इन दिनों देश की राजनीति का केंद्र बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार दिखाई दे रहे हैं। भाजपा से लेकर तमाम राजनैतिक दलों की नजरें नीतीश पर लगीं हुईं हैं। वजह ये है कि वे विपक्षी दलों को एकजुट करने में लगे हैं और भाजपा लगातार उनकी गतिविधियों पर नजर टिकाए हुए है। इधर नीतीश कुमार मौके पर चौका लगाने की तैयारी में बताए जा रहे हैं। वे सांसादों और विधायकों से वन टू वन मीटिंग कर उनकी नब्ज टटोलने में लगे हुए हैं। वहीं दूसरी तरफ बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी और केंद्रीय मंत्री रामदास आठवले जैसे कई नेता दावा कर रहे हैं कि नीतीश कुमार भाजपा का थामन थाम सकते हैं। आइए जानते हैं नीतीश के भाजपा का थामन थामने के ये पांच कारण हो सकते हैं।
पहला कारण
कुछ दिन पहले ही सीएम नीतीश कुमार ने अधिकारियों से कहा था कि हमे चुनाव के लिए तैयार रहना चाहिए। उन्होंने यहां तक कह दिया था कि चुनाव कभी भी हो सकते हैं,इसलिए हमें विकास कार्यो में तेजी लाना पड़ेगी। इसके अलावा नीतीश अपने विधायकों और सांसदों को हर एक परिस्थिति से निपटने के लिए तैयार रहने को कहते बताए जा रहे हैं। उन्हे आशंका है कि चुनाव कभी भी हो सकते हैं। यहां यह बताना जरूरी है कि नीतीश कुमार की रणनीति को उनके अपने लोग भी नहीं समझ पाते हैं।वे कब और कौन सा कदम उठा दें किसी को नहीं मालूम। नीतीश का चुनावी प्लान और अपनों से बंद कमरे में चर्चा का मतलब सियासी पंडित यही निकाल रहे है कि नीतीश कभी भी कोई बड़ा कदम उठा सकते हैं।
दूसरा कारण
सीएम नीतीश के बारे में सियासी गलियों को एक और बड़ी चर्चा अक्सर सुनाई देती है। वो ये है कि नीतीश कभी भी दबाव की राजनीति कतई पसंद नहीं करते हैं। ऐसे ही कुछ दबाव के चलते उन्होंने पिछली बार लालू प्रसाद यादव के दबाव को बर्दाश्त नहीं किया और उनको दो मिनिट में बाय बाय कह दिया। यदि इस बार भी उन पर कहीं कोई दबाव आया तो उन्हे बड़ा निर्णय लेने में देर नहीं लगेगी। बताया जा रहा है कि इस बार भी राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव चाहते हैं कि उनका बेटा तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री बने। इसके लिए वे लगातार नीतीश पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि इसमें कितनी सच्चाई है कोई नहीं जानता। फिर भी यदि ऐसा है तो नीतीश इस तरह का दबाव बर्दाश्त नहीं करेंगे। यदि बड़ा फैसला नीतीश करते हैं तो इसके पीछे एक कारण यह भी हो सकता है।
तीसरा कारण
बिहार की सियासी उथल पुथल के बीच सीएम नीतीश कुमार ने राज्य के विधायकों और सांसदों से वन टू वन चर्चा की है। जेडीयू विधायक रामविलास कामत का कहना है कि सीएम ने क्षेत्र की समस्याओं और विकास को लेकर चर्चा की है। सीएम ने विधायकों और सांसदों से कहा कि कहीं कोई विकास कार्यों में समस्या हो तो सीधे मुझसे चर्चा करें। इसके लिए आगे की रणनीति पर बात हुई लेकिन दूसरी तरफ जानकारों का मानना है कि विधायकों और सांसदों विकास कार्यो से चर्चा के बहाने नीतीश कुमार ने नब्ज टटोलने की कोशिश की है। कौन कितना उनका साथ देगा उस पर भी बात होने की बात बताई जा रही है।
चौथा कारण
लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा ने दस सीटों पर फोकस करना शुरु कर दिया है। जिसमें वाल्मीकिनगर,गोपालगंज,वैशाली,झंझारपुर, सुपौल, किशनगंज,पूर्णिया, मुंगेर, नवादा और गया शामिल हैं। नीतीश कुमार जानते है कि भाजपा बहुत तेजी से बिहार को साधने में लगी हुई है। यहां बार बार केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह का दौरा और कई भाजपा नेताओं का ढेरा बिहार के जनमानस को बदलने की कोशिश में लगे हुए है। यदि भाजपा यहां कामयाब हो गई तो नीतीश के लिए मुश्किलें खड़ी हो जाएंगी। इसलिए सीएम नीतीश कुमार जानते हैं कि सत्ता से बाहर हुए तो उनकी मुश्किलें बढ़ सकती हैं।
पांचवां कारण
केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी के दावों को लेकर भी बिहार में खूब चर्चा हो रही है। पटना में हुई विपक्षी बैठक को लेकर तंज कसते हुए कहा था कि नीतीश का कोई भरोसा नहीं है वे कभी भी किसी के साथ जा सकते हैं। उन्होंने दावा करते हुए कहा कि कुछ दिनों बाद पता चलेगा कि लोकसभा चुनाव 2024 से पहले नीतीश फिर भाजपा के साथ आ जाएंगे। इसके अलावा राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी ने भी दावा किया है कि नीतीश कुमार एक बार फिर एनडीए में चले जाएंगे लेकिन तेजस्वी को किसी भी हाल में मुख्यमंत्री नहीं बनाएंगे। वे केवल तेजस्व यादव को लॉपीपॉप दिखा रहे हैं। बता दें कि मांझी के बेटे के नीतीश मंत्रिमंडल से इस्तीफा देने के बाद से प्रदेश का सियासी माहौल गर्म है।