छत्तीसगढ़ मे राज्यपाल की एंट्री और आरक्षण संशोधन विधेयक के मामले को लेकर जिस पर छत्तीसगढ़ में सियासत तेज हो गई। नए राज्यपाल की नियुक्ति होते ही कांग्रेस की उम्मीदें भी जाग उठीं हैं और कांग्रेस को उम्मीद है कि राजभवन में लंबित पड़े आरक्षण संशोधन विधेयक पर नए राज्यपाल साइन कर सकते हैं। इस मसले पर बीजेपी कांग्रेस एक बार फिर आमने सामने हैं। दोनों ही दल एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं।
- नए राज्यपाल बनते ही कांग्रेस ने गर्माया आरक्षण का लंबित मुद्दा
- आरक्षण संशोधन बिल पर दस्तखत करने की मांग
- हर बार ‘आरक्षण पर ‘रार’
- राज्यपाल की एंट्री पर आरक्षण मुद्दा
- राज्यपाल की एंट्री पर सियासत
- कांग्रेस ने नए राज्यपाल का स्वागत किया
- कांग्रेस के स्वागत पर BJP का पलटवार
- BJP ने लगाया कांग्रेस पर बड़ा आरोप
- कहा— कांग्रेस हर बात पर सियासत करती
दरअसल छत्तीसगढ़ में रामेन डेका को नया राज्यपाल बनाया गया है। नए राज्यपाल की नियुक्ति के बाद कांग्रेस फिर से उम्मीद जता रही है। इसे लेकर पूर्व मंत्री कांग्रेस नेता शिवकुमार डहरिया का कहना है कि हम नए राज्यपाल का स्वागत करते हैं। इसके साथ ही प्रदेश की जनता उम्मीद कर रही है कि नए राज्यपाल आरक्षण संशोधन विधेयक पर हस्ताक्षर कर प्रदेश की जनता के साथ न्याय करेंगे।
- कांग्रेस ने आरक्षण संशोधन विधेयक का उठा मुद्दाया
- नए राज्यपाल के आते ही जागी पुरानी उम्मीद
- राज्यपाल की नियुक्ति पर कांग्रेस की उम्मीदें
- बीजेपी-कांग्रेस एक बार फिर आमने-सामने
- कांग्रेस ने की आरक्षण संशोधन विधेयक पर हस्ताक्षर की मांग
- राज्यपाल हस्ताक्षर कर जनता के साथ न्याय करेंगे
- बीजेपी ने कांग्रेस की मांग पर किया पलटवार
- नए राज्यपाल के स्वागत पर सियासत सही नहीं
- दोनों ही दल लगा रहे आरोप-प्रत्यारोप
वहीं आरक्षण के मामले में उठे सवालों को लेकर बीजेपी का कहना है इसे लेकर जल्दीबाजी में बात करना सही नहीं है। बीजेपी ने कांग्रेस के आरक्षण बिल पर हस्ताक्षर की मांग पर पलटवार भी किया है। बीजेपी का कहना है कांग्रेस हर बात में सियासत करती है। छत्तीसगढ़ के उपमुख्यमंत्री अरुण साव ने नए राज्यपाल के स्वागत में सियासत करना सही नहीं है और रही बात आरक्षण की तो वह उनका अपना अधिकार है। उन्हें जब ठीक लगेगा तब करेंगे।
भूपेश सरकार से लंबित आरक्षण बिल
बता दें छत्तीसगढ़ में नए राज्यपाल की नियुक्ति पर तत्कालीन कांग्रेस सरकार के दौरान विधानसभा में पारित किए गये आरक्षण बिल पर जमकर सियासत होलने लगी है। नए राज्यपाल का छत्तीसगढ़ में आगमन हो चुका। जिससे के साथ ही आरक्षण संशोधन विधेयक का मसला पूरे राज्य में तूल पकड़ रहा है। जब नए राज्यपाल ने छत्तीसगढ़ में प्रभार संभाल लिया है ऐसे में देखना होगा कि लंबित पड़े आरक्षण संशोधन विधायक पर क्या सहमति बनती है।
विवाद की जड़…76 प्रतिशत आरक्षण !
बता दें छत्तीसगढ़ जब राज्य बना तब प्रदेश में अनुसूचित जनजाति को 20 प्रतिशत, अनुसूचित जाति को 16 प्रतिशत और अन्य पिछड़ा वर्ग को 14 प्रतिशत आरक्षण दिया जाता था। इस तरह से यह कुल आरक्षण 50 प्रतिशत हो जाता है। वहीं संविधान में भी 50 प्रतिशत तक आरक्षण दिए जाने का प्रावधान किया गया है। हालांकि 2012 में तत्कालीन रमन सरकार ने आरक्षण की सीमा बढ़ाई और 58 प्रतिशत आरक्षण को लेकर अधिसूचना जारी कर दी थी। इसके बाद विवाद बढ़ता गया। राज्य की आबादी के हिसाब से राज्य सरकार ने भी आरक्षण का रोस्टर जारी कर दिया। इसके तहत अजजा को 20 के स्थान पर 32 प्रतिशत, अजा को 16 के स्थान पर 12 फीसदी और अन्य पिछड़ा वर्ग को 14 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया गया था। इससे आरक्षण का दायरा संविधान की ओर से निर्धारित 50 प्रतिशत से ज्यादा हो गया।
इसके बाद कांग्रेस की भूपेश सरकार की ओर से लाये नए आरक्षण संशोधन विधेयक में अजजा वर्ग के लिए 32 प्रतिशत, अजा वर्ग के लिए 13 और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए 27 प्रतिशत के साथ ईडब्ल्यूएस के लिए 4 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया गया। जिसे जोड़े तो कुल मिलाकर 76 प्रतिशत आरक्षण हो जाता है। यही वो आरक्षण संशोधन विधायक है जो आज भी छत्तीसगढ़ के राजभवन में राज्यपाल के हस्ताक्षर के लिए लंबित पड़ा है।