स्त्री- पुरुष संबंधों पर फिसली थी नीतीश की जुबान…उसी दिन लिखी जाने लगी थी पलटीमारने की स्क्रीप्ट,विपक्ष की एकता को तोड़ने की मुहिम में सफल रही बीजेपी

Bihar Politics India Alliance CM Nitish Kumar BJP NDA

भाजपा करीब पिछले दो से ढाई महीने से विपक्ष की एकता को तोड़ने और उसके खिलाफ जो मनोवैज्ञानिक युद्ध चला रहा थी। उसमें उसे लगभग कामयाबी मिल ही गई है। इस युद्ध के दो प्रमुख लक्ष्य थे। जिसमें पहला लक्ष्य था बिहार के बाद महाराष्ट्र और कर्नाटक को एक बार फिर अपने लिए 95 से सौ प्रतिशत स्ट्राइक रेट मुहैया कराने वाले प्रदेशों में शामिल करना। वहीं दूसरा लक्ष्य बसपा सुप्रीमो मायावती को यूपी में इंडिया गठबंधन के साथ जाने से रोकना। इन दोनों लक्ष्य में बीजेपी लगभग सफल हो गई है। विपक्ष के गठजोड़ की साख नष्ट कर दी गई है। जिसका सबसे दिलचस्प नमूना बिहार में देखा जा रहा है।

बीजेपी से जुड़े रणनीतिकारों की माने तो नीतीश कुमार को दोबारा एनडीए में लाने से विपक्ष का इंडिया महागठबंधन टूट चुका है। वह साल 2019 के चुनाव की तरह एक बार फिर बिहार में लोकसभा की सभी 40 सीटें जीतने की स्थिति में पहुंच सकती है। दरअसल 2022 से बिहार के सीएम नीतीश कुमार की कोशिशों के चलते ही गैर-बीजेपी विपक्ष की एकजुटता बनी थी। उनके एनडीए के साथ चले जाने से देश में यह संदेश गया है कि इस बार भी विपक्षी एकता का कोई प्रभावी नेता चुनाव में पीएम नरेंद्र मोदी को चुनौती नहीं दे पाएगा। दरअसल इसके लिए पिछले दो से ढाई महीने में दो तरह की सियासी चाल चली गईंं। पहली बिहार के सीएम नीतीश कुमार को बीमार बताने के साथ-साथ उन्हें लालू प्रसाद यादव और उनके बेटे तेजस्वी प्रसाद यादव की साजिश का शिकार बताया गया। खबरों में लगातार इस तरह की चर्चा को गर्म रखा गया कि नीतीश कुमार इंडिया गठबंधन में अपनी उपेक्षा से दुःखी हैं और एक बार फिर से एनडीए में आने की कगार पर पहुंच चुके हैं। इस मनोवैज्ञानिक युद्ध में प्रमुख रणनीतिकार केन्द्रीय मंत्री अमित शाह से लेकर गिरिराज सिंह, सुशील मोदी और जीतनराम मांझी रहें। जिन्होंने अपना-अपना पार्ट बखूबी अदा किया।

दरअसल जिस दिन स्त्री और पुरुष संबंधों को लेकर विधानसभा में नीतीश की जुबान फिसली थी उसी दिन से यह सिलसिला भी शुरू हो गया था। जीतनराम मांझी ने आरोप लगाया था कि नीतीश कुमार को साजिश के तहत एक खुफिया दवा दी जा रही है। जिससे वे मानसिक संतुलन खो दें। साथ में दूसरे नेता कर हे थे कि लालू प्रसाद यादव नीतीश कुमार के नीचे से कुर्सी खींचने की योजना पर कभी भी अमल कर सकते हैं। जिससे सीएम की कुर्सी पर बेटे तेजस्वी प्रसाद को बैठाया जा सके। वहीं दूसरी ओर अचानक केन्द्रीय गृहमंत्री और बीजेपी के चाण्क्य कहे जाने वाले अमित शाह की अेर से यह संदेश दिया गया कि अगर नीतीश कुमार की ओर से प्रस्ताव आए तो विचार किया जा सकता है। वैसे ही मांझी से कहलवा दिया गया कि नीतीश एनडीए में आने पर उन्हें कोई आपत्ति नहीं होगी। अब बिहार में इंडिया गठबंधन के सामने बड़ी चुनौती यह थी कि बीजेपी के मनोवैज्ञानिक हमले को किसी भी तरह कामयाब होने से रोका जाए। लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी प्रसाद ने अपनी तरफ से बयानबाजी पर संयम रखा। 2015 की तरह आरजेडी और जेडीयू के बीच किसी तरह की कोई खटपट नहीं देखी। लेकिन बीजेपी की योजना फुलप्रुफ थी। जिसका रास्ता कांग्रेस की कार्यशैली धीमी गति के साथ भ्रम पैदा करने वाली शैली ने इसे साफ कर दिया। वैसे तो नीतीश कुमार यह स्पष्ट संकेत दे चुके थे कि अगले विधानसभा चुनाव में वे तेजस्वी के पक्ष में नेतृत्व की जिम्मेदारी छोड़ने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं। लेकिन इसकी भरपाई उनकी राष्ट्रीय स्तर पर मुख्य भूमिका से हो। और यह काम कांग्रेस को पूरा करना था, इंडिया गठबंधन की पटना बैठक में ही यदि नीतीश कुमार को संयोजक बना दिया जाता तो उसका लाभ मिलता। नीतीश के लिए इंडिया गठबंधन में रहते केंद्रीय राजनीति में आगे बढ़ने की संभावनाएं खुली रहतीं। लेकिन संयोजक बनाने के सवाल पर उपजे गतिरोध में नीतीश कुमार को अपने भविष्य की चिंता दिखाई देने लगी, और वे एक बार फिर पाला बदलकर एनडीए में जा बैठे।

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