सतना। व्यक्ति की रचनात्मकता पर आशीर्वाद देने वाली मां शारदा के दर्शन के लिए इन दिनों देश भर से श्रद्धालु मैहर पहुंच रहे हैं। नवरात्रि के मौके पर मेले को लेकर प्रशासन और पुलिस ने खास इंतजाम किए हैं। हम बात कर रहे हैं सतना जिले की मैहर तहसील में त्रिकुट पर्वत पर स्थित माता के इस मंदिर की। जिसे मैहर देवी का मंदिर कहा जाता है। यह 51 शक्तिपीठों में से एक है। कहा जाता है कि मां शारदा की मूर्ति यहां स्वयं प्रकट हुई है, अर्थात वह स्वयं यहां प्रकट हुई हैं।
यहां माता सती का हार गिरा था पौराणिक कथाओं के अनुसार यहां माता सती का हार गिरा था तभी से इस स्थान का नाम मैहर पड़ा। मैहर के मां शारदा मंदिर का इतिहास करीब दो हजार साल पुराना है। यहां गुरु शंकराचार्य ने मां शारदा की पूजा की थी।
आल्हा और उदल थे शारदा माता के परम भक्त
ऐसा माना जाता है कि पृथ्वीराज चौहान से युद्ध करने वाले आल्हा और उदल भी शारदा माता के बड़े भक्त थे। जंगलों के बीच शारदा देवी के इस मंदिर की खोज सबसे पहले आल्हा और उदल ने की थी। इसके बाद आल्हा ने 12 साल तक इसी मंदिर में तपस्या कर देवी को प्रसन्न किया। माता ने उन्हें अमरता का वरदान दिया था।
मंदिर के पीछे है आल्हा तालाब
मान्यता है कि आज भी आल्हा और ऊदल को मां शारदा के दर्शन प्रतिदिन होते हैं। मंदिर के पीछे पहाड़ों के नीचे एक तालाब हैए जिसे आल्हा तालाब कहा जाता है। इतना ही नहींए तालाब से 2 किलोमीटर आगे जाने पर एक अखाड़ा मिलता हैए जिसके बारे में कहा जाता है कि आल्हा और उदल कुश्ती का अभ्यास करते थे। देश के कोने.कोने से प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु मां शारदा के दर्शन के लिए यहां आते हैं। माता के चरणों में श्रीफल नारियलए सिंदूर सिंदूरए कपूरए चुनरी और श्रृंगार का सामान चढ़ाकर भक्त अपने को धन्य मानते हैं।
600 मीटर की ऊंचाई पर बना है मंदिर
साथ ही आने वाले पर्यटकों की सुरक्षा के लिए प्रशासन काफी इंतजाम करता है। 600 मीटर की ऊंचाई पर पहाड़ी पर मां शारदा का भव्य मंदिर बनाया गया है। मंदिर तक पहुंचने के लिए 1 हजार 80 सीढ़ियां हैं। इसके साथ ही रोपवे से आने.जाने की सुविधा भी उपलब्ध है और टिकट की कीमत 140 रुपये है।
मां हमेशा ऊंचे स्थान पर विराजमान रहती हैं
कहा जाता है कि मां हमेशा ऊंचे स्थानों पर विराजती हैं। जिस तरह मां दुर्गा के दर्शन के लिए श्रद्धालु पहाड़ों को पार कर वैष्णो देवी पहुंचते हैं। इसी तरह सतना जिले में मां के दर्शन के लिए 1080 सीढ़ियां चढ़ी जाती हैं। इतिहास में इस मंदिर का अस्तित्व 6वीं शताब्दी से मिलता है। कहा जाता है कि 1918 में यह मंदिर बहुत छोटा था। मंदिर तक पहुंचने के लिए भक्तों का पहाड़ी के दुर्गम रास्ते से आना.जाना लगा रहता था।नवरात्र में मां के दर्शन के लिए श्रद्धालु पहुंचते हैं। वर्ष 1951 में इस मंदिर में सीढि़यों का निर्माण किया गया और भक्त सीढ़ियों के द्वारा माता के मंदिर में जाने लगे। धीरे.धीरे चैत्र क्वार में नवरात्र मेला लगने लगा और मेले में लाखों श्रद्धालु मां के दर्शन के लिए आने लगे। इस बार भी प्रशासन व पुलिस ने सुविधा व सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए हैं।