जस्टिस संजीव खन्ना ने सोमवार 11 नवंबर को राष्ट्रपति भवन में भारत के मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ग्रहण की। वह देश के 51वें मुख्य न्यायाधीश होंगे। उनका कार्यकाल छह महीने का होगा। बता दें जस्टिस संजीव खन्ना सुप्रीम कोर्ट के दूसरे सबसे वरिष्ठ जज हैं। सीजेआई के तौर पर शपथ ग्रहण करने से पहले तक वे राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण में बतौर कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में कार्य करते रहे हैं। इसके अतिरिक्त भोपाल स्थित राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी की गवर्निंग काउंसिल में बतौर सदस्य के भी उन्होंने जिम्मेदारी का निर्वहन किया। बता दें पूर्व सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने ही जस्टिस खन्ना का नाम आगे बढ़ाया था। DY चंद्रचूड़ रविवार 10 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के पद से सेवानिवृत्त हो चुके हैं।
जस्टिस संजीव खन्ना के नेतृत्व वाली सुप्रीम कोर्ट की डिवीजन बेंच ने वैसे तो कई फैसले लिये हैं, लेकिन उनके कुछ फैसले ऐसे हैं जो चर्चा का विषय बने। जस्टिस खन्ना वाली डिवीजन बेंच की ओर से ईवीएम के जरिए वोट डालने के बाद VVPAT मशीन की पर्चियों के सत्यापन की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया था। जस्टिस संजीव खन्ना ने यह भी कहा था कि मत गणना की मौजूदा व्यवस्था में कोई परेशानी नहीं है।
2024 में जस्टिस खन्ना सहित पांच जजों की बेंच की ओर से राजनीतिक पार्टियों को गुप्त दान देने वाली इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को असंवैधानिक करार दिया गया था। जस्टिस खन्ना ने इस पर उस समय कहा था कि यह योजना ठीक नहीं है जो मतदाता के आरटीआई के अधिकार के खिलाफ है। 2023 में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के केन्द्र सरकार के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी उस समय CJI डीवाई चंद्रचूड़ के साथ जस्टिस खन्ना सहित पांच जजों की बेंच ने जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के निर्णय को सही बताते हुए बरकरार रखा था।
2023 में ही मई के महिने में तलाक से जुड़े एक प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट ने बहुमत से अपना निर्णय सुनाया था। इस निर्णय में यह कहा गया था कि किसी भी मामले में संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट सीधे तलाक का निर्णय दे सकता है। 2019 में आरटीआई सूचना के अधिकार से जुड़े एक मामले में SC की ओर से कहा गया था कि न्यायिक स्वतंत्रता और सूचना के अधिकार के खिलाफ नहीं माना जा सकता है। इस बेंच में जस्टिस खन्ना भी शामिल थे जिन्होंने कहा था कि चीफ जस्टिस का कार्यालय, शिक्षा के अधिकार के अधीन हो सकता है। हर मामले में जजों की निजता के साथ ही साथ पारदर्शिता भी होना चाहिए।
(प्रकाश कुमार पांडेय)