भिंड विधानसभा चुनावी समीकरण,क्या काम करेगा बसपा और सिंधिया फैक्टर ?

कभी चंबल की पहचान बंदूक और बारुद से हुआ करती थी। गोलियों की आवाज तो आज भी लोगों के कानों में सुनाई देती है, लेकिन अब यहां नजारा बदल गया है। चंबल का नाम लेने पर वैसे आज भी लोग सहम जाते हैं। यहां की दूसरी पहचान है रेत के बीच चमचमाती चंबल नदी और बीहड़। चंबल की सियासी हवा में रेत का अवैध खनन ही नहीं जातीय समीकरण का भी हमेशा से ही बोलबाला रहा। बात करें भिण्ड जिले की तो यहां पांच विधानसभा सीट है। जिनमें भिंड, अटेर, मेहगांव,लहार और गोहद सीट शामिल है। ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी में शामिल होने के बाद चंबल में चुनाव अब कांग्रेस के लिए आसान नहीं रहा। वहीं सिंधिया समर्थकों की वजह से बीजेपी के पुराने नेताओं को भी अपनी सियासी जमीन खतरे में नजर आ रही है। ऐसे में भिंड विधानसभा सीट पर बीएसपी और सिंधिया फैक्टर कितना असर डालेगा ये आने वाले चुनाव में ही पता चलेगा।

चुनाव में रहता है यूपी का असर

उत्तरप्रदेश से सटा होने के कारण यहां की सियासी हवा में यूपी राजनीति की झलक दिखाई देती है। जिले में बहुजन समाज पार्टी का भी खासा प्रभाव मतदाताओं पर देखने को मिलता है।भिंड जिले की सभी 5 सीटों पर बसपा हर चुनाव में कड़ा मुकाबला करती है। बसपा की मौजूदगी वजह से भिंड जिले में चुनाव त्रिकोणीय हो जाते हैं। भिंड विधानसभा सीट पर 2018 में बसपा ने जीत दर्ज की थी। जो बाद में बीजेपी में शामिल हो गए। इस बार भिंड विधानसभा सीट के परिणाम किस पार्टी के पक्ष में होंगे। यह अब क्षेत्र की जनता को तय करना है। 2018 में भिंड में कुल 47 प्रतिशत मतदान हुआ था। 2018 में बहुजन समाज पार्टी से ने भाजपा के राकेश चौधरी को 36 वोटों के मार्जिन से परास्त किया था।

भिंड में 2003 के बाद दूसरी बार नहीं जीता कोई

पहले हम बात करेंगे भिंड विधानसभा सीट की। यहां पिछले विधानसभा चुनाव में बसपा प्रत्याशी ने भाजपा प्रत्याशी को हराया था। हालांकि ये अलग बात है कि बाद में बीएसपी विधायक स्वयं बीजेपी के पाले में चले गए। भिंड विधानसभा सीट की एक खासियत ये भी रही है कि यहां विधानसभा सीट पर साल 2003 के बाद से किसी भी दल को दो बार लगातार चुनाव में जीत नहीं मिली। 2003 में बीजेपी की ओर से नरेंद्र कुशवाह तो 2008 में कांग्रेस के टिकट पर चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी और 2013 में बीजेपी के ही नरेंद्र कुशवाह जीते। पिछले 2018 के चुनाव में बसपा के टिकट पर संजीव कुशवाह ने जीते थे।

भिंड सीट का सियासी समीकरण

विधानसभा चुनाव में इस बार ग्वालियर चंबल अंचल में सिंधिया फैक्टर किस तरह से काम करेगा इस पर सियासी पंडितों की नजर है। बात करें चंबल संभाग के भिंड जिले की तो यहां विधानसभा की 5 सीटों में से 3 पर बीजेपी और दो कांग्रेस के कब्जे में हैं। साल 2020 में भिंड जिले में उस वक्त भूचाल आ गया था। जब जिले के 2 विधायक ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ कांग्रेस छोड़ भाजपा में चले गए थे। इस बड़े फेरबदल से प्रदेश में कमलनाथ की सरकार गिर गई। इसके बाद हुए उपचुनाव में भी सिंधिया समर्थक दोनों विधायक मैदान में उतरे लेकिन एक नेता ही अपनी सीट बचा पाए।

