RSS की स्थापना में खिलाफत आंदोलन का योगदान, मालाबार हिंसा के बाद डॉ.केशव हेडगेवार ने हिंदू हितों के लिए की थी संघ की स्थापना
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक 96 वर्ष पुराना संगठन है। आरएसएस की स्थापना 27 सितंबर 1925 को की गई थी। इन 96 वर्षों में देश की कई पीढ़ियां गुजर चुकी हैं और इतने लंबे समय में कई बार सही इतिहास भी धुंधला पड़ जाता है। लिहाजा आज इतिहास के पन्नों पर पड़ी धूल को साफ करते हैं। बताते हैं कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना किन परिस्थितियों में की गई थी।
आज से लगभग 100 साल पहले
दरअसल साल 1919 में पहले विश्व युद्ध के बाद इंग्लैड ने ऑटोमन साम्राज्य के टुकड़े-टुकड़े कर दिए थे। अंग्रेजों ने तुर्की के खलीफा जिसे मुसलमानों का सबसे बड़ा धार्मिक नेता कहा जाता था। उसे सत्ता से हटा दिया था। इसके विरोध में दुनियाभर के मुसलमान एक हो गए थे। उस समय गुलाम भारत में भी विरोध के स्वर सुनाई दिये। गुलाम भारत में रहने वाले मुसलमानों ने भी अंग्रेजों के खिलाफ सड़क पर उतरकर विरोध किया।
ऐसे मौके पर शौकत अली और मोहम्मद अली नाम के दो भाइयों ने यूपी के लखनऊ में अंग्रेज हुकूमत के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। इसे ही खिलाफत आंदोलन नाम दिया गया था। इस आंदोलन का मकसद खलीफा को तुर्की के सिंहासन पर फिर से बैठाना था। इस आंदोलन से जल्द ही देशभर के मुसलमान जुड़ गए।
यही वो दौर था।जब पंजाब में बैशाखी पर जलियांवाला बाग हत्याकांड को अंजाम दिया गया था। पंजाब में इसके बाद मार्शल लॉ लगा दिया गया था। देशभर में रॉलेट एक्ट यानी बिना मुकदमा चलाए ही किसी को भी जेल में बंद कर देने की अंग्रेज हुकूमत की नीतियों का विरोध तेज हो रहा था। इसके चार साल पहले साउथ अफ्रीका से स्वदेश लौटे मोहनदास करमचंद गांधी गुलाम भारत में अंग्रेजों के खिलाफ एक बड़े आंदोलन की तैयारी में कर रहे थे। ऐसे में खिलाफत आंदोलन को गांधी जी ने एक अवसर के रूप में देखा। इसके जरिए हिंदु और मुसलमान को एक मंच पर लाया जा सकता है। गांधी जी ने उस दौर में एक नारा दिया था ‘जिस तरह हिंदुओं के लिए गाय माता है पूज्य है, उसी की तरह ही मुसलमानों के लिए भी खलीफा हैं। लेकिन
डॉक्टरी की पढ़ाई कर नए-नए कांग्रेसी बने महाराष्ट्र के नागपुर में केशव बलिराम हेडगेवार ने गांधी जी के इस फैसले का विरोध किया। उन्हें गांधी जी की रणनीति सही नहीं लगी। इसे लेकर हेडगेवार की जीवनी को कागज पर उतारने वाले सीपी भिशीकर अपनी किताब ‘केशव : संघ निर्माता’ में लिखा लिखा था कि हेडगेवार ने गांधीजी से कहा खलीफा का समर्थन करके मुसलमानों ने ये साबित कर दिया कि उनके लिए देश से पहले उनका धर्म है। ऐसे में कांग्रेस को इस आंदोलन का समर्थन नहीं करना चाहिए।’
हालांकि गांधी ने हेडगेवार की बात नहीं मानी और खिलाफत आंदोलन के समर्थन की घोषणा कर दी। और न चाहते हुए भी केशव बलिराम हेडगेवार खिलाफत आंदोलन से जुड़े रहे। हालांकि उग्र भाषण देने के चलते उन्हें अगस्त 1921 से जुलाई 1922 तक जेल में भी रहना पड़ा। वही जब अगस्त 1921 को खिलाफत आंदोलन केरल धरती पर पहुंचा तो मालाबार इलाके में मुसलमानों और हिंदू जमींदारों के बीच हुई झड़प ने एक बड़े दंगे का रूप ले लिया । इस हिंदू मुसलमान के बीच हुए दंगे में 2 हजार से अधिक लोगों की जान चली गई थी ।
संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर ने भी इस सांप्रदायिक दंगे का जिक्र अपनी किताब ‘थॉट्स ऑन पाकिस्तान’ में किया है जिसमें उन्होंने लिखा – ‘इस विद्रोह का मकसद ब्रिटिश हुकूमत को खत्म कर भारत में इस्लाम राज की स्थापना करना था। उसे समय जबरन धर्म परिवर्तन कराए गए, देश में कई मंदिर ढहाए गए, हिंदू महिलाओं के साथ दुष्कर्म किए गए हुए। भीमराव अंबेडकर ने खिलाफत आंदोलन पर भी अपनी पुस्तक में सवाल उठाए और लिखा ‘यही गांधी की हिंदू और मुसलमान के बीच एकता कायम करने की कोशिश है। इस कोशिश का आखिर क्या फल मिला?’
