बस्तर में किसकी होगी ‘पौ बारह’, किसे मिलेगी सत्ता की चाबी?

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आदिवासी बहुल राज्य छत्तीसगढ़ में अब चुनावी गतिविधियां तेज हो गई हैं। 90 विधानसभा सीटों वाले इस राज्य में कांग्रेस के साथ ही मुख्य विपक्षी दल बीजेपी ने सत्ता हासिल करने की रणनीति पर काम शुरु कर दिया है। संभाग स्तर पर दोनों दल अपनी अपनी रणनीति बनाने में जुटे हैं। हम बात कर रहे हैं बस्तर संभाग की, जिसे सत्ता की चाबी कहा जाता है। कहते हैं जिसने बस्तर जीता, राज्य में सत्ता भी उसी की होगी। ऐसे में दोनों दलों का फोकस बस्तर पर है। एक ओर सत्तापक्ष जनता को अपनी 5 साल की उपलब्धि बता रहा है। वहीं दूसरी और विपक्ष सत्तापक्ष की विफलता को गिनाने के लिए डोर टू डोर पहुंच रहा हैं।

दरअसल कांग्रेस जहां बस्तर की 12 विधानसभा सीटों पर अपना कब्जा बरकरार रखना चाहती है। हाल ही में कांग्रेस ने बस्तर में संभागीय सम्मेलन आयोजित किया था। जिसमें यहां की सभी 12 सीटों पर अपना कब्जा बरकरार रखने का संकल्प लिया है। दरअसल सीएम भूपेश बघेल यहां 2018 के परफॉरमेंस को कायम रखना चाहते हैं। वहीं बीजेपी का भी पूरा फोकस इस समय बस्तर पर है। छत्तीसगढ़ में लगातार तीन बार सत्ता हासिल करने वाली बीजेपी को बस्ती की चिंता सताने लगी है। आदिवासियों का दिल जीतने की चिंता सता रही है।

बीजेपी प्रदेश प्रभारी ने संभाला बस्तर का मोर्चा

बीजेपी प्रदेश प्रभारी ओ पी माथुर और छत्तीसगढ़ के संगठन मंत्री पवन साय से साथ बस्तर में कैंप कर रहे हैं। इसकी वजह यह है कि पिछले 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी का बस्तर से सफाया हो गया था। 12 में से 11 सीट पर हार का सामना करना पड़ा था। बची हुए एक सीट भी उपचुनाव में बीजेपी के हाथ से निकल गई थी। अब बीजेपी यहां विधानसभा चुनाव से पहले पूरी ताकत लगा रही है। वहीं इस बार सर्व आदिवासी समाज ने भी चुनाव मैदान में उतरने का ऐलान कर दिया है। जिससे कांग्रेस को नुकसान हो सकता है क्योंकि बस्तर की 12 में से 11 सीटें आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित हैं। सर्व आदिवासी समाज चुनाव के मैदान में अपने प्रत्याशी उतरता है तो बस्तर का चुनावी समीकरण बदल सकता है। अनुपम प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण बस्तर की जनता अभी चुप है। लेकिन वहां का सर्व आदिवासी समाज ने चुनाव मैदान में उतरने का ऐलान कर दिया है। सर्व आदिवासी समाज चुनाव मैदान में उतरता है तो बस्तर के चुनावी समीकरण बदलेंगे क्योंकि बस्तर में सर्व आदिवासी समाज की गहरी पैठ है। ऐसी स्थिति में दोनों ही मुख्य राजनीतिक दलों के लिए बस्तर के रास्ते सत्ता तक पहुंचने का मंसूबा कही अधूरा न रह जाए।

बस्तर में किसकी होगी 'पौ बारह'

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