अब तक भिंड में विधानसभा चुनाव परिणाम

2018
संजीव सिंह संजू बीएसपी विजेता 69,107 47% 35,896
राकेश चौधरी भाजपा दूसरे स्थान पर 33,211 22%
2013
नरेंद्र सिंह कुशवाह बीएसपी विजेता 51,170 41% 5,993
संजीव सिंह संजू बीएसपी दूसरे स्थान पर 45,177 36%
2008
चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी कांग्रेस विजेता 34,602 34% 9,096
नरेंद्र सिंह कुशवाह सपा दूसरे स्थान पर 25,506 25%
2003
नरेंद्र सिंह कुशवाह बीजेपी विजेता 45,761 34% 16,457
चौधरी राकेश सिंह कांग्रेस दूसरे स्थान पर 29,304 22%
1998
राकेश सिंह कांग्रेस विजेता 40,888 38% 5,714
नरेंद्रसिंह कुशवाह बीजेपी दूसरे स्थान पर 35,174 32%
1993
राम लखन सिंह बीजेपी विजेता 36,750 35% 5,264
राकेश सिंह कांग्रेस दूसरे स्थान पर 31,486 30%
1990
राकेश सिंह कांग्रेस विजेता 20,457 26% 1,140
राम लखन सिंह जेडी दूसरे स्थान पर 19,317 25%
1985
उदयभान सिंह कांग्रेस विजेता 21,127 37% 5,234
नरसिंह राव दीक्षित कांग्रेस दूसरे स्थान पर 15,893 28%
1980
चौधरी दिलीप सिंह बीजेपी विजेता 20,383 38% 4,873
यशवंत सिंह कुशवाह कांग्रेस दूसरे स्थान पर 15,510 29%
1977
ओम कुमारी कुशवाह जेएनपी विजेता 28,742 58% 15,892
नविन चंद्र कांग्रेस दूसरे स्थान पर 12,850 26%

बीजेपी कांग्रेस दोनों के लिए है जिला अहम

भिंड जिला कांग्रेस और भाजपा के लिए काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। लहार विधानसभा सीट से नेता प्रतिपक्ष गोविंद सिंह चुनकर आते हैं यह उन का गढ़ है। गोविंद सिंह ठाकुर जाति से ताल्लुक रखते हैं। क्षेत्र में भी उनकी अच्छी पकड़ है। दूसरी ओर यहां भाजपा को मजबूत करने की जिम्मेदारी अब ज्योतिरादित्य सिंधिया के कंधों पर है। 2018 में सिंधिया ने कांग्रेस के लिए वोट मांगे थे, अब 2023 में वे बीजेपी के लिए वोट मांगते नजर आएंगे। ऐसे में चुनाव से पहले जिले में सिंधिया और गोविंद सिंह सक्रिय हो गए हैं। सिंधिया अक्सर भिंड से दिल का रिश्ता बताते हैं। ऐसे में सिंधिया को इस बार काफी उम्मीदे हैं। उधर नेता प्रतिपक्ष डॉ.गोविंद सिंह पर चंबल की महत्वपूर्ण सीटों पर एक बार फिर से कब्जा का करने का दारोमदार है।

कांग्रेस बीजेपी में तड़का लगाती है बसपा

1957 से इस विधानसभा सीट पर अब तक 13 बार चुनाव हो चुके हैं। जिनमें 1 बार उपचुनाव भी शामिल है। हालांकि अब तक मूल रूप से मुक़ाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच ही रहा।यहां 8 बार कांग्रेस जीती तो BJP चार बार अपना विधायक बनाने में सफल रही है। एक बार बसपा भी यहां प्रत्याशी जीता कर अपना खाता खोल चुकी है। जब 2023 के विधानसभा के चुनाव होंगे तो बीएसपी की मौजूदगी के चलते यहां चुनौती BJP हो या कांग्रेस दोनों ही पार्टियों के लिए खड़ी है।

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