बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस वक्त विपक्ष को एकजुट करने में जुटे हैं। इसके लिए वे लगातार दौरे कर रहे हैं। जहां जैसी संभावना होती है वहां मुलाकात कर भाजपा के विरोध में खड़ा होने का न्यौता दे देते हैं। नीतीश इतनी जल्दबाजी में है कि वे भूल जाते हैं कि जिससे मुलाकात करने जा रहे उसका एंड रिजल्ट क्या होंगा? हाल ही में नीतीश ने झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से मुलाकात की है जिससे उन्हे नफा कम और नुकसान ज्यादा होने की संभावना बढ़ गई है।
. बिहारियों की उम्मीदों पर फिरा पानी
. लोकसभा चुनाव में दिख सकती है नाराजगी
. सीएम सोरेन बिहारियों के खिलाफ देते रहें है विवादित बयान
. भाषा और क्षेत्रियता पर खिंची है लकीर
. झारखंड में बड़ी संख्या में रहते हैं बिहारी
पिछले दिनों हाल ही में सीएम नीतीश कुमार ने बिहार के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से मुलाकात की। जब दोनों नेता साथ में बैठे और बाद में मीडिया से रुबरु हुए तो झारखंड में रह रहे तमाम बिहारियों को लगा कि कुछ हम लोगों के हितों से जुड़ी चर्चा जरूर हुई होगी। लेकिन इस तरह की उम्मीदों पर उस समय पानी फिर गया जब पता चला कि नीतीश ने विपक्षी एकजुटता के लिए चर्चा की है। इससे बिहारियों को सिर्फ निराशा ही हाथ लगी।
झारखंड में रह रहे बिहारियों की अपनी समस्याएं
झारखंड राज्य के तमाम जिलों में बड़ी संख्या में बिहारी रहते हैं। उन्हें उम्मीद थी कि भाषा का मुद्दा सहित नियोजन और स्थानीयता के मामले पर नीतीश कुमार, सीएम हेमंत सोरेन से चर्चा जरूर करेंगे और उनके पक्ष में ये मुद्दा उठाएंगे। क्योंकि उनके हक और अधिकार की बात सोरेन सरकार नहीं करती है। और न ही वो चाहते हैं कि बिहारी यहां रहें। यही कारण है कि 1932 खातियान में चपरासी और चौकीदार जैसे पदों पर सिर्फ झारखंड के निवासियों को भर्ती करने का प्रावधान कर दिया। इससे झारखंड के बिहारियों में काफी नाराजगी है। बता दें कि सोरेन सरकार की तरफ से बीते साल विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया गया। जिसमें 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति से संबंधित विधेयक पारित किया गया।हालांकि बाद में उच्च न्यायालय ने इसे खारिज कर दिया। वहीं गर्वनर ने भी इस विधेयक को लौटा दिया। इसके बाद भी झारखंड के विभिन्न हिस्सों में रहने वाले बिहार और उत्तर प्रदेश के मूल निवासियों के मन में अब भी कई तरह की आशंकाएं बनी हुई हैं।
सोरेन ने कई बार विवादित बयान दिए
सीएम हेमंत सोरेन और उनकी पार्टी की राजनीति बुनियाद आदिवासी और मूलनिवासियों के ईद-गिर्द केंद्रित रही है। जिसके चलते उन्होंने कई बार भाषा,स्थानीयता और नियोजन को लेकर विवादित बयान दिए हैं। करीब चार माह पहले आयोजित एक कार्यक्रम में सीएम सोरेन ने विवादित बयान देते हुए तंज कसा था कि बाहर से झारखंड आने वाले लोग लिट्टी चोखा और गोलगप्पे बेचकर दो तल्ला मकान बना रहे हैं लेकिन झारखंड के आदिवासी और मूल निवासी आज भी गरीबी में जीने को मजबूर हैं। सीएम यहीं नहीं रुके उन्होंने आगे कहा कि हमारी सरकार ने जब स्थानीय नीति बनाई तो उप्र और बिहार के लोगों ने इसे खारिज करा दिया।
इसलिए दहशत में हैं झारखंड के सीएम
सवाल ये है कि आखिर सीएम हेमंत सोरेन ऐसा क्यों कर रहे हैं। इसकी वजह ये है कि सीएम को राज्य के बिहारीकरण का डर सता रहा है। उन्होंने कुछ साल पहले एक बयान दिया था जिसमें उन्होंने कहा था कि झारखंड आंदोलन के समय आंदोलनकारियों की छाती पर पैर रखकर महिलाओं की इज्जत लूटते वक्त भोजपुरी भाषा में गाली गलौच होती थी। उन्होंने दावा करते हुए कहा था कि अलग झारखंड राज्य बनाने की लड़ाई क्षेत्रीय भाषा की दम पर लड़ी गई है न कि भोजपुरी और हिन्दी की बदौलत। एक इंटरव्यू में उन्होंने यहां तक कह दिया था कि मगही,भोजपुरी क्षेत्रीय भाषा नहीं है बल्कि ये सभी भाषाएं बाहर से आई हैं।
झारखंड में बड़ी संख्या में बिहारी
यहां बताना जरूरी होगा कि झारखंड राज्य के कई जिले ऐसे हैं जहां बिहारियों की संख्या बहुत ज्यादा है।राज्य के जमशेदपुर, धनबाद, बोकारो, पलामू, चतरा, हजारीबाग और रांची समेत अन्य जिलों में बड़ी संख्या में मूलतः बिहार के रहने वाले हैं। ये वो लोग हैं जो लंबे समय से झारखंड में रह रहे हैं लेकिन उनका अभी भी बिहार से संपर्क खत्म नहीं हुआ है। ऐसे में जब बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन से मुलाकात की और बिहारियों की समस्याओं का कोई जिक्र नहीं किया तो उनकी नाराजगी स्वाभाविक है। आने वाले लोकसभा चुनाव में बिहार में नीतीश को नाराजगी का सामना करना पड़ सकता है।