सदस्यता अभियान में जुटी बीजेपी को जानें क्यों आ रही अपने वयोवृद्ध सदस्यों की याद…जानें बीजेपी के किस बुजुर्ग नेता को नड्डा ने दिलाई फिर सदस्यता

BJP membership campaign organization festival senior party leader LK Advani BhulaiBhai Murali Manohar Joshi

लोकसभा चुनाव के बाद बीजेपी अपने संगठन को नए सिरे से तैयार करने में जुटी है। इसके लिए उसने देशव्यापी सदस्यता भी अभियान शुरु किया है। सदस्यता अभियान में बीजेपी देश भर में करीब 10 करोड़ नए सदस्य बनाने की दिशा में काम कर रही है। यह उसका लक्ष्य रखा है। लेकिन आप नहीं जानते होंगे कि मौजूदा बीजेपी के सबसे उम्रदराज सदस्य कौन हैं। इसमें पार्टी के पितृपुरुष कहे जाने वाले एलके आडवाणी किस नंबर पर आते हैं?

कभी विधायक रहे भुलई भाई हैं सबसे उम्रदराज सदस्य

उत्तरप्रदेश के कुशीनगर जिले के रहने वाले श्रीनारायाण उर्फ भुलई भाई आधिकारिक तौर पर बीजेपी के सबसे उम्रदराज सदस्यों में से पहले नंबर पर हैं। घोषित तौर पर भुलई भाई की उम्र करीब 108 साल है। वे 2 बार विधायक भी चुने गए थे, भुलई भाई अभी भी यदाकदा राजनीतिक और सार्वजनिक मंचों पर दिखाई दे जाते हैं।
बता दें भुलई भाई ने भारतीय जनसंघ से अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की थी। राजनीति पैर रखने से पहले वे सरकारी नौकरी में थे। एमए तक शिक्षित भुलई भाई को साल 1974 में जनसंघ ने यूपी की नौरंगिया विधानसभा सीट से अपना उम्मीदवार बनाया था। इस चुनाव में भुलई ने कांग्रेस के बैजनाथ प्रसाद को परास्त किया था। साल 1977 में वे दूसरी बार फिर जनता पार्टी के टिकट पर इस सीट से उम्मीदवार बन और जीत हासिल की।

1980 में बीजेपी की स्थापना हुई तो भुलई विधानसभा चुनाव में कमल फूल के चुनाव चिन्ह्सिं पर नौरंगिया सीट से मैदान में उतरे, लेकिन उस समय त्रिकोणीय मुकाबला होने के चलते जीत नहीं मिली वे तीसरे नंबर पर पहुंच गए थे। इसके बाद 1985 और 1989 के चुनाव में भी भुलई भाई ने इसी सीट से चुनाव लड़ा लेकिन जीत नहीं मिली। आखिर में वे चुनावी राजनीति छोड़कर भुलई स्थानीय संगठन की राजनीति में सक्रिय हो गए।

भुलई भाई के बाद है लालकृष्ण आडवाणी का नंबर

96 साल के लालकृष्ण आडवाणी को भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक माना जाता है। उन्हें हाल ही में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने सदस्यता दिलाई थी। संघ के जरिए राजनीति में आने वाले लालकृष्ण आडवाणी बीजेपी के सबसे लंबे समय तक पार्टी के अध्यक्ष रहे हैं। आडवाणी दो बार लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे और अटल बिहारी से पहले मोरारजी देसाई की सरकार में वे केन्द्रीय मंत्री भी रहे हैं। साल 2019 तक वे लोकसभा के सांसद रहे। बता दें लालकृष्ण आडवाणी करीब पिछले 5 साल से सक्रिय राजनीति से दूर अपने घर पर ही हैं। बीजेपी का पितृपुरुष भी उन्हे कहा जाता है। साल 1984 के लोकसभा चुनाव में दो सीटों पर बीजेपी को जीत मिली थी। बीजेपी आडवाणी के नेतृत्व में तीन अंकों वाली पार्टी बनी। साल 2009 के लोकसभा चुनाव में आडवाणी बीजेपी की ओर से पीएम पद के भी दावेदार थे।

तीसरे नंबर पर हैं बीजेपी में मुरली मनोहर जोशी

बीजेपी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और वर्तमान में पार्टी के मार्गदर्शक मंडल सदस्य 90 वर्षीय मुरली मनोहर जोशी ने प्रोफेसर की नौकरी छोड़कर राजनीति में कदम रखा था। जोशी बीजेपी के तीसरे राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे हैं। आडवाणी की तरह मुरली मनोहर जोशी भी साल 2019 तक लोकसभा सांसद रहे। आडवाणी की तरह जेपी नड्डा ने मुरली मनोहर जोशी को भी पार्टी की सदस्यता दिलाई और पर्ची कटवाई है। केंद्र में जब एनडीए की सरकार बनी थी तब जोशी गृह और शिक्षा जैसे अहम विभाग के मंत्री रहे थे। उनकी गिनती एक समय में बीजेपी के मुखर नेताओं में होती थी। 1977 में पहली बार वे उत्तराखंड की अल्मोड़ा लोकसभा सीट से सांसद चुने गए थे। अल्मोड़ा के अतिरिक्त मुरलीमनोहर जोशी यूपी की वाराणसी और कानपुर लोकसभा सीट से भी सांसद रह चुके हैं।

बीजेपी के वयोवृद्ध सदस्यों की सूची में 89 साल के शांता कुमार का नाम भी शामिल है। वे भी बीजेपी के सबसे उम्रदराज सदस्य हैं। शांताकुमार कभी हरियाणा के मुख्यमंत्री और केंद्र सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं।फिलहाल वे सक्रिय राजनीति से दूर हैं। हालांकि बीच-बीच में शांति कुमार के बयान राजनीतिक गलियारों में सुर्खियां जरूर बटारते रहते हैं। हिमाचल प्रदेश की कांगड़ा लोकसभा सीट से 4 बार सांसद रहे शांता साल 1963 में सक्रिय राजनीति में आए थे।

साल 1972 में हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव में भी उतरे और जीत हासिल की। इसके बाद 1977 में उन्हें बीजेपी ने हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री बनाया था। वे दो बार सीएम के पद पर रहे हैं।इतना ही नहीं 1999 में शांता कुमार अटल जी की सरकार में मंत्री भी रहे। शांता कुमार भी 2019 तक लोकसभा सांसद रहे हैं।

इस सूची में 88 साल के करिया मुंडा का भी नाम शामिल है। उनकी भी गिनती बीजेपी के उम्रदराज नेताओं में होती है। झारखंड की राजनीति में कभी कद्दावर नेता रहे करिया मुंडा ने लोकसभा के डिप्टी स्पीकर तक का सफर तय किया था। वे अटल बिहारी और इससे पहले मोरारजी की सरकार में मंत्री भी रहे हैं। खूंटी लोकसभा सीट से सांसद और खिजरी सीट से विधायक रहे करिया मुंडा साल 2000 में जब झारखंड अलग राज्य बना तो बीजेपी मे वे मुख्यमंत्री की रेस में सबसे आगे थे लेकिन आदिवासी बेल्ट की राजनीति की वजह से वे पिछड़ गए। 2019 के बाद से मुंडा को भी बीजेपी भूल गई, और वे सक्रिय राजनीति से दूर हो गए।

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