समय भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष रहीं श्रीमती एनी बेसेंट ने सांप्रदायिक दंगों के बाद मालाबार का दौरा किया था । इस दौरे के बाद उन्होंने एक अखबार में लिखे एक आर्टिकल मैं यह लिखा था कि लिखा ताकि यह ‘अच्छा होता अगर महात्मा गांधी खुद मालाबार जाते। जहां वे अपनी आंखों से सांप्रदायिक हिंसा के बाद वहां पर उस भयावहता को देख पाते, जो उनके प्रिय मोहम्मद अली और शौकत अली की ओर से खड़ी की है।’ साल 1921 में हुए मालाबार दंगे के दो साल बाद यानी 1923 में महाराष्ट्र नागपुर में सांप्रदायिक दंगा भड़क गया । दरअसल उसे समय तत्कालीन कलेक्टर ने हिंदुओं की झांकियों पर प्रतिबंध लगा दिया था। ऐसे में हेडगेवार को यह उम्मीद थी कि कांग्रेस इस प्रतिबंध के विरोध में आवाज उठाएगी लेकिन कांग्रेस ने ऐसा नहीं किया ।
खिलाफत आंदोलन और केरल के मालाबार में हुई सांप्रदायिक हिंसा से खफा हेडगेवार के मन में अब भारत के हिंदुओं के लिए एक अलग संगठन बनाने का ख्याल आया और उस समय तक देश में हिंदू महासभा का गठन किया जा चुका था। हिंदू महासभा के सचिव हेडगेवार के मेंटॉर रहे डॉ. बीएस मुंजे थे। जिसके चलते डॉक्टर हेडगेवार कुछ समय के लिए हिंदू महासभा से जुड़े , लेकिन उन्हें यह संगठन और उसकी गतिविधियां रास नहीं आई। हेडगेवार कहते थे कि हिंदू महासभा राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के लिए कभी भी हिंदू हितों से समझौता कर सकती है। नागपुर उन दिनों सेंट्रल प्रोविंस की राजधानी हुआ करता था। अंग्रेजी सरकार ने भारत के दूसरे हिस्सों को नापने के लिए ही नागपुर को जीरो माइल पॉइंट के रूप में बनाया था।
इस बीच 27 सितंबर 1925 को विजयादशमी के दिन डॉक्टर हेडगेवार ने अपने विश्वसनीय पांच लोगों के साथ एक बैठक बुलाई इसी बैठक में संघ को स्थापित करने की रूपरेखा बनी हेडगेवार ने कहा कि आज से हम संघ शुरू कर रहे हैं। हिंदू हितों के खातिर बुलाई गई इस महत्वपूर्ण बैठक में हेडगेवार के साथ विनायक दामोदर सावरकर के भाई गणेश. बीएस मुंजे, एलवी परांजपे और बीबी थोलकर बैठक में शामिल हुए थे। इसके बाद 17 अप्रैल 1926 को हेडगेवार के इससंगठन का नामकरण किया गया और इस तरह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी RSS की स्थापना हुई।