दिल्ली में विधानसभा चुनाव कब होंगे, कितने चरणों में होंगे? इस सवाल से भारतीय चुनाव आयोग आज मंगलवार 7 जनवरी को पर्दा उठाने वाला है। बता दें चुनाव आयोग की ओर से आज मंगलवार को दिल्ली विधानसभा चुनाव कार्यक्रम और तारीखों का ऐलान किया जाएगा। चुनाव आयोग ने दोपहर दो बजे एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई है। जिसमें चुनाव की तारीख का ऐलान किया जाएगा।
- दिल्ली के चुनाव का ऐलान आज
- 70 सीटों पर कितने चरण में होंगे चुनाव
दिल्ली विधानसभा चुनाव की सरगर्मी बढ़ती जारही है। 70 सीटों वाली दिल्ली विधानसभा के नए चुनाव की घोषणा आज मंगलवार 7 जनवरी को की जा रही है। मुख्य निर्वाचन आयुक्त राजीव कुमार अपराह्न 2 बजे के आसपास संवाददाता सम्मेलन में केंद्र शासित की विधानसभा के चुनाव कार्यक्रम की घोषणा करने वाले हैं। आयोग की ओर से जारी सूचना के अनुसार विज्ञान भवन में संवाददाता सम्मेलन आयोजित किया जा रहा है। जिसमें दिल्ली विधानसभा चुनाव के कार्यक्रमों की घोषणा की जाएगी। इस मौके पर राजीव कुमार के साथ आयोग में उनके के दो अन्य सहयोगी आयुक्त भी मौजूद रहेंगे।
कितने चरण में होंगे चुनाव?
दिल्ली में विधानसभा की 70 सीट हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में एक ही चरण में विधानसभा के चुनाव संपन्न होंगे। बता दें कि दिल्ली में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी ही नहीं विपक्ष में बैठी भाजपा और कांग्रेस समेत तमाम सियासी दलों ने विधानसभा चुनाव को लेकर अपनी रणनीति को अंतिम रुप देना शुरू कर दिया है। प्रत्याशियों के नामों के ऐलान के साथ ही एक-दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप भी लगाए जा रहे हैं।
15 फरवरी को कार्यक्राल होगा समाप्त
दिल्ली की विधानसभा का पांच वर्षीय कार्यकाल अगले माह 15 फरवरी को समाप्त होने वाला है। ऐसे में अनुमान लगाया जा रहा है कि इस बार फरवरी के दूसरे सप्ताह से पहले विधानसभा चुनाव पूरे कराए जा सकते हैं। हालांकि दोपहर दो बजे चुनाव आयोग की प्रेस कांफ्रेंन्स में यह स्पष्ट हो जाएगा कि कब चुनाव होंगे। पिछले 2020 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो फरवरी में ही वह संपन्न हुए थे। जिसमें आम आदमी पार्टी को एकतरफा जीत मिली थी।
दिल्ली विधानसभा का इतिहास
दिल्ली में विधानसभा का रिकॉर्ड देखें तो पत चलता है कि दिल्ली में पहली बार 27 मार्च 1952 को चुनाव हुआ था। उस साल भी फरवरी में ही देश में आम चुनाव हुए थे। उस समय विधानसभा की 48 सीटों पर चुनाव कराए गए थे। चुनाव के बाद 17 मार्च 1952 को कांग्रेस की ओर से चौधरी ब्रह्मप्रकाश सीएम बने थे। इसके बाद 12 फरवरी 1955 में चुनाव हुए और गुरमुख निहाल सिंह सीएम बने। वे एक नवंबर 1956 तक सीएम की कुर्सी पर रहे। इसके बाद दिल्ली को केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिया गया। यहां चंडीगढ़ की तरह विधानसभा के चुनाव नहीं हुए।
महानगर परिषद के हाथ में था दिल्ली का प्रशासन
एक विशेष अधिनियम दिल्ली प्रशासन अधिनियम 1966 को उस समय लागू किया गया था। जिससे दिल्ली की सत्ता को महानगर परिषद के जरिए संचालित किया जा सके। साल 1956 से 1990 के बीच 61 सदस्यों वाली महानगर परिषद के हाथ में ही दिल्ली का प्रशासन रहा। जिसके मुखिया उपराज्यपाल हुआ करते थे। परिषद सार्वजनिक महत्व के मामलों को लेकर सिफारिशें करती थी और उपराज्यपाल उस पर अंतिम निर्णय लेते थे।
1956 में दिल्ली का सदन किया समाप्त
दिल्ली में एक दौर ऐसा था जब करीब 37 साल तक विधानसभा के चुनाव नहीं हुए। साल 1956 में दिल्ली को केंद्र शासित प्रदेश में बदला गया। इसके बाद सदन समाप्त कर दिया गया था। दिल्ली के प्रशासन में जनता की सीधे कोई प्रत्यक्ष भूमिका नहीं होती थी। ऐसे में लोगों ने विधानसभा को बहाल करने की मांग उठाई। जिस पर केंद्र सरकार की ओर से दिसंबर 1987 में सरकारिया कमेटी जिसे बाद में बालकृष्णन समिति कहा गया को गठित किया। कमेटी ने दो साल बाद रिपोर्ट पेश की जिसमें सिफारिश की कि दिल्ली को केंद्र शासित प्रदेश बने रहना चाहिए। हालांकि आमजन से जुड़े मामलों से निपटने के लिए उसे एक विधानसभा दी जानी आवश्यक है, लेकिन सार्वजनिक व्यवस्था के साथ पुलिस और भूमि से जुड़े मामलों को विधानसभा की शक्तियों से दूर रखा जाना चाहिए। आखिरकार दिल्ली को संविधान 69वां संशोधन अधिनियम 1991 के तहत विधानसभा बहाली की मंजूरी दी गई। इस अधिनियम के तहत दिल्ली के लिए करीब 70 सदस्यों वाली विधानसभा और सात सदस्यीय मंत्रिपरिषद को गठित किये जाने का प्रावधान करते हुए केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली को विशेष दर्जा प्रदान किया था।
1993 में पहली बार हुए विधानसभा चुनाव
केंद्र सरकार की ओर से साल 1992 में एक परिसीमन कमेटी गठित की गई। कमेटी ने दिल्ली में विधानसभा की 70 सीट निर्धारित कीं। इसके बाद विधानसभा चुनाव की राह साफ हो सकी। आखिरकार नवंबर 1993 में विधानसभा चुनाव हुए और इसके साथ ही दिल्ली में लोकतांत्रिक माहौल फिर से बहाल हो सका। उस समय मदन लाल खुराना के नेतृत्व में भाजपा को प्रचंड बहुमत के साथ जीत मिली थी। साथ ही पीके दवे को उस समय दिल्ली का उपराज्यपाल नियुक्त किया गया था। पहली बार हुए विधानसभा के चुनाव में सिर्फ तीन महिलाएं ही सदन में पहुंच सकीं थीं। इनमें बलजीत नगर से कांग्रेस की कृष्णा तीरथ तो मिंटो रोड विधानसभा सीट से कांग्रेस की ही ताजदार बाबर और कालकाजी विधानसभा सीट से बीजेपी की पूर्णिमा सेठी का नाम शामिल था।
(प्रकाश कुमार पांडेय)