बच्चे को बचाने में जुटा पूरा तंत्र
मध्यप्रदेश में एक बार फिर एक बच्चा लापरवाही के कारण खुले पड़े बोरवेल में गिर गया। हादसा बैतूल जिले के मांडवी में हुआ है। यहां मंगलवार शाम 8 साल का एक बच्चा खेलते खेलते बोरवेल में गिर गया। इसके बाद से ही रेस्क्यू जारी है। बताया जा रहा है कि बोरवेल खुला पड़ा था। इस मामले में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने स्थानीय प्रशासन को जरूरी कदम उठाने के निर्देश दिए हैं। इस तरह पूरा तंत्र बच्चे को बचाने में लगा है।
परिवार में इकलौता बेटा तन्मय तीसरी क्लास में पढ़ता है। परिजनों का रो रोकर बुरा हाल है। बच्चे के पिता ने मार्मिक अपील की है कि कोई बोरवेल अपना खुला न छोड़े। तन्मय के पिता सुनील साहू का कहना है गांव नानक चौहान के खेत का बोरवेल खुला हुआ पड़ा था। इस कारण ये हादसा हुआ है।
तीन जिलों की टीम चला रही रेस्क्यू ऑपरेशन
मंगलवार शाम 5 बजे बोरवेल में गिरे बच्चे को निकालने के लिए रेस्क्यू जारी है। आसपास के तीन जिलों की टीम रेस्क्यू में जुटी हुई है। चार पोकलेन मशीन से बोरवेल के पैरलर गड्ढा खोदने की कोशिश की जा रही है। बीच में पत्थर आने के कारण रेस्क्यू में देरी हो रही है। दौरान बोरवेल में गिरे बच्चे का कोई मूवमेंट नजर नहीं आ रहा है। रेस्क्यू में पत्थर की चट्टाने बाधा बन रही हैं। कैमरे से बच्चे को ट्रैक किया गया। लगभग 55 फिट नीचे बच्चा फंसा हुआ बताया जा रहा है।
ये पहला मामला नहीं, बोरवेल में गिरे कई बच्चे
मध्य प्रदेश में कुछ समय पहले भी छतरपुर, उमरिया के बाद दमोह में एक बच्चा बोरवेल में गिर गया था। हालांकि छत्तरपुर में बच्ची को बचा लिया गया, लेकिन दमोह और उमरिया की घटना में बच्चे जिंदगी की जंग हार गए। इन घटनाओं से सवाल ये उठता है कि आखिर ऐसे मामले सामने आते क्यों है। क्या इन्हें लेकर कोई कानून या गाइडलाइन हा या नहीं है। अगर है तो क्या है। इन हादसों से जान के नुकसान के अलावा भी क्या नुकसान होता है और इनसे कैसे बचा जा सकता है।
प्रिंस से शुरू हुआ सिलसिला
आपको याद होगा हरियाणा के गुरूग्राम में रहने वाला 5 साल का प्रिंस। 21 जुलाई 2006 को जिसके गड्ढे में गिरने और बाद में बचाने की कोशिश लाईव टेलीविज़न पर दिखाई जा रही थी। लोग घरों में बैठ कर इस रियलिस्टिक खोज के ड्रामें पर आंखे गड़ाए बैठे थे। मंदिरों में भगवान से गुहार और देशभर में पूजा पाठ का दौर चला था और 60 फीट नीचे गिरे प्रिंस की हर सांस के साथ देश की सांस जुड़ गई थी। प्रिंस के परिवार के लिए वो 49 घंटे सबसे कठिन थे और देश उनके साथ खड़ा था।आखिर लंबे समय की जद्दोजहद के बाद भारतीय सेना के जवानों ने उसे बाहर निकाला और प्रिंस की जान बच गई। लेकिन बाद में कई और प्रिंस बच नहीं पाये। बोरवेल खुले पड़े रहे और लोगों ने कोई सीख नहीं ली। इसी घटना के बाद जनहित याचिकाओं का सिलसिला शुरू हुआ।
आखिर कब जागरुक होंगे लोग
देश में ट्यूबवेल और बोरवेल के गड्ढे आखिर कब तक खुले छोड़े जाते रहेंगे और कब तब इसमें मासूम फंसते रहेंगे। हादसे आखिर कब तक होते रहेंगे। इन सवालों का जवाब कोई देना नहीं चाहता। हर हादसे से सीखने की बात कही जाती है लेकिन हादसे दर हादसे होते रहते हैं और मासूम मौत के कुएं में गिरते रहते हैं। मौत के ऐसे गड्ढे कब भरे जायेंगे प्रशासन इसका जवाब नहीं दे पा रहा हैं। आखिर कब तक मासूमों की जिंदगी से कब तक खिलवाड़ होता रहेगाघ्
सर्वोच्च न्यायालय दे चुका है फैसला
सर्वोच्च न्यायालय ने नलकूप खनन के दौरान छोटे बच्चों को होने वाली गंभीर दुर्घटनाओं से बचाने के लिए 6 अगस्त 2010 में आदेश पारित किया था। फैसला तत्कालीन चीफ जस्टिस एसएच कपाड़ियाए जस्टिस केएस राधाकृष्णन और जस्टिस स्वतंत्र कुमार की बेंच ने रिट पिटीशन पर सुनाया था।उसी समय से फैसला पूरे देश में लागू हैए लेकिन इसका सही क्रियान्वन करने की दिषा में आज तक कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए।
ये है सर्वोच्च न्यायालय की गाइडलाइन
नलकूप की खुदाई से पहले कलेक्टर ग्रम पंचायत को लिखित सूचना देनी होगी। खुदाई करने वाली सरकारी, अर्ध-सरकारी संस्था या ठेकेदार का पंजीयन होना चाहिए। नलकूप की खुदाई वाले स्थान पर साइन बोर्ड लगाया जाना चाहिए, खुदाई के दौरान आसपास कंटीले तारों की फेंसिंग की जाना चाहिए। केसिंग पाइप के चारों तरफ सीमेंट, कॉन्क्रीट का 0ण्30 मीटर ऊंचा प्लेटफार्म बनाना चाहिए। बोर के मुहाने को स्टील की प्लेट वेल्ड की जाएगी या नट बोल्ट से अच्छी तरह कसना होगा। पम्प रिपेयर के समय नलकूप के मुंह को बंद रखा जाएगा। नलकूप की खुदाई पूरी होने के बाद खोदे गए गड्ढे और पानी वाले मार्ग को समतल किया जाएगा। खुदाई अधूरी छोड़ने पर मिट्टी, रेत, बजरीए बोल्डर से पूरी तरह जमीन की सतह तक भरा जाना चाहिए।
इस तरह हो सकता है समाधान
स्थानीय प्रशासन को ही सख्ती बरतना होगी। हर बोरवेलए ट्यूबवेल की नियमित जांच होना चाहिए। नियमों का पालन न करने वालों के खिलाफ कार्रवाई हो। लोगों को स्वण्विवेक से समझदारी दिखानी चाहिए।
कलेक्टर की है नियमों का पालन कराने की जिम्मेदारी
बोरवेल खुदाई को लेकर अलग अलग राज्यों का विभागों के साथ ही हाईकोर्ट के कई निर्देश हैं। इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि नियमों को पालन कराने की जिम्मेदारी कलेक्टर की होगी। वे सुनिश्चित करेंगे कि केंद्रीय या राज्य की एजेंसी की ओर से सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी मार्गदर्शिका का सही तरीके से पालन हो।
थोड़ा सा लालच थोड़ी सी उम्मीद और खुला छोड़ देते हैं बोरवेल
लापरवाही और पैसा बचाने के लालच में बोरवेलए ट्यूबवेल को खुला छोड़ दिया जाता है। कई किसान इस कारण भी खुला छोड़ देते हैं कि अगले साल पानी आने पर उन्हें पानी आने की उम्मीद रहती है। किसानों को यह लगता है कि खेत में बच्चों का आना जाना नहीं होता। इसलिए इसे ज्यादा गंभीरता से नहीं लेते। वहीं कई संस्थागत बोरवेल ठेकेदारों द्वारा लापरवाही और पैसे बचाने के लिए खुले छोड़ दिए जाते हैं।
नहीं बच सका था दमोह का प्रिंस
इस साल 27 फरवरी 2022 को दमोह के पटेरा ब्लॉक के बरखेड़ा वैस गांव में 3 साल का प्रिंस खेलते खेलते खेत में बने बोरवेल में गिर गया थ। करीब 6 घंटे तक रेस्क्यू ऑपरेशन चला। बच्चे को गड्ढे से निकालने के बाद सीधे अस्पताल ले जाया गया। जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। 14 मार्च 2019 को जन्मे प्रिंस का कुछ दिन बाद जन्मदिन आने वाला था।
उमरिया की घटना
उमरिया में भी 24 फरवरी 2022 को 4 साल का बच्चा गौरव बोरवेल में गिर गया था। वो 250 फीट गहरे गड्ढे में करीब 60 फीट में फंसा हुआ था। उसे बचाने के लिए तमाम प्रशासनिक संसाधन लगाए गए, लेकिन रेस्क्यू से पहले ही बच्चे की सांस थम गई। 24 फरवरी को बोरवेल में गिरे बच्चे को 25 फरवरी की सुबह रेस्क्यू किया गया। तुरत उसे अस्पताल ले जाया गया। जहां डॉक्टरों ने बताया कि बच्चे ने तो 7 घंटे पहले ही दम तोड़ दिया था।
छतरपुर की घटना
पिछले साल 17 दिसंबर 2021 को छतरपुर में नौगांव थाना क्षेत्र के दोनी गांव में एक साल की बच्ची के करीब 15 फीट गहरे बोरवेल में गिर गई थी। मौके पर राहत बचाव कार्य शुरू किया गया। इस काम में पुलिस और जिला प्रशासन के साथ सेना के जवान भी लगे। तब कही जाकर 9 घंटे के रेस्क्यू ऑपरेशन के बाद बच्ची को बचाया जा सका।