कथा वाचक पंडित धीरेन्द्र शास्त्री के खिलाफ नागपुर में मुकदमा दर्ज हो गया है। धीरेन्द्र शास्त्री के खिलाफ अंध श्रध्दा निर्मूलन समिति ने दर्ज कराया है। पंडित धीरेन्द्र शास्त्री पर अंध विश्वास को बढ़ावा देने का आरोप है।
कौन है बागेश्वर महाराज
1-बागेश्वर महाराज मतलब कि-धीरेन्द्र शास्त्री मूलत मध्यप्रदेश की छतरपुर जिले के रहने वाले है। इनका आश्रम बागेश्वर धाम में है।
2-धीरेन्द्र शास्त्री का जन्म 1996 में छतरपुर जिले के ग्राम गड़ा में हुआ था।
3-धीरेन्द्र शास्त्री ने बी ए तक पढाई की है।
4-बागेश्वर महाराज का परिवार बहुत गरीब था जिसका जिक्र वो खुद कथाओं में करते हैं.
लेकिन उनको कुछ दिनों में अपने दादा जी की तरह दिव्य दरबार लगाने लगे।
5-लोगों को कहना है कि बागेश्वर महाराज को भी अपने दादा जी की तरह दिव्य अनुभूति का एहसास होने लगा था।
6-कुछ दिनो पहले बागेश्वर महाराज ने लंदन में भी दिव्य दरबार लगाया था।
विवादों में रहते हैं बागेश्वर महाराज
बागेश्वर महाराज इससे पहले भी विवादों में रहे । बागेश्वर महाराज अपने कथा के अंदाज और बयानों को लेकर विवाद में रहते हैं।
1 26 जून 2022 को शंकाराचार्य मंदिर में सांई प्रतिमा को लेकर दिए बयान पर विवाद हुआ बागेश्वर महाराज ने सांई प्रतिमा देखकर कहा कि जब 33 करोड़ देवी देवता है तो चांद मियां को पूजने के क्या जरूरत है।
2 बागेश्वर महाराज पिछले दिनों बीजेपी के एक नेता के साथ भी बयानो को लेकर चर्चा में रहे
3 उस समय साधना भारती जैसे कथावाचकों ने खरी खोटी सुनाई थी और कहा था कि व्यास पीठ का सम्मान रखें।
4 बागेश्वर महाराज किसी भी भगवान से बात करने का दावा करतें है।
5 उनका कहना है कि वो अपने यंत्र के जरिए वो भगवान से बात करते हैं।
बागेश्वर महाराज ने चुनौती स्वीकार करी
ताजा मामला नागपुर का है जहां बागेश्वर महाराज को श्याम मानव ने चुनौती दी थी कि वो चमत्कार करें औऱ हम हकीकत लोगों के सामने लेकर आऐंगे। ये चुनौती तीस लाख की थी उसके बाद उनके खिलाफ नागपुर मे मुकदमा दर्ज हुआ। बागेश्वर महाराज का कहना है कि वो उनकी चुनौती स्वीकार करते है लेकिन तीस लाख नहीं चाहिए।
बोलने की शैली को लेकर भी हमेशा विवादों में रहें है
बागेश्वर महाराज अपनी भाषा और शैली को लेकर भी विवादों में रहे हैं। वह अक्सर कथा सुनने आए लोगों को पागल कहकर संबोधित करते हैं। किसी अन्य के बारे में बात करते हुए कहते हैं कि उसकी ठठरी बंधे। बुंदेली भाषा में ठठरी बंधने का अर्थ मृत्यु होने और अर्थी या अंतिम शैया तैयार होने से है। महाराज के भक्त इसे उनकी वत्सलता या करुणा बताते हैं, उनका अलग स्टाइल ठहराते हैं, जबकि आलोचक इसे उनकी खराब भाषा का उदाहरण बताते हैं।