होली के त्योहार का उत्साह देश भर में दिखाई दे रहा है। पूरे जोश और उत्साह के साथ होली का त्योहार मनाने की तैयारी की जा रही है। होली से ठीक एक दिन पहले छोटी होली की उमंग दिखाई दे रही है। फाल्गुन पूर्णिमा के दिन सूर्यास्त के बाद एक निश्चित मुहूर्त पर होलिका दहन किया जाएगा। इस साल होली 8 मार्च दिन बुधवार को मनाई जाएगी। होलिका आज मंगलवार 7 मार्च को दहन किया जाएगा। माना जाता है होलिका दहन को छोटी होली के नाम से भी मनाते हैं। शास्त्रों के मुताबिक होलिका दहन से जीवन से नकारात्मकता दूर होती है। होलिका की आग में अपने अंदर की नकारात्मकता दूर होती है। इसके साथ ही बुराई और अहंकार को जलाने का संकल्प लेने से जीवन में सुख समृद्धि शांति बनी रहती है। कहा जाता है होलिका दहन बुराइयों पर अच्छाइयों की विजय का प्रतीक माना जाता है।
होलिका दहन में होता है खास
होलिका दहन से करीब 10 दिन पहले लकड़ी और गो काष्ठ, कंडे और दूसरी वस्तुओं को एक जगह पर एकत्र कर होलिका बनाई जाएगी। इसके बाद होलिका दहन करने से पहले विधिवत पूजा की जाएगी। होलिका दहन समय लोग अग्नि की परिक्रमा भी करते हैं। इसके साथ ही उस पवित्र आग में गोबर से बने उपले बड़गुल्ले डाले जाते हैं। होलिका दहन के दाैरान किसान फसल के नए दाने आग में डालते हैं। इसके बाद ही नया अन्न खाना शुरू करते हैं। कहा जाता है ग्रह पीड़ा होने पर घी में भीगी हुई दो लाैंग, एक बताशा और एक पान के पत्ते पर रखकर होलिका में डालना चाहिए। इसके बाद दूसरे दिन उसकी राख शरीर पर लगाकर स्नान करने से ग्रह पीड़ा से मुक्ति मिलती है।
हिरणकश्यप की बहन है होलिका
पौराणिक मान्यता है कि असुर हिरणकश्यप की बहन होलिका को वरदान मिला था कि आग उसे जला नहीं सकती। ऐसे में वह अपने भतीजे और भगवान विष्णु के परम भक्त प्रह्लाद को गोद में लेकर लकड़ियों के ढेर पर यह सोचकर बैठती है कि प्रह्लाद जल जाएगा लेकिन इसका उलटा हो गया। होलिका जिसे आग छू भी नहीं सकती थी वह आग में जल कर भस्म हो गई। इसके साथ ही विष्णु भगवान के भक्त प्रह्लाद को कुछ नहीं हुआ वे सुरक्षित बच गए। माना जाता है कि स्वयं भगवान विष्णु ने अपने भक्त प्रह्लाद को असुर होलिका से बचाया था। इस प्रकार होलिका दहन को होलिका के पुतले को जलाकर मनाया जाने लगा।। इसके अलावा यह भी कहा जाता है कि होली के दिन द्वापर युग में विष्णु अवतार श्री कृष्ण ने राक्षसी पूतना का वध किया था। श्री कृष्ण ने राक्षसी का विषयुक्त दुग्धपान कर उसका का वध किया था। वह समय फाल्गुन मास की पूर्णिमा का था। इसके बाद से होलिका का दहन किया जाता है।।