देश में लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। अब नई सरकार के गठन की प्रक्रिया जारी है। इसमें खास बात यह है कि जब केन्द्र की नई सरकार अपना कामकाज संभालेगी तो उसे राजनीतिक मोर्चे पर भले ही दुविधा में रहे लेकिन आर्थिक मोर्चे पर अपने को बहुत ज्यादा सहज स्थिति में पाएगी।
- 2023-24 में अर्थव्यवस्था ने किया उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन
- सकल घरेलू उत्पाद में करीब 8.2 फीसदी की वृद्धि
- अर्थव्यवस्था 7 फीसदी या इससे ज्यादा की दर से आगे बढ़ी
- बढ़ती महंगाई दर कर सकती है नई सरकार को परेशान
दरअसल राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय की ओर से पिछले सप्ताह जारी किये गये आंकड़ों पर गौर करें तो पता चलता है कि वित्त वर्ष 2023-24 में भारतीय अर्थव्यवस्था ने उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन किया है। सकल घरेलू उत्पाद में करीब 8.2 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है, जबकि पिछले साल इसमें सात फीसदी की बढ़त हुई थी। इसका मतलब है कि अर्थव्यवस्था पिछले तीन साल में लगातार 7 फीसदी या इससे ज्यादा की दर से आगे बढ़ी है। आरबीआई सहित कई अनुमानों से यह स्पष्ट हो जाता है कि वर्तमान में भी वृद्धि दर करीब 7 प्रतिशत के आसपास रहने की उम्मीद है।
सबसे अहम यह है कि केन्द्र सरकार के राजकोषीय मजबूती की ओर कदम बढ़ाने के बाद अर्थव्यवस्था उच्च् दर से आगे बढ़ती नजर आ रही है। वित्त विभाग के आंकडों पर गौर करें तो टैक्स कलेक्शन में अच्छी वृद्धि की वजह से वित्त वर्ष 2023-24 में राजकोषीय घाटा जीडीपी के 5.6 फीसदी पर है, जबकि अंतरिम बजट के संशोधित अनुमानों में इसके 5.8 फीसदी तक रहने की बात कही गई थी।
आर्थिक वृद्धि और राजकोषीय स्थिति के अलावा अगली सरकार को इस तथ्य से भी राहत मिलेगी कि महंगाई के मोर्चे पर हालत में सुधार हो रहा है, हालांकि समग्र महंगाई दर अब भी भारतीय रिजर्व बैंक के लक्ष्य से अधिक है। लेकिन बैंकों और कॉरपोरेट का बहीखाता इस समय मजबूत स्थिति है। विदेशी मुद्रा भंडार भी सहज स्थिति में है। पिछले कई साल में व्यापक आर्थिक स्थिरता को बढ़ाने के नीतिगत प्रयास सफल रहे हैं और हालत दस साल पहले से काफी अलग है।
2014 में मिली थी दबावों से जूझती अर्थ व्यवस्था
एनडीए सरकार ने पहली बार 2014 में कार्यभार संभाला था। भारतीय अर्थव्यवस्था के कई तरह के दबावों से जूझ रही थी। वैसे तो जीडीपी डिफ्लेटर और रियल व नॉमिनल ग्रोथ में अंतर के बारे में कुछ सवाल उठे हैं। कुल मिलाकर देखें तो देश की आर्थिक मजबूती को सभी स्वीकार कर रहे हैं। नॉमिनल जीडीपी के हिसाब से देखें तो भारत की अर्थव्यवस्था पिछले वित्त वर्ष में 9.6 फीसदी बढ़ी है, जबकि इसके एक साल पहले इसमें 14.2 फीसदी बढ़त हुई थी।
कोरोना महामारी के बाद अर्थ व्यवस्था में सुधार
इसके अलावा यह भी अहम है कि कोरोना महामारी के बाद अर्थव्यवस्था में सुधार काफी हद तक ऊंचे सरकारी खर्च की बदौलत हुआ है। जिस पर आगे अंकुश लगाने की जरूरत होगी। जब सरकार राजकोषीय मजबूती की दिशा में और कदम बढ़ाएगी। नई सरकार के लिए यही बेहतर होगा कि वह जुलाई में पेश होने वाले बजट में राजकोषीय मजबूती पर आगे बढ़ते हुए इसे जीडीपी के 3 फीसदी या कम पर लाने का एक संशोधित क्रमिक मार्ग पेश करे। इससे बाजार का भरोसा बढ़ेगा और निजी निवेश में सुधार लाने में मदद मिलेगी। मध्यम अवधि के लिए निजी निवेश में सुधार अर्थव्यवस्था में तरक्की का सबसे अहम कारक होगा।