बाबा साहेब की धरती महू में हुंकार भरेंगे राहुल और प्रियंका…कांग्रेस की ‘जय भीम, जय बापू, जय संविधान’ रैली…जानें आखिर किसके हैं दलित वोटर्स

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इंदौर के महू में बाबा साहेब आंबेडकर और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के नाम पर कांग्रेस की ‘जय भीम, जय बापू, जय संविधान’ रैली आज सोमवार 27 जनवरी को आयोजित होने जा रही है। जिसमें कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी और पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी के साथ अन्य प्रमुख नेता इसमें शामिल होंगे। जानकारी के मुताबिक राहुल और प्रियंका के इस आयोजन में शामिल होने देशभर से कांग्रेसे कई सांसद और विधायक भी महू आए हैं। बड़े पैमाने पर होने जा रहे कांग्रेस के इस आयोजन के दौरान राहुल गांधी के निशाने पर केन्द्र की एनडीए सरकार और बीजेपी रहेगी।

कांग्रेस दरअसल दलित वर्ग को अपने पाले में करने की कोशिश में जुटी है। जय बापू, जय भीम, जय संविधान अभियान इसी उद्देश्य से प्रारंभ किया गया था। कांग्रेस को उम्मीद है कि जैसे लोकसभा चुनाव में उसने विपक्षी दलों के साथ मिलकर बीजेपी को दलित वोटर्स के बीच अंबेडकर, आरक्षण और संविधान विरोधी साबित करने में सफल रही। उसी तरह अब देशभर में दलितों को पार्टी के साथ लामबंद या जा सकता है। कांग्रेस के इस प्रयोग की आंशिक सफलता-2024 के लोकसभा चुनाव में हासिल कर चुकी हैं। जिसे लेकर अब कांग्रेस देशभर में करने की कांग्रेस की स्टैटेजी माना जा रही। दरअसल कांग्रेस देश में अपनी खोई हुई सियासी जमीन को फिर से हासिल करने के लिए बेताब नजर आ रही है। जिसे लेकर कांग्रेस देश के अलग-अलग क्षेत्रों में जय बापू, जय भीम और जय संविधान नाम पर जनसभाएं और रैलियां कर रही है। कांग्रेस ने सीलमपुर से अपने इस अभियान का आगाज किया था। इसके बाद दूसरी बड़ी रैली कर्नाटक के बेलगामी में की गई।

बाबा साहेब के नाम पर आज तीसरी बड़ी रैली

तीसरी रैली आज सोमवार 27 जनवरी को मध्यप्रदेश में बाबा साहेब डॉ.भीमराव आंबेडकर की जन्म स्थली महू में हो रही है। कांग्रेस जनसभा के माध्यम से दलित समाज के दिल में जगह बनाना चाहती है। यहीं वजह है कि कांग्रेस इस समय बसपा की सियासी नक्शेकदम पर चलती नजर आ रही।

दलित वोटर्स के दिल में 20 साल बसपा ने किया राज

आजादी के बाद से कांग्रेस का दलित कोर वोटबैंक हुआ करता था। लेकिन 1980 के दशक में बीएसपी का सियासी उदय होने के बाद से