देश में बाबा भोलेनाथ के कई मंदिर है जिनके साथ कुछ न कुछ कहानी जुड़ी हुई है. ऐसा ही एक मंदिर बिहार के समस्तीपुर में भी मौजूद है. इस मंदिर को खुदनेश्वर धाम के नाम से जाना जाता है. यहां बाबा के शिवलिंग के साथ एक मजार की भी विधि विधान से पूजा की जाती है. गर्भ गृह में बाबा का शिवलिंग और मुस्लिम महिला भक्त की मजार एक साथ मौजूद है. बता दें कि मजार की पूजा होने की कहानी भी बड़ी रोचक है. कहा जाता है कि यह बाबा की परम महिला भक्त की मजार है जो धर्म से तो मुस्लिम थी लेकिन उन्होंने बाबा की भक्ति में अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया. यहां देव स्थान पूरे विश्व में एक अनोखी धरोहर है , जिसके दर्शन करने दूर दूर से हिंदु मुस्लिम दोनों श्रध्दालु आते हैं.
मंदिर से जु़ड़ी है कहानी
कहा जाता है कि आज के समस्तीपुर में पीर बख्श और ख़ैर निशा नाम के गरीब मुस्लिम दंपति रहा करते है. उनकी बेटी खुदनी रोजाना गांव के जंगल में गाय चराने जाती थी. एक दिन उसकी गाय ने दूध देना बंद कर दिया. इसके बाद से खुदनी गाय की और अच्छे से देखभाल करने लगी. एक दिन उसने देखा कि गाय जंगल के एक स्थान पर अपना दूध गिरा रही है. हालांकि ऐसा कई दिनों तक ऐसा चलता रहा. खुदनी ने जब अपने माता पिता को यह बात बताई तो उन्होंने उस स्थल पर खुदाई करवाई. वहां शिवलिंग पर प्रहार करते हुई धारा फूट पड़ी . हालांकि इसके बाद आस पास के लोगों ने पूजा अर्चना करी जिसके बाद रक्त की धारा बंद हुई.बाबा खुदनेश्वर व खुदनी बीबी की मजार की यह कहानी स्थानीय लोगों के बीच काफी प्रसिध्द हैं.
शिवलिंग को पूजने पर हुई कैद
इस समय तक देश में मुस्लिम शासकों का शासन शुरू हो चुका था. शिवलिंग से रक्त बहने की घटना आस पास के गांव में फैल गई थी जिसके बाद वहां पूजा होने लगी. खुदनी भी तभी से उस शिवलिंग की भक्ति भाव से पूजा करने लगी. उसका विवाह रहमत अली नाम के युवक से हुआ . वो भी इस्लाम धर्म में बुतपरस्ती के खिलाफ जाते हुए शिवलिंग पूजा करने लगा जिसके चलते उसे दिल्ली के बादशाह कुतुबुदीन ऐबक ने कैद कर लिया. हालांकि भोले बाबा की कृपा से बादशाह ने कुछ समय बाद खुदनी के पति को स्थानीय जागीरदारी देकर ससम्मान रिहा कर दिया.
खुदनी की थी अंतिम इच्छा
इस्लाम धर्म की होने के बाद भी खुदनी भोले बाबा की बहुत बड़ी भक्त थी. पति की रिहाई के बाद से तो खुदनी बीबी ने अपना सारा जीवन भोले बाबा की भक्ति में समर्पित कर दिया. उनकी अंतिम इच्छा थी कि उन्हें मरने के बाद बाबा भोलेनाथ के शिवलिंग के पास दफनाया जाएं. बस उसी समय से लोगों ने उनकी मजार बना दी. तभी से शिवलिंग के साथ पाक मजार की पूजा भी होती चली आ रही है.