देवशयनी एकादशी आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को कहते हैं। इस दिन भगवान विष्णु शयन के लिए पाताल लोक चले जाते हैं। इस एकादशी के चार महीने के लिए भगवान विष्णु योगनिद्रा से जागते हैं। इस दौरान चार महीने तक किसी भी प्रकार के मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं। हम आपको बताते हैं कि आषाढ़ मास की देवशयनी एकादशी का शुभ मुहूर्त क्या है। पूजन के लिए विधि के साथ कौन कौन से सामग्री लगती है।
- 17 जुलाई को देवशयनी एकादशी
- देवशयनी एकादशी से शयनार्थ जाएंगे भगवान विष्णु
- भगवान विष्णु का होगा पाताल लोक गमन
- देवशयनी एकादशी स होगा चातुर्मास प्रारंभ
- मांगलिग कार्यों पर लग जाएगा प्रतिबंध
- देवउठनी एकादशी के बाद प्रारंभ होंगे मांगलिक कार्य
- शुक्लपक्ष की सभी एकादशी करनी चाहिए
- चातुर्मास में शुभ कार्य क्यों नहीं होते ?
- चातुर्मास के दौरान चार महीने शयनकाल में रहते हैं देव
- चातुर्मास जप, तप, पूजा, पाठ के लिए श्रेष्ठ माना गया है
- आषाढ़ माह की देवशयनी एकादशी से लग जाते हैं चातुर्मास
- कार्तिक माह की देवउठनी एकादशी पर होती है समाप्ति
- चातुर्मास का समापन 12 नवंबर 2024 को होगा
- 12 नवंबर को है देवउठनी एकादशी
देवशयनी एकादशी शुभ मुहूर्त
इस साल आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी यानी देवशयनी एकादशी का व्रत 17 जुलाई को रखा जाएगा। एकादशी तिथि की शुरूआत वैसे तो 16 जुलाई को रात 8.33 बजे से शुरू हो जाएगी। जबकि इसकी समाप्ति 17 जुलाई को रात 9.02 बजे होगी। इसके साथ ही देवशयनी एकादशी का पारण इसके अगले दिन यानी 18 जुलाई को किया जाएगा। इस दिन पारण के लिए शुभ मुहूर्त सुबह 6 बजकर 10 मिनट से 8 बजकर 48 मिनट तक है।
देवशयनी एकादशी पूजा-विधि
ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें इसके बाद घर के मंदिर में दीपक जलाएं। फिर भगवान विष्णु का गंगाजल से अभिषेक करें। उन्हें पीले रंग के फूल और तुलसी पत्ते अर्पित करें। देवशयनी एकादशी की पूजा के दौरान भगवान विष्णु के मंत्र ओम् नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप करेंं। इसके साथ ही भगवान विष्णु को पीले फल का भोग लगाएं। भोग में तुलसी के पत्ते को भी शामिल करें। भगवान विष्णु के साथ माता लक्ष्मी की पूजा करना न भूलें। पूजा के समाप्त होने पर भगवान विष्णु की आरती उतारें। संभव हो सके तो देवशयनी एकादशी के दिन व्रत रखें। पौराणिक मान्यता है कि इस दिन व्रत करने से सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है।
देवशयनी एकादशी पूजन सामग्री और विधि
भगवान विष्णु की तस्वीर, पीले फूल, नारियल, पान के पत्ते, सुपारी, अक्षत, लौंग, धूप, दीपक, घी, पंचामृत, तुलसी के पत्ते, मिष्ठान और चंदन। बुधिष्ठिर ने पूछा: भगवन् । आषाढ़ के शुक्लपक्ष में कौन सी एकादशी होती है ? उसका नाम और विधि क्या है? यह बतलाने की कृपा करें। भगवान श्रीकृष्ण बोले: राजन आषाढ़ शुक्लपक्ष की एकादशी का नाम शयनी है। मैं उसका वर्णन करता हूँ। वह महान पुण्यमयी, स्वर्ग और मोक्ष प्रदान करनेवाली, सब पापों को हरनेवाली तथा उत्तम व्रत है। आषाढ़ शुक्लपक्ष में शयनी एकादशी के दिन जिन्होंने कमल पुष्प से कमललोचन भगवान विष्णु का पूजन तथा एकादशी का उत्तम व्रत किया है। उन्होंने तीनों लोकों और तीनों सनातन देवताओं का पूजन कर लिया। हरिशयनी एकादशी के दिन मेरा एक स्वरुप राजा बलि के यहाँ रहता है और दूसरा क्षीरसागर में शेषनाग की शैय्या पर तब तक शयन करता है, जब तक आगामी कार्तिक की एकादशी नहीं आ जाती, अतः आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी से लेकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक मनुष्य को भलीभाँति धर्म का आचरण करना चाहिए। जो मनुष्य इस व्रत का अनुष्ठान करता है। वह परम गति को प्राप्त होता है, इस कारण यत्नपूर्वक इस एकादशी का व्रत करना चाहिए। एकादशी की रात में जागरण करके शंख, चक्र और गदा धारण करनेवाले भगवान विष्णु की भक्तिपूर्वक पूजा करनी चाहिए। ऐसा करने वाले पुरुष के पुण्य की गणना करने में चतुर्मुख ब्रह्माजी भी असमर्थ हैं। इस प्रकार भोग और मोक्ष प्रदान करनेवाले सर्वपापहारी एकादशी के उत्तम व्रत का पालन करता है। वह भले ही जाति का चाण्डाल हो लेकिन इसके बाद भी संसार में सदा विष्णु का प्रिय होता है।aदीपदान करने, पलाश के पत्ते पर भोजन करना और व्रत करते चौमासा व्यतीत करने वाले लोग भगवान विष्णु को प्रिय होते हैं।
चौमासे में भगवान विष्णु सोये रहते हैं, इसलिए मनुष्य को भूमि पर शयन करना चाहिए। सावन में साग, भादों में दही, क्वार में दूध और कार्तिक में दाल का त्याग कर देना चाहिए। जो चौमसे में ब्रह्मचर्य का पालन करता है, वह परम गति को प्राप्त होता है। राजन् ! एकादशी के व्रत से ही मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है, अतः सदा इसका व्रत करना चाहिए। कभी भूलना नहीं चाहिए। शयनी और बोधिनी के बीच में जो कृष्णपक्ष की एकादशीयाँ होती हैं। गृहस्थ के लिए वे ही व्रत रखने योग्य हैं अन्य मासों की कृष्णपक्षीय एकादशी गृहस्थ के रखने योग्य नहीं होती।