Bhopal gas tragedy:फिर हरे हुए जख्म,अब तीसरी पीढ़ी झेल रहीं त्रासदी का दंश

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Bhopal gas tragedy:भोपाल गैस कांड उस भयावह त्रासदी की यादें फिर ताजा हो चली है। जख्म फिर हरे हो गए है। टीस फिर उभर आई है। गैस कांड का दंश भोपाल के रहवासी कभी भूल नहीं पाएंगे। जो ये दंष भोग रहे हैं। आज भी हजारों गैस पीड़ित और उनकी संताने गैस जनित बीमारियों के दर्द से कराहने को मजबूर हैं।

2 और 3 दिसंबर की वो स्याह रात थी। जिसका मंजर और दम तोड़ती जिंदगियों का सिलसिला भोपाल के लोगों को जिंदगी भर का जख्म दे गया। गैस कांड को हुए 38 साल हो चुके हैं। गैस पीड़ितों की तीसरी पीढ़ी भी जवान होने को आई लेकिन अफसोस की गैस कांड से मिले जख्मों पर कोई मलहम अब भी काम नहीं आ रहा है। लंबे इंतजार के बाद चंद रूपयों का मुआवजा मिला। इसके बाद तो हादसे की बरसी पर हर साल मातम की रस्म अदायगी और भरोसों की लंबी फेहरिस्त का बखान ही गैस पीड़तों के हिस्से में आया है। इसके सिवा कुछ नहीं मिला।

गैस पीड़ितों में कई ऐसे हैं जो कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी से जूझ रहे हैं। इनके इलाज के लिए गैस राहत विभाग ने एम्स से समझौता करते हुए इन मरीजों को इलाज दिलाने की तैयारी की है। लेकिन, दूसरी ओर गैस पीड़ित संगठन सवाल उठा रहे हैं कि जब एम्स में कैंसर के इलाज के लिए बेहतर डॉक्टर नहीं तो इलाज कैसे होगा।

गैस हादसे में कितने मारे गए,कितने मरते मरते बचे इसका जिक्र बहुत हुआ लेकिन उनकी उतनी चिंता नहीं हुई जो गैस हादसे में बच तो गए लेकिन गैस जनित घातक बीमारियों ने उन्हे घेर लिया और वे तिल-तिल कर मरने तिल-तिल कर मौत के आगोश में समा रहे है। उन्हें गंभीर बीमारियों के साथ जीने पर इस हादसे ने विवश कर दिया। ये भी झकझोर कर रख देने वाली हकीकत है कि कई ऐसे गैस पीड़ित ऐसे भी हैं जिनकी संतानों में पैदाइशी विकार आ गया। बात वही है कि गैस हादसा तो एक रात की कहानी थी लेकिन उसका दुष्प्रभाव और दंश आज 38 साल बाद भी गैस पीड़ित और उनकी तीसरी पीढ़ी भोगने के लिए मजबूर नजर आ रही है। हालांकि कुछ संगठन गैस पीड़ितों के हक में उनकी आवाज आज भी बुलंद कर रहे हैं। इन संगठनों ने भोपाल और दिल्ली ही नहीं अमेरिका तक उन गैस पीड़ितों की आवाज पहुंचाई तो तिल तिल कर मौत के आगोश में समा रहे हैं। इन संगठनों की कोशिश रंग भी लाई लेकिन गैस पीड़ित और उनके वारिसों को उनका हक आज भी नहीं मिला।

आज भी जमा है यूका का कचरा

आज भी जमा है यूका का कचरा

गैस त्रासदी के बाद मुद्दा गैस पीड़ितों के इलाज और मुआवजे तक ही सीमित नहीं था। उस कचरे का भी था जो मौत की फैक्ट्री के बाहर अब भी जमा है। 38 साल बाद भी यूनियन कार्बाइड परिसर में जमा जहरीले कचरे का निष्पादन नहीं हो सका। कोशिश कई हुई लेकिन हर बार बाधा और बड़ी होती गई। गैस पीड़ितों के लिए बीएमएचआरसी और कमला नेहरू अस्पताल जैसे कई और स्वास्थ्य केन्द्र उपचार कर मलहम लगाने की कोशिशों में जुटे है। इतना ही नहीं अब तो एम्स में भी गैस पीड़ितों के इलाज की व्यवस्था की गई  लेकिन ये तमाम  कोशिशें और इंतजाम भी गैस पीड़ितों के पुनर्वास और इलाज के लिए नाकाफी हैं, क्योंकि स्थाई समाधान आज जक नहीं किया गया। गैस पीड़ितों को मुआवजा और सुविधा दिलाने के नाम पर कई छुटभैये नेता विधायक से लेकर मंत्री तक की कुर्सी पर पहुंच गए,लेकिन गैस त्रासदी का दंश झेलने वाले आज भी तिल-तिल कर मौत की ओर बढ़ने को मजबूर हैं।

सेविन व नेफ्था भी जहरीले कचरे में शामिल 

सेविन व नेफ्था वेस्ट-95 मी.टन

रियेक्टर वेस्ट-30 मी.टन

सेमी प्रोसेस्ड कीटनाशक-56 मी.टन

बॉयलर और आसपास का जहरीला कचरा-मिट्टी- 165 मी.टन

यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री पर डेरा जमाए बैठी थी मौत

यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री पर डेरा जमाए बैठी थी मौत

वे साल 1984 में 2 और 3 दिसंबर की दरमियानी रात थी। सर्द रात में सब ठिठुर रहे थे और मौत जैसे यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री पर डेरा जमाए बैठी थी। डाउ केमिकल्स का हिस्सा रहे यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री के प्लांट नंबर सी से गैस रिसने लगी। प्लांट को ठंडा करने के लिए मिथाइल आइसोसायनेट नाम की गैस को पानी के साथ मिलाया जाता था। उस रात इसके कॉन्बिनेशन में गड़बड़ी हो गई और पानी लीक होकर टैंक में पहुंच गया। इसका असर यह हुआ कि प्लांट के 610 नंबर टैंक में तापमान के साथ प्रेशर बढ़ गया। उससे गैस लीक हो गई। देखते ही देखते हालात बेकाबू हो गए। जहरीली गैस हवा के साथ मिलकर आस पास के इलाकों में फैल गई। फिर जो हुआ वह भोपाल शहर का काला इतिहास बन गया।

कुछ पलों में हो गया सब खत्म

कुछ पलों में हो गया सब खत्म

गैस हादसे में सबसे पहले फैक्ट्री के पास बनी झुग्गियों में पहुंची। यहां गरीब परिवार रहते थे। गैस इतनी जहरीली थी कि कई लोग महज तीन मिनट में ही मर गए। जब बड़ी संख्‍या में लोग गैस से प्रभावित होकर आंखों में और सांस में तकलीफ की शिकायत लेकर अस्पताल पहुंचे। डॉक्टरों को भी पता नहीं था कि इसका इलाज कैसे किया जाना है। मरीजों की संख्या भी इतनी अधिक थी कि लोगों को भर्ती करने की जगह नहीं रही।

10 घंटे बाद रोका जा सका गैस का रिसाव

गैस रिसाव की खबर जब तक नेताओं अफसरों तक पहुंचती तब तक मौत अपना काम कर चुकी थी। हर तरफ तबाही का मंजर नजर आ रहा था। गैस रिसाव को रोकने का काम शुरू हुआ। 10 घंटे की मशक्कत के बाद गैस रिसाव पर काबू पाया जा सका। लेकिन तब तक यह जहरीली गैस तबाही मचा चुकी थी।

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