49 के फेर में गहलोत के ‘हाथ’ से निकल सकी है सत्ता, 9 जिलों की 49 सीटों पर हार का खतरा

Congress is in danger of losing 49 seats

राजस्थान में विधानसभा का कार्यकाल दिसंबर में खत्म होने जा रहा है। यहां अक्टूबर नवंबर में चुनाव कार्यक्रम का ऐलान किया जा सकता है। राज्य में फिलहाल कांग्रेस की सरकार है और अशोक गहलोत मुख्यमंत्री हैं। राजस्थान विधानसभा में 200 सीट हैं। यानी इन 200 सीटों पर दिसंबर 2023 से पहले चुनाव कराए जाएंगे। राज्य में हमेशा की तरह इस बार के चुनाव में भी कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधी टक्कर देखने को मिलेगी। राजस्थान उन राज्यों में शुमार है जहां तीसरे दल या मोर्च के लिए अ​भी तक सियासी जमीन तैयार नहीं हुई है। पिछले दो दशक से राजस्थान BJP में वसुंधरा का दबदबा माना जाता रहा है। अब ऐसा माना जा रहा है कि पार्टी राजस्थान में नया नेतृत्व तलाश रही है, क्योंकि दिसंबर 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में वसुंधरा राजे के नेतृत्व में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा था। बीजेपी को 2023 में यहां सत्ता में वापसी करने की उम्मीद है तो वहीं मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी चाहेंगे कि उनकी सरकार बरकरार रहे लेकिन कांग्रेस के सामने जहां गुटबाजी परेशानी का सबब बनी हुई है तो वहीं राज्य के 9 जिले की 49 विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जहां कांग्रेस को हार का डर सता रहा है। क्या है इसकी वजह आइये जानते है।।

2023 के विधानसभा चुनाव के लिए राजस्थान में सियासी बिसात बिछ रही है। बीजेपी में अचानक चुनावी महौल दिखाई देने लगा है। उसने कांग्रेस से चुनावी तैयारियों में एक तरह से बढ़त हासिल कर ली है। ऐसे में जब कांग्रेस गुटबाजी से जूझ रही उसके सामने 9 जिलों की 49 विधानसभा सीटें नई मुसीबत बनकर सामने आई हैं। ये सीटें कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी बनी हुई हैं। दरअसल इनमें से आठ जिले तो ऐसे हैं जहां पिछले ढाई साल से कांग्रेस संगठन नजर ही नहीं आ रहा है। जबकि विधायक भी महज 10 हैं। इन जिलों में बीजेपी के पास 36 विधायक हैं तो 3 विधायक अन्य के पास हैं।

कागज में दफन पूर्व प्रभारी माकन का प्लान

पिछले 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने राजस्थान सत्ता जरूर हासिल की थी, लेकिन पाली, झालावाड़, सिरोही, अजमेर, बूंदी, भीलवाड़ा, चित्तौडग़ढ़, उदयपुर और जालौर की 49
विधानसभा सीटों पर उसका चुनावी प्रदर्शन बेहद खराब रहा था। ऐसे में 2023 के चुनाव में इन जिलों में प्रदर्शन अच्छा करने के लिए राजस्थान कांग्रेस के तत्कालीन प्रभारी महासचिव अजय माकन ने प्लान बनाया था। लेकिन उनके जाते ही सब कागजों रह गया। संगठन के अभाव में यह प्लान कागजों से बाहर नहीं निकल सका।

पांच बाद भी गठित नहीं हुई जिला इकाई

कांग्रेस संगठन के चुनाव को करीब 5 महीने कावक्त गुजर चुका है, लेकिन झालावाड़ को छोड़ दे तो बाकी 8 जिलों में कांग्रेस ने अब तक जिलों में संगठन खड़ा नहीं किया है। इतना ही नहीं जिलाध्यक्ष बनाना तो दूर यहां पार्टी की सभी गतिविधियां ठप पड़ चुकी हैं। गौरतलब है कि 2018 के चुनाव में झालावाड़ , पाली, और सिरोही जिले की 13 सीटों में से कांग्रेस के साते में एक भी सीट नहीं आई थी। हालांकि चुनाव के बाद सिरोही से निर्दलीय विधायक संयम लोढ़ा जरुर कांग्रेस के समर्थन में आ गए थे।

खत्म नहीं हो रही गुटबाजी

विधानसभा चुनाव में 7 माह से भी कम वक्त बचा है लेकिन कांग्रेस में एकजुटता अभी भी नहीं दिख रही है। पार्टी जिला अध्यक्षों के नामों को लेकर खींचतान के हालात बने हुए हैं। एक नाम पर सभी नेताओं की सहमति नहीं बनने के चलते नियुक्ति में लगातार देरी हो रही है। सियासी जानकार कहते हैं कि सीएम अशोक गहलोत लोकप्रिय योजनाओं के सहारे फिर से सत्ता में आने के सपने देख रहे हैं। कहा जा रहा है कि इसके लिए वे कोशिशों में भी जुटे हैं, जबकि सच्चाई यह है कि बीजेपी जैसी केडर बेस पार्टी के सामने चुनाव जीतने के लिए मैदान स्तर तक ठोस योजनाओं के साथ कुशल संगठन और चुनाव प्रबंधन का होना बहुत जरूरी है। जिसमें फिलहाल कांग्रेस पिछड़ती नजर आ रही है।

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