दिल्ली विधानसभा चुनाव परिणाम: कांग्रेस के वजह से कई सीटों पर हुई AAP की हार, गठबंधन होता तो बदल सकती थी तस्वीर
दिल्ली में बीजेपी ने 27 साल के इंतजार के बाद सत्ता का सुख हासिल कियाहै। अब दिल्ली में बीजेपी का शासन चलेगा। बीजेपी का यह 27 साल का इंतजार अभी आगे और बढ़ सकता था यदि दिल्ली के चुनाव में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस साथ मिलकर मैदान में उतरते। ऐसा होता तो बीजेपी की सत्ता के सिंहासन पर काबिज होने की राह इतनी आसान नहीं होती। जानते हैं कि वो कौन-कौन सी विधानसभा सीटे हैं, साथ ही हार-जीत के अंतर पर भी नजर डालेंगे।
- दिल्ली में बीजेपी ने खत्म किया 27 साल का वनवास
- इंतजार के बाद सत्ता का सुख हासिल किया
- अब दिल्ली में बीजेपी का शासन चलेगा
- कई सीटों पर कम अंतर से हुई हारजीत
- आप की हार…कांग्रेस को मिले वोट बराबर
दिल्ली की सत्ता पर भारतीय जनता पार्टी ने 27 साल के इंतजार को खत्म कर फिर से सत्ता में कब्जा जमाया है। दिल्ली के चुनाव में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस साथ मिलकर चुनाव मैदान में उतरे होते तो बीजेपी को सत्ता के सिंहासन पर काबिज होने की राह थोड़ी कठीन हो जाती। इतनी आसान नहीं होती। दरअसल ऐसा चुनाव परिणाम के आंकड़े कह रहे हैं।
इस वजह यह है कि दिल्ली की 70 में से कम से कम 19 विधानसभा सीटें ऐसी हैंं जिन पर बीजेपी की जीत का अंतर आम आदमी पार्टी और कांग्रेस को मिले वोटों के समान है। इसका अर्थ है कि अधिकांश सीटों पर तीसरे नंबर पर रहने वाली कांग्रेस को जितने वोट हासिल हुए हैं, उतना ही बीजेपी और आम आदमी पार्टी के बीच हार का अंतर रहा। बीजेपी के मुकाबले यह दोनों पार्टियां एक साथ मिलकर लड़तीं तो कहीं न कहीं यह परिणाम कुछ और सामने आए होते।
हाई-प्रोफाइल सीट
ग्रेटर कैलाश विधानसभा सीट हाई-प्रोफाइल सीट थी। इस सीट से आम आदमी पार्टी के बड़े नेता और मंत्री सौरभ भारद्वाज खुद चुनाव में उतरे थे। हालांकि वे चुनाव हार गए। इस सीट से बीजेपी की शिखा रॉय को जीत हासिल हुई है। उनकी जीत का अंतर महज 3 हजार 188 रहा था। वहीं कांग्रेस को इस सीट पर 6711 वोट मिले है। ऐसे में अगर यहां कांग्रेस नहीं लड़ती तो सौरभ भारद्वाज आसानी से जीत सकते थे।
जंगपुरा विधानसभा सीट भी आप के लिए बेहद खास थी। आम आदमी पार्टी के बड़े नेता और पूर्व डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया यहां से चुनावी मैदान में उतरे थे। लेकिन सिसोदिया इस चुनावी लड़ाई में हार गये। यहां बीजेपी के तरविंदर सिंह ने बाजी मार ली। तरविंदर 675 वोट से जीते। वहीं कांग्रेस ने इस सीट पर 7350 वोट हासिल किये। ऐसे में अगर इस सीट पर आम आदमी पार्टी और – कांग्रेस एक साथ मिलकर चुनाव लड़तीं तो नतीजे कुछ और हो सकते थे।
तीसरी और सबसे अहम नई दिल्ली विधानसभा सीट है। यह सीट पूरे चुनाव के दौरान सबसे ज्यादा चर्चा में रही। यहां से तीन बड़े नेता चुनाव मैदान में उतरे थे। AAP के संयोजक और मुखिया अरविंद केजरीवाल, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पूर्व सीएम स्वर्गीय शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित और पूर्व सीएम साहेब सिंह वर्मा के बेटे बीजेपी के प्रवेश वर्मा चुनाव मैदान में थे। प्रवेश वर्मा ने यहां 4089 वोट के अंतर से केजरीवाल को परास्त किया। वहीं, कांग्रेस के दीक्षित को 4568 वोट मिले। ऐसे में कांग्रेस यहां से अपना कैंडिडेट खड़ा नहीं करती और AAP का समर्थन करती, तो केजरीवाल इस संभवत: इस सीट से फिर चुनाव जीत सकते थे। ये तीन तो वो सीटें थे जो हाई-प्रोफाइल थीं। वहीं बाकी दिल्ली की ऐसी 19 विधानसभा सीट हैं। जहां बीजेपी की जीत का अंतर उतना ही था जितना कांग्रेस को वोट मिले थे।