो ​पश्चिम बंगाल,उप्र जैसे तमाम राज्यों में भी असर दिखने लगा।

अब प्रभूनाथ और अनंत सिंह को भी छोड़ना पड़ेगा

कभी लालू की राजद से जुड़े पूर्व सांसद प्रभूनाथ सिंह और पूर्व विधायक अनंतसिंह को भी जेल रिहा करने की मांग बिहार में सुनाई देने लगी है। यदि मांग ने जोर पकड़ा तो राज्य सरकार इन्हे भी जेल से छोड़ने को मजबूर हो सकती है। चॅूकि अनंत सिंह भूमिहार जाति से हैं और प्रभुनाथ सिंह राजपूतों का नेतृत्व करते हैं तो आनंद मोहन सिंह की तरह इन्हे भी रिहा करना पड़ेगा। दोनों नेताओं के समर्थन में जगह जगह पोस्टर देखे जा रहे हैं। बता दें कि जुलाई 1995 में तत्कालीन विधायक अशोक सिंह की जुलाई 1995 में उनके आवास पर गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। इस मामले में प्रभुनाथ सिंह को मई 2017 में हजारीबाग की अदालत ने उन्हे आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। इसी तरह अनंत के घर से एके-47 बरामद होने के चलते उन्हे दस साल की सजा सुनाई गई है।

दोनो बाहुबली नेताओं की रिहाई के लिए अभियान

इन दोनों बाहुबली नेताओं के लिए बिहार में बहुत तेजी से अभियान चलाया जा रहा है। अभियान का नेतृत्व करने वाले कृष्णा सिंह कल्लू का कहना है कि दोनों नेताओ की रिहाई कि लिए वे किसी भी हद तक जा सकते हैं। मीडिया से उन्होने कहा कि राज्य सरकार को हर हाल में नेताओं को छोड़ना ही पड़ेगा। वहीं दूसरी तरफ सत्तारुढ़ महागठबंधन के नेताओं ने इस तरह की मांगों को सिरे नकार दिया है।जेडीयू के राष्ट्रीय महासचिव राजीव रंजन का कहना है कि जिन नेताओं को छोड़ने की मांग उठ रही है उन्होनें अभी जेल की अवधि पूरी नहीं की है,जहां तक आनंद मोहन सिंह की बात है तो उनकी रिहाई एक प्रक्रिया के तहत हुई है।

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