राजस्थान के पूर्व सीएम अशोक गहलोत को यूं ही जादूगर नहीं कहा जाता है। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार के बाद भी गहलोत पर उंगली नहीं उठी और अब वे डिप्टी सीएम सचिन पायलट को राजस्थान से लगभग बाहर करने में कामयाब हो गए हैं क्योंकि पायलट को छत्तीसगढ़ का प्रभारी सौंपा गया है। ऐसे में सचिन पायलट को छत्तीसगढ़ की जिम्मेदारी सौंपे जाने के पीछे कई मायने निकाले जा रहे हैं।
- पायलट पर भारी पड़ गई गहलोत की जादूगरी
- मल्लिकार्जुन खरगे ने किया संगठन में फेरबदल
- सचिन पायलट को बनाया छत्तीसगढ़ का प्रभारी महासचिव
- इस बदलाव को क्या नाम दें, राजस्थान से बाहर हुए पायलट
- गहलोत हारकर भी सचिन पायलट पर पड़े भारी
- राजस्थान से इस तरह हो गए पायलट बाहर
राजस्थान के पूर्व सीएम अशोक गहलोत को यूं ही जादूगर नहीं कहा जाता है। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार के बाद भी गहलोत पर उंगली नहीं उठी और अब वे डिप्टी सीएम सचिन पायलट को राजस्थान से लगभग बाहर करने में कामयाब हो गए हैं क्योंकि पायलट को छत्तीसगढ़ का प्रभारी सौंपा गया है। ऐसे में सचिन पायलट को छत्तीसगढ़ की जिम्मेदारी सौंपे जाने के पीछे कई मायने निकाले जा रहे हैं। कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव 2024 से कुछ महीने पहले पार्टी संगठन में बड़े बदलाव किये हैं। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने अपनी टीम के 12 महासचिव और इतने ही प्रदेश प्रभारियों की नियुक्ति कर दी है। इन नियुक्तियों में दो ऐसे नाम हैं। जिन पर कांग्रेस की सियासत जानने वालों की नजरें हैं। पहला नाम कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा का है, जिन्हें यूपी से हटा दिया गया है। तो वहीं दूसरा नाम राजस्थान के पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट का है। राजस्थान के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा था। ऐसे में माना जा रहा था कि पूर्व डिप्टी सीउम पायलट को कांग्रेस आलाकमान राज्य में ही बड़ी जिम्मेदारी दे सकता है। पायलट को फिर से राजस्थान प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाए जाने के अलावा विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी दी जा सकती है। ये कयास सही साबित नहीं हो सके और इस नए फेरबदल में सचिन पायलट को राजस्थान की सियासत से लगभग बाहर ही कर दिया गया है।
कांग्रेस की हार के बाद भी गहलोत का जादू बरकरार
पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 4 राज्य में हार का सामना करना पड़ा था। इसमें से राजस्थान समेत तीन हिंदी हार्टलैंड वाले राज्य भी हैं। राजस्थान में चुनाव के दौरान अशोग गहलोत अपनी सरकार की योजनाओं के बल पर वापसी का दम भरते रहे। लेकिन गहलोत को उस समय झटका लगा, जब कांग्रेस को महज 69 सीट ही मिलीं। इससे लग रहा था अशोक गहलोत पर हार का ठीकरा फूटेगा और शायद ही कांग्रेस में उनकी अधिक चल सके, लेकिन कांग्रेस संगठन ने जो फेरबदल किया है उससे साफ है कि राजस्थान के मामले में अशोक गहलोत की ही सुनी गई है। सचिन पायलट का अशोक गहलोत के साथ काफी लंबे समय से विवाद चला आ रहा है। जिन्हें अब राजस्थान से बाहर कर दिया गया। गहलोत पहले भी कई मौकों पर कह चुके हैं कि पायलट राजस्थान के मुख्यमंत्री कभी नहीं बन सकते। जबकि राजस्थान में चुनाव के समय युवा जनता पायलट को बतौर मुख्यमंत्री की रेस में पायलट को शामिल मानती रही है। उनकी लोकप्रियता भी गाहे-बगाहे सर्वों में सामने आती रही है। अब जब सचिन पायलट को छत्तीसगढ़ का प्रभारी बना दिया गया है। जिससे साफ है कि गहलोत जो पायलट को राजस्थान की राजनीति से दूर करना चाहते थे वो उसमें सफल हो गए।
राजस्थान में 25 में 1 सीट है कांग्रेस के पास
पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट को लेकर विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद से ही कांग्रेस में अटकलें लगाई जा रहीं थीं कि अब राजस्थान में कांग्रेस की ओर से पायलट को पार्टी की कमान सौंपी जा सकती है। पायलट का लोकप्रिय चेहरा होने की वजह से कांग्रेस को खासा फायदा भी हो सकता था। लोकसभा चुनाव से महज कुछ ही महीनों पहले सचिन पायलट फिर से युवाओं और राज्य की जनता को साथ लाकर कांग्रेस को चुनाव में वापसी करवा सकते थे। पिछली बार 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने राजस्थान में शानदार प्रदर्शन करते हुए 24 सीट पर जीत दर्ज की थी। ऐसे में इस बार कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करना है तो उसे उत्तर भारत और हिंदी भाषी राज्यों में सीटों की संख्या को बढ़ाने के लिए काम करना होगा। ऐसे में सचिन पायलट को राजस्थान में ही बड़ी जिम्मेदारी देकर 25 में से अधिक से अधिक सीट जितवाने का जिम्मा सौंपा जा सकता था। जिससे यकीनन चुनाव में कांग्रेस को फायदा होता।
पायलट पर 11 सीट की जिम्मेदारी
सचिन पायलट को आदिवासी बहुल छत्तीसगढ़ राज्य का प्रभारी बनाया गया है। छत्तीसगढ़ में भी कांग्रेस को विधानसभा चुनाव में करारी हार का सामना करना पड़ा था। अब यहां लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस में फिर से नया जोश भरना होगा। राज्य में लोकसभा की 11 सीटों में इस समय बीजेपी के पास 9 सीट हैं। 2019 के चुनाव के समय छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की भूपेश सरकार थी, बावजूद इसके राज्य में बीजेपी 9 सीट जीतने में कामयाब रही थी। इस बार जब 2024 में लोकसभा चुनाव होंगे तो राज्य में बीजेपी की सत्ता होगी ऐसे में कांग्रेस को और अधिक परिश्रम करना होगा।
गुर्जर इलाकों में कांग्रेस की हार…पायलट राजस्थान से बाहर
राजस्थान में सचिन पायलट गुर्जर समाज के बड़े नेता माने जाते हैं। सचिन पायलट को एकतरफा गुर्जर मतदाताओं के वोट चुनाव में मिलते रहे हैं, लेकिन इस बार विधानसभा चुनाव में गुर्जर वोट कांग्रेस से छिटक कर बीजेपी में चले गए। राजस्थान में अलवर, दौसा,भरतपुर, बूंदी, सवाई माधोपुर ही नहीं टोंक समेत कई जिलों में गुर्जर समाज के मतदाताओं की संख्या काफी अधिक है। पिछली बार 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में गुर्जर सीटों पर कांग्रेस ने शानदार सफलता हासिल की थी। राज्य की गुर्जर बहुल 29 सीटों पर कब्जा जमाया था, लेकिन इस बार के चुनाव में कांग्रेस को 10 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा। 2023 के इस विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को गुर्जर बहुल इलाकों की 19 सीटें ही मिल सकी। राजनीतिक विशेषज्ञों की माने तो सचिन पायलट के रहते हुए राजस्थान में गुर्जरों का वोटबैंक कांग्रेस से खिसककर बीजेपी में जाना किसी बड़े झटके से कम नहीं है। पायलट को राजस्थान से निकालकर छत्तीसगढ़ की कमान सौंपने की एक वजह यह भी हो सकती है।