राजस्थान में इस साल विधानसभा के चुनाव होने वाले है और राजनैतिक पार्टियों के साथ विभिन्न संगठन भी शक्ति प्रदर्शन करने में जुट गए है। जाट महापंचायत और ब्राह्मण महासभा के बाद अब जयपुर में अनुसूचित जाति और जनजाति की महापंचायत आयोजित की गई। जिसमें कई बड़े मुद्दे और मांगों पर अपनी बात आरक्षित वर्ग के लोगों और नेताओं ने की।
- राजस्थान में एससीण्एसटी वर्ग की संख्या
- राजस्थान में एससी व एसटी 32 फीसदी आबादी
- एससी 17ण्83 प्रतिशत और एसटी 13ण्48 प्रतिशत आबादी
- एससीएसटी वर्ग को माना जाता है कांग्रेस का कोर वोटर
- महापंचायत में इस वर्ग की नाराजगी हुई जाहिर
- चुनाव में कांग्रेस को भारी पड़ सकती है एससीण्एसटी वर्ग की नाराजगी
महापंचायत में एससी-एसटी वर्ग के मंत्री विधायक
महापंचायत में प्रमुख राजनीतिक दलों के नेता भी पहुंचे थे। इनमें राजस्थान सरकार में मंत्री ममता भूपेश और टीकाराम जूली शामिल हैं। वहीं कांग्रेस विधायक गंगा देवी भी मंच पर मौजूद रहीं। हालांकि मंच पर भाषण देने को लेकर हुए विवाद के बाद गहलोत सरकार के मंत्री महापंचायत छोड़ कर चले गए।
मंत्री मेघवाल को बोलने से रोका
अनुसूचित जाति और जनजाति की महापंचायत में उस समय विवाद की स्थिति बन गई जब आयोजकों ने मंत्रियों को ज्यादादेर तक बोलने से मना कर दिया। इस पर विवाद हो गया। दरअसल आपदा राहत मंत्री गोविंद मेघवाल जब भाषण दे रहे थे, तब विवाद हो गया। मेघवाल ने महापंचायत में जैसे ही अपना भाषण शुरू किया तो आयोजकों ने उन्हें दो मिनट में अपनी बात और भाषण खत्म करने की बात कही। इस बीच में टोका टाकी की गई। जिस पर मंत्री मेघवाल नाराज हो गए। उन्होंने बीच में ही बात रोककर कहा कि आप भाषण खत्म हो समझिए। जब वे अपनी बात ही पूरी तरह से मंच पर नहीं रख सकते तो फिर बोलने का क्या अर्थ रह जाता है। इतना कहकर मंत्री मेघवाल मंच से नीचे उतर कर कार्यक्रम छोड़कर चले गए। उनके मंच से उतरने के दौरान जमकर नारेबाजी की गई। वहीं मंत्री मेघवाल के बाद महापंचायत से मंत्री ममता भूपेश और भजन लाल जाटव के साथ टीकाराम जूली ने भी कार्यक्रम छोड़ दिया और बाहर चले गए। बता दें अनुसूचित जाति और जनजाति समुदाय की करीब 22 लंबित मांगों को लेकर जयपुर के मानसरोवर ग्राउंड में ये महापंचायत की गई।
एससी-एसटी एक्ट का नहीं किया गया पालन
अनुसूचित जाति और जनजाति की महापंचायत में एससी एसटी एक्ट का पालन न किये जाने पर भी खासी नाराजगी जताई गई। नेताओं का कहना था कि एससी.एसटी अधिनियम 1990 से ही लागू किया जा चुका है, लेकिन राजस्थान में सरकार ने 2011 में नियम बनाए । एक्ट में 2015 और 2019 में संशोधन भी किया गया। बता दें मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की गई है। जिसमें एससी एसटी कानून के तहत दर्ज प्रकरणों की समीक्षा की जाती है। लेकिन इस कमेटी के पुर्नगठन में देरी पर नाराजगी जताई गई। साथ ही कमेटी की नियमित बैठकें न होने के चलते इसके निर्णयों के क्रियान्वयन में आ रही समस्याओं के समाधान में भी शिथिलता बरतने पर नाराजगी जताई गई।