जर्मनी में रह रहे भारतीय दंपत्ति की बेटी बेबी अरिहा जब सात साल की थी तो उसके डायपर में खून के धब्बे मिले थे। मामला पुलिस प्रशासन तक पहुंचा और जर्मनी अधिकारियों ने बेबी को अपने कब्जे ले लिया। जांच पड़ताल के बाद बताया गया कि बेबी अरिहा के साथ यौन उत्पीडन नहीं हुआ है। कई महिने बीत गए लेकिन अभी तक माता पिता को उनकी बेटी नहीं मिली है। इस पर भारत सरकार लगातार जर्मनी के संपर्क में हैं और प्रयास कर रही है कि बच्ची दंपत्ति को मिल जाए। आईए जानते हैं पूरा मामला।
ये हैं मामला
अरिहा के पिता जर्मनी में इंजीनियर है और वर्क वीजा पर जर्मनी में रह रहे हैं। अरिहा जब सात साल की थी तब उसके डायपर में खून के धब्बे मिले थे। इसके बाद जर्मनी के अधिकारियों ने बच्ची को अपनी कस्टडी में ले लिया था। साथ ही जर्मन प्रशासन ने माता पिता पर बच्ची के यौन उत्पीडन का आरोप लगाया था। जबकि बच्ची के पेरेंटस का कहना था कि बच्ची को एक मामूली चोट लगी थी।
आड़े आ रहा जर्मनी का नियम
माता पिता को अभी तक बेबी अरिहा वापस नहीं मिली है। वजह ये है कि बेबी को फॉस्टर केयर में रहते हुए अगस्त में पूरे दो साल हो जाएंगे। जर्मनी के नियम के मुताबिक यदि कोई बच्चा फॉस्टर केयर में दो साल पूरे कर लेता है तो उसे वापस माता पिता को नहीं सौंपा जा सकता है। वजह ये है कि बच्चा नई स्थितियों और कल्चरल शॉक का सामना करने में असमर्थ होता है।
बेबी अरिहा: जर्मनी के नियमित संपर्क में भारत
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने मीडिया ब्रीफिंग में कुछ अन्य सवालों के भी जवाब दिए। जिसमें बेबी अरिहा के मामले में उन्होंने कहा कि इसे लेकर हम जर्मनी के अधिकारियों के साथ नियमित रूप से संपर्क में बने हुए हैं। उन्हें हमारी इच्छा के बारे में पता है कि हम चाहते हैं अरिहा को जल्द से जल्द भारत को सौंपा जाए। वर्तमान में जर्मनी में अरिहा के मामले को लेकर एक पृथक न्यायिक प्रक्रिया भी चल रही है और हमारी बातचीत भी जारी है।
भारत पहले भी उठा चुका है मुद्दा
हालांकि इसके पहले भी भारत यह मुद्दा उठा चुका है। विदेश मंत्री एस जयशंकर अपनी जर्मनी यात्रा के दौर जर्मन समकक्ष एनालेना बेयरबॉक के सामने अरिहा का मुद्दा उठा चुके हैं। जयशंकर ने कहा था कि बच्ची को अपनी भाषाई,धार्मिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक माहौल में रहना चाहिए। इस पर बेयरबॉक ने कहा था कि अरिहा की भलाई उनके लिए बहुत अहम है। उन्होंने कहा कि जर्मन प्रशासन के दिमाग में यह भी है कि हर बच्चे की सांस्कृतिक पहचान की जर्मनी में युवा कार्यालय द्वारा देखभाल की जाए साथ ही मामला अदालत में लंबित होने का हवाला भी दिया था।