भारत संस्कृति में त्योहारों और उत्सवों का आदिकाल से ही खासा महत्व रहा है। जिसमें होली भी एक ऐसा ही त्योहार है। होली का धार्मिक ही नहीं बल्कि सांस्कृतिक दृष्टि से साखा महत्व है। पौराणिक मान्यताओं की रोशनी में होली के पर्व पर कई परिवर्तन देखने को मिले। इस मौके पर रंग ओर गुलाल डालकर लोग अपने मित्रों, प्रियजनों को रंगीन माहौल से सराबोर करते हैं। एक प्रकार से देखा जाए तो यह उत्सव प्रसन्नता को मिल-बांटने का एक अपूर्व अवसर होता है।
बता करें अंग्रेजों के जमाने में होली के उत्सव की तो उस समय भी भारतीय समाज में एक पारंपरिक और सांस्कृतिक पर्व के रूप में मनाया जाता था, लेकिन अंग्रेज़ों के शासन के दौरान इस परंपरा में कुछ बदलाव और प्रभाव भी आए थे। ब्रिटिश साम्राज्य के तहत भारत में विभिन्न सामाजिक, राजनीतिक, और सांस्कृतिक बदलावों के कारण होली को लेकर कुछ नई प्रथाएँ और अवरोध उत्पन्न हुए थे। फिर भी यह त्योहार भारतीय समाज में अपनी पुरानी महिमा के साथ मनाया जाता रहा। आइए जानते हैं कि अंग्रेजों के समय में होली कैसे मनाई जाती थी।
अंग्रेजों का होली पर असर
अंग्रेजों के शासनकाल में भारतीय संस्कृति, त्योहारों और परंपराओं पर एक प्रकार का साम्राज्यवादी प्रभाव पड़ा था। अंग्रेज़ों ने भारतीय समाज और संस्कृति पर प्रभाव डालने के साथ-साथ कई त्योहारों की सार्वजनिक धूमधाम को सीमित करने की कोशिश की थी…अंग्रेज़ों ने भारतीय धर्म और सांस्कृतिक उत्सवों को सामान्य रूप से “हिंसक” या “अराजकता” के रूप में देखा। इसका असर होली जैसे त्योहारों पर पड़ा…कुछ जगहों पर अंग्रेज़ों ने सार्वजनिक रूप से होली मनाने पर रोक लगाई, विशेष रूप से उन स्थानों पर जहाँ अत्यधिक शराब और उन्मादपूर्ण व्यवहार होता था… इसके बावजूद, होली का त्योहार भारतीय समाज में निजी स्तर पर और परिवारों में बड़े धूमधाम से मनाया जाता था।
होलिका दहन और रंगों का खेल
अंग्रेजों के प्रभाव के बावजूद, भारत में होली का पारंपरिक रूप में आयोजन जारी रहा। होलिका दहन की परंपरा वैसे ही जारी रही। जिसमें लोग बुराई पर अच्छाई की विजय की भावना से होलिका जलाते थे। रंगों से खेलने की परंपरा भी बनी रही, लेकिन कुछ क्षेत्रों में रंगों के साथ शरारत करने या सार्वजनिक स्थानों पर अधिक उत्तेजना फैलाने से बचने की कोशिश की जाती थी। अंग्रेज़ों ने यह सुनिश्चित किया कि होली का उल्लास नियंत्रण में रहे और इसका रूप ज्यादा उन्मादी या हिंसक न हो।
होलिका दहन में शराब और उन्माद
अंग्रेज़ों के समय में, खासकर बंगाल और अन्य हिस्सों में, होली के दिन शराब पीने और उन्मादपूर्ण तरीके से रंग खेलने की कुछ परंपराएँ थीं। अंग्रेज़ों ने इसका विरोध किया क्योंकि वे इसे अनुशासनहीनता और अराजकता के रूप में देखते थे। हालांकि, होली के पारंपरिक तत्वों को बढ़ावा देने के लिए अंग्रेज़ों के शासनकाल में कई स्थानों पर सार्वजनिक उत्सवों को नियंत्रित किया गया था।
ब्रिटिश अधिकारियों का होली के प्रति दृष्टिकोण
ब्रिटिश अधिकारियों और कर्मचारियों की मानसिकता भारतीय त्योहारों और परंपराओं के प्रति नकारात्मक थी। वे होली जैसे उत्सवों में भाग नहीं लेते थे। हालांकि कुछ अंग्रेज़ अधिकारी भारतीय संस्कृति से प्रभावित हो सकते थे, लेकिन अधिकांश ने होली के उत्सवों से बचने की कोशिश की, क्योंकि वे इसे अत्यधिक शोर-शराबा और उन्मादी व्यवहार से जोड़ते थे। कुछ अंग्रेज़ अधिकारी स्थानीय लोगों के साथ मिलकर रंग खेलते थे, लेकिन यह बहुत कम था। मुख्य रूप से एक पारिवारिक या व्यक्तिगत स्तर पर होता था।
सामाजिक और सांस्कृतिक बदलाव
अंग्रेज़ों के शासनकाल में भारतीय समाज में भी कुछ बदलाव आए। जिनका प्रभाव होली के मनाने के तरीके पर पड़ा। वर्ग विभाजन और जातिवाद की भावना अंग्रेज़ों द्वारा बढ़ाई गई थी। जिसके कारण होली का पर्व भी कभी-कभी सामाजिक भेदभाव का कारण बनता था। अंग्रेज़ों के शासन में समाज में सांस्कृतिक दबाव था। जिससे कुछ परिवारों ने होली को थोड़ा हल्के रूप में मनाना शुरू कर दिया। हालांकि, गांवों और छोटे शहरों में यह उत्सव पूरी धूमधाम से मनाया जाता था।
महात्मा गांधी और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम
महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान होली के पर्व ने एक सामाजिक और राजनीतिक रूप ले लिया। गांधी जी ने होली को एक संप्रदायिक एकता और हिंदू-मुस्लिम भाईचारे के प्रतीक के रूप में मनाने की बात की। गांधी जी ने होली के दिन भारत के विविध समुदायों के बीच एकता को बढ़ावा देने के लिए इसे एक माध्यम बनाया। इस समय में होली को एक राजनीतिक संघर्ष और राष्ट्रीयता का हिस्सा भी माना जाने लगा। यह सांस्कृतिक उत्सव स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा बन गया।
पारंपरिक उत्सव की जारी परंपरा
अंग्रेज़ों के समय में भी होली का आयोजन गांवों और छोटे शहरों में पुराने तरीके से किया जाता रहा। गांवों में होली के दिन पारंपरिक रूप से संगीत, नृत्य, और रंग खेलना जारी रहा, और लोग इस दिन को परिवार और मित्रों के साथ बिता कर खुशियाँ मनाते थे। खासकर उत्तर भारत, बंगाल और पंजाब में होली के आयोजन की परंपरा बहुत मजबूत थी। यह दिन खुशी, रंग, और उल्लास का पर्व बनकर रहा।
अंग्रेजों के शासनकाल में होली का उत्सव पारंपरिक रूप से मनाया जाता था, लेकिन अंग्रेज़ों के द्वारा भारतीय संस्कृति और उत्सवों पर कड़ा नियंत्रण रखा जाता था। अंग्रेज़ों ने होली की सार्वजनिक धूमधाम को कुछ हद तक सीमित किया। विशेषकर उन्मादपूर्ण और शराब पीने की परंपराओं को। इसके बावजूद भारतीय समाज में होली को एक पारंपरिक और सांस्कृतिक उत्सव के रूप में मनाया जाता रहा और महात्मा गांधी जैसे नेताओं ने इसे एकता और स्वतंत्रता संग्राम के प्रतीक के रूप में भी देखा।…प्रकाश कुमार पांडेय