बिहार की राजनीति : कुर्मी वोटों में सेंधमारी की तैयारी… आरसीपी सिंह की आवाज से किसे नफा-किसे नुकसान

बिहार में अगले साल 2025 में विधानसभा चुनाव होना हैं, लेकिन इससे पहले राज्य में एक के बाद एक नए राजनीतिक दल सामने आते जा रहे हैं। प्रशांत किशोर पीके की जन सुराज पार्टी के बाद अब राज्य के सीएम नीतीश कुमार के करीबी रहे आरसीपी सिंह भी अपनी नई पार्टी बनाने जा रहे हैं, इसका ऐलान भी कर दिया गया है। इस पार्टी का नाम ‘आप सबकी आवाज’ रखा है।

2025 के विधानसभा चुनाव में आरसीपी सिंह ने बिहार की 243 विधानसभा सीटों में से 140 सीट पर अपनी पार्टी के उम्मीदवार उतारने का ऐलान भी कर दिया है। ऐसे में अब यह सवाल उठता है कि आरसीपी सिंह नई पार्टी बनाकर आखिर विधानसभा के चुनाव में किसके लिए सिरदर्द बनेंगे? किसका वोट कतरेंगे।

कभी बिहार में नीतीश कुमार की उंगली पकड़कर राजनीति का ककहरा सिखने वाले आरसीपी सिंह केंद्रीय मंत्री और जनता दल यूनाइटेड के राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद पर भी रह चुके हैं। हालांकि नीतीश कुमार के साथ रिश्तेों में खटास टाने के बाद आरसीपी सिंह ने पिछले साल 2023 में बीजेपी का दामन थाम लिया था। लेकिन बिहार में हुए सियासी बदलाव के बाद वे राज्य की राजनीति में अलग-थलग पड़ गए थे। पिछले करीब दो साल से आरपी सिंह सियासी बियाबान में रह रहे थे।​ जिसके चलते बीजेपी से उनका मोहभंग हो गया। अब आरसीपी सिंह अपनी नई पार्टी बनाने का ऐलान कर दिया है।

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सरदार पटेल की जयंती पर की पार्टी घोषित

आरसीपी सिंह वैसे तो पिछले कई दिनों से अपनी नई पार्टी को लेकर सियासी सुर्खियों में थे, लेकिन वे मौके की तलाश में थे। अब उन्होंने दिवाली के साथ ही साथ सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती के दिन को चुना। इससे साफ जाहिर हो रहा है कि आरसीपी सिंह की नजर किस वर्ग के वोटबैंक पर है। बता दें आरसीपी सिंह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह क्षेत्र नालंदा ही नहीं बल्कि सीएम के सजातीय यानी कुर्मी समुदाय से भी ताल्लुक रखते हैं।
ऐसे में आरसीपी सिंह की नजर कुर्मी वोटबैंक पर तो है ही वे इसके साथ ही खुद को कुर्मी नेता के तौर पर भी स्थापित करने की जुगत में हैं। देश भर में कुर्मी समाज अपना सियासी मसीहा सरदार बल्लभ भाई पटेल को मानता है। यही वजह है कि आरसीपी ने सरदार पटेल की जयंती पर अपनी राजनीतिक पार्टी की आधारशिला रखते हुए कुर्मी समुदाय के वोटर्स को सियासी संदेश देने का भी प्रयास किया है।

आरसीपी भी नीतीश की तरह कुर्मी नेता

बिहार में नीतीश कुमार का कोर वोटबैंक कुर्मी समुदाय को माना जाता है। नीतीश कुमार की ओर से कुर्मी और कोइरी समीकरण के जरिए बिहार की सियासत में अपनी मजबूत पकड़ बनाई। उसी के सहारे दो दशक से वे अपना दबदबा बनाए हुए हैं। जनता दल यू में एक समय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बाद आरसीपी सिंह को ही दूसरे नंबर का नेता माना जाता था। वे सबसे मजबूत नेता थे। अब आरसीपी सिंह के करीबी लोगों का कहना है नीतीश कुमार के कमजोर होने के बाद आरसीपी बड़े कुर्मी नेता के रूप में स्थापित हो सकते हैं। इसमें उन्हें सियासत में जेडीयू कार्यकर्ताओं का भी समर्थन मिल सकता है। सियासी तौर पर नीतीश के कमजोर पड़ने के चलते कुर्मी वोटर्स खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं।
बता दें वैसे तो आरसीपी सिंह पिछले कई दिनों से सीएम नीतीश कुमार और बीजेपी के खिलाफ सीधे तौर कुछ भी बोलने से बच रहे थे, लेकिन दो साल तक सियासी वनवास काटने के बाद अब बाहर निकले तो नई पार्टी का ऐलान किया। आरसीपी सिंह के समर्थकों ने राजधानी पटना में लगाएं हैं। होर्डिंग में टाइगर अभी जिंदा का स्लोगन भी समर्थकों ने लिखा है। नई सियासी पार्टी के गठन के साथ ही आरसीपी सिंह ने नीतीश कुमार को लेकर हमला बोला, हालांकि बहुत सख्त तेवर नहीं दिखाया। इस तरह आरसीपी सिंह ने अपना नया सियासी दल बनाकर जेडीयू ही नहीं बल्कि बिहार में बीजेपी को भी अपनी ताकत का ऐहसास वे कराना चाहते हैं।

नई पार्टी से किसे नफा-किसे नुकसान

बिहार में 2025 में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले नई पार्टी के गठन पर सियासत तेज हो गई है। सियासी विश्लेष मानते हैं कि आरसीपी सिंह की नई सियासी पार्टी और चुनाव में उनकी पार्टी के उम्मीदवारों से ज्यादा नुकसान नीतीश कुमार की जेडीयू को ही नहीं बीजेपी को भी होगा। दरअसल आरसीपी सिंह की सियासी पकड़ भी उसी वर्ग में ज्यादा मानी जाती है, जो अब तक एनडीए का परंपरागत समर्थक रहा है। आरसीपी सिंह जेडीयू को छोड़कर बीजेपी में गये थे, लेकिन बीजेपी ने नीतीश कुमार अीैर उनकी पार्टी जेडीयू के दोबारा से साथ आते ही आरसीपी सिंह स्वयं को सियासी मझधार में अकेला महसूस करने लगे थे। यही कारण है कि अब आरएसपी सिंह ने भी अपनी राजनीतिक ताकत को दिखाने के लिए पार्टी बना रहे हैं।

बीजेपी के चलते हुई थी नीतीश से सियासी

आरसीपी का नीतीश कुमार से संबंध भाजपा के ही चलते बिगड़े थे। नीतीश नहीं चाहते थे कि आरसीपी सिंह मोदी कैबिनेट का हिस्सा बने, बावजूद इसके ​आरसीपी सिंह केन्द्रीय बना बनाए गए थे। जिसके चलते ही उन्हें जेडीयू को छोड़ना पड़ गया था। नीतीश कुमार से अलग हुए तो आरसीपी सिंह ने बीजेपी का दामन थाम लिया। लेकिन अब उन्हें बीजेपी का भी साथ छोड़ना पड़ा।

(प्रकाश कुमार पांडेय)

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