नतीजों के बाद कांग्रेस में बढ़ा आत्मविश्वास क्या राज्यों के विधानसभा चुनाव तक रहेगा बरकरार …?

Congress is excited about the Lok Sabha election results and assembly elections in three states

लोकसभा चुनाव के नतीजे आए सप्ताह से अधिक का समय हो चुका है। माना जा सकता है कि इस एक सप्ताह में सत्ता और सरकार संबंधी जो भी गतिविधियां जरूरी थीं वे प्रारंभ हो चुकी हैं। बीजेपी के साथ कांग्रेस को अब कई सियासी काम करने हैं। खासकर आने वाले महीनों में तीन राज्यों में विधानसभा के चुनाव होना है। लेकिन एक बदलाव सबसे पुरानी और बड़ी पार्टी कांग्रेस में खासतौर पर देखा जा सकता है।

चुनाव के नतीजे के बाद से कांग्रेस में एक अलग तरह का आत्मविश्वास दिख रहा है। यह विश्वास बीते 10 साल में पूरी तरह नजर नहीं आता था। हालांकि बड़ा सवाल आज भी यह बना हुआ है कि इससे आगे की कांग्रेस की यात्रा कैसी होगी। इस सवाल का जवाब अब भी कई चुनौतियों से घिरा नजर आ रहा है। अगर सहयोगी पार्टियों की जिद के चलते महाराष्ट्र की सांगली और बिहार की पूर्णिया लोकसभा सीट से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर लड़ने को मजबूर हुए विशाल पाटिल और पप्पू यादव की जीत को जोड़ लिया जाए तो कांग्रेस की लोकसभा में सीट संख्या 101 पर पहुंच जाती है। लेकिन बात लोकसभा की 100 सीट पार करने या न करने की उतनी महत्वपूर्ण नहीं है। कुल मिलाकर यह चुनाव कांग्रेस के लिए ऐसा नतीजा लाया है, जो उसे आगे के संघर्ष के लिये ऊर्जा देगा।

BJP को बहुमत से दूर रखने में कामयाब रही कांग्रेस

कांग्रेस के लिए यह खुशी की बात हो सकती है कि विपक्षी गठबंधन इंडिया खुद बहुमत के करीब न पहुंचकर भी कम से कम
बीजेपी को भी बहुमत से दूर रखने में कामयाब हो गया। बीजेपी को भी बहुमत से दूर रखने में कामयाब हो गया। इस लिहाज से कांग्रेस के खुद कम सीटों पर लड़ने और संविधान की रक्षा के नारे पर सबसे ज्यादा जोर देने की उसको रणनीति काम कर गई। लेकिन बतौर राजनीतिक दल अब कांग्रेस को उन क्षेत्रों पर शिद्दत से इस ओर उसे ध्यान देना ही होगा। जहां कांग्रेस का संगठनात्मक ढांचा लगातार कमजोर होता नजर आ रहा है।

महाराष्ट्र में कांग्रेस के सामने सपोर्ट बेस सुरक्षित रखने की चुनौती

महाराष्ट्र जहां आने वाले दिनों में विधानसभा चुनाव होना हैं वहां की राजनीति पिछले पांच साल में जिस तरह की उथल-पुथल और घालमेल से गुजरी उसमें काग्रेस का सबसे ज्यादा सांसदों वाली पार्टी के रूप में उभरना निश्चित रूप से बहुत मायने रखता है। वहां इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले और भाजपा की आक्रामकता के मुकाबले महाराष्ट की गरिमा का सवाल खड़ा करते हुए भी कांग्रेस के सामने अपने सपोर्ट बेस को सुरक्षित रखने की चुनौती होगी। उत्तरप्रदेश में रायबरेली से राहुल गांधी को और अमेठी से गांधी परिवार के विश्वासपात्र के एल शर्मा को खड़ा करने की बात हो या अखिलेश को अधिक से अधिक स्पेस मुहैया कराने की, ये सब कारगर साबित हुए। बढ़ी हुई।

कांग्रेस ने दलित चेतना के साथ खड़े होते हुए कास्ट सेंसस जैसे मसले को भी चुनाव में आक्रामक ढंग से उठाया। अब यह मुद्दा भी उत्तर भारत के एक बड़े तबके को कांग्रेस के प्रति झुकाव और उसमें उम्मीद जगा रहा है। लेकिन यह सवाल अहम हो जाता है कि संविधान और लोकतंत्र को कथित खतरों से बचाने वाली इस चुनावी लड़ाई के बाद कांग्रेस पार्टी अपने आप को आगे की यात्रा के लिए खुद को किस तरह से तैयार करती है। कांग्रेस के लिये मध्यप्रदेश और ओडिशा के साथ पश्चिम बंगाल जैसे राज्य विशेष तवज्जो की मांग करते हैं।

लोकसभा चुनाव के दौरान 215 सीटों पर कांग्रेस और भाजपा में सीधा मुकाबला रहा। उनमें 70 फीसद सीटें भाजपा के पक्ष में गई। यानि सीधे मुकाबले के लिये कांग्रेस को अभी काफी तैयारी करना है। उसे मुख्य प्रतिद्वंद्वी को बराबरी को टक्कर देते हुए दिखना है। बावजूद कांग्रेस के लिये जरूरी है कि वह भाजपा की उन अंदरखाने सियासी चक्रव्यूह से अपने गठबंधन व संख्या बल को बचाकर रखे। क्योंकि चार सौ पार के नारे के बाद भी बहुमत नहीं मिलना भाजपा को बहुत अखरता होगा।

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