जस्टिस यशवंत वर्मा मामले में केन्द्र सरकार ने की महाभियोग चलाने की तैयारी!…जानें
संसद से पास हुआ महाभियोग प्रस्ताव तो फिर क्या होगा?…
दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व और इलाहाबाद हाईकोर्ट के मौजूदा जज जस्टिस यशवंत वर्मा को अब मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। दरअसल सुप्रीम कोर्ट की ओर से बनाए गए तीन सदस्यीय इन-हाउस पैनल की ओर से भी अपनी जांच में जस्टिस वर्मा के आवास में कैश होने की पुष्टि की गई है। इस मामले में 8 मई 2025 ही को तत्कालीन चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया जस्टिस संजीव खन्ना की ओर से राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को सुप्रीम कोर्ट की रिपोर्ट भेज दी गई थी। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की ओर से भी पूर्व सीजेआई की सिफारिशों को आगे की कार्रवाई के लिए लोकसभा और राज्यसभा के अध्यक्ष और सभापति को भेज दी गई है।
महाभियोग की प्रक्रिया
- संसद के किसी भी सदन में कम से कम 100 (लोकसभा) या 50 (राज्यसभा) सदस्यों द्वारा नोटिस।
- लोकसभा अध्यक्ष — राज्यसभा सभापति प्रारंभिक जांच के लिए समिति गठित करते हैं।
- समिति की रिपोर्ट के बाद सदन में प्रस्ताव आता है।
- दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत से पारित होना अनिवार्य।
- यदि पारित होता है, तो राष्ट्रपति द्वारा न्यायाधीश को हटाया जाता है।
बता दें तत्कालीन सीजेआई ने जस्टिस वर्मा के खिलाफ भ्रष्टाचार की जांच की सिफारिश की है वहीं दूसरी ओर जस्टिस वर्मा अब भी इस बात पर अड़े हुए हैं कि उनके आवास में इतनी बड़ी मात्रा में नकदी कहां से आई। इस नकदी के बारे में उनको कोई जानकारी नहीं है। ऐसे में अब केन्द्र सरकार जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने की तैयारी कर रही है। चर्चा है कि संसद के इसी मानसून सत्र में यह प्रस्ताव को लाया जा सकता है। ऐसे में अब यह सवाल उठता है कि महाभियोग प्रस्ताव Impeachment Motion आखिर क्या है। इसकी प्रक्रिया कब और कैसे शुरू की जाती है? क्या संसद के दोनों सदनों से महाभियोग का प्रस्ताव पारित होने के बाद संबंधित शख्स को सिर्फ उनके पद से हटाया जाता है या फिर किसी प्रकार की सजा दी जाती या उन्हें जेल भी होती है?
अब तक भारत में कितने जजों पर लाया गया महाभियोग प्रस्ताव ?
भारत में न्यायपालिका के खिलाफ महाभियोग Impeachment एक अत्यंत दुर्लभ और गंभीर प्रक्रिया है। जिसका उपयोग केवल उस स्थिति में ही किया जाता है जब कोई न्यायाधीश “दुराचार या अक्षमता” misbehaviour एंड incapacity का दोषी पाया जाता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124(चार) और 217 के तहत सर्वोच्च न्यायालय Supreme Court और उच्च न्यायालय High Court के जजों Judges के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया निर्धारित की गई है।
जानें भारत में अब तक कितने जजों पर महाभियोग प्रस्ताव लाया गया है?
ऐसे प्रमुख मामलों की सूची यहां दी गई है। जहां महाभियोग की प्रक्रिया शुरू की गई या उस पर गंभीर विचार हुआ
जस्टिस वी. रामास्वामी – सुप्रीम कोर्ट
वर्ष: 1991-1993
विवाद: वित्तीय अनियमितताएँ जब वे पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में थे।
स्थिति: महाभियोग प्रस्ताव लोकसभा में रखा गया, पर पास नहीं हो पाया। यह पहला मौका था जब संसद में किसी जज के खिलाफ वोटिंग हुई।
जस्टिस सौमित्र सेन – कलकत्ता हाईकोर्ट
वर्ष: 2011
विवाद: वकील रहते हुए कोर्ट से प्राप्त धनराशि का गबन और बाद में जज बनने के बाद उसे छुपाना।
स्थिति: राज्यसभा ने प्रस्ताव पारित किया, लेकिन उन्होंने लोकसभा में वोटिंग से पहले स्वेच्छा से इस्तीफा दे दिया, जिससे महाभियोग प्रक्रिया रुक गई।
जस्टिस पी.डी. दिनाकरण – सिक्किम हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश
वर्ष: 2010
विवाद: ज़मीन कब्ज़ा, आय से अधिक संपत्ति और न्यायिक भ्रष्टाचार के आरोप।
स्थिति: महाभियोग प्रक्रिया शुरू होने से पहले ही उन्होंने इस्तीफा दे दिया।
जस्टिस के.एन. शंकरण – 1990 का मामला (कम प्रसिद्ध)
विवाद: न्यायिक आचरण से संबंधित शिकायतें
स्थिति: प्रक्रिया प्रारंभ होने से पहले ही हटा दिए गए या इस्तीफा दिया।
जस्टिस सी.एस. कर्णन – मद्रास और फिर कलकत्ता हाईकोर्ट
वर्ष: 2017
विवाद: सुप्रीम कोर्ट के जजों के खिलाफ अभद्र आरोप, आदेशों की अवहेलना
स्थिति: उन्हें सुप्रीम कोर्ट ने अवमानना का दोषी ठहराकर 6 महीने की सजा सुनाई। महाभियोग नहीं चला, लेकिन इतिहास में पहली बार कोई सिटिंग जज जेल गया।
अब जस्टिस यशवंत वर्मा का मामला
पद: दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश
आरोप: निवास से भारी मात्रा में नकदी बरामद, विवादास्पद निर्णय
स्थिति: सुप्रीम कोर्ट की 3 सदस्यीय समिति ने आरोपों को ठोस माना है।
मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना ने महाभियोग की सिफारिश की है।
संभावना: संसद के मॉनसून सत्र 2025 में प्रस्ताव लाया जा सकता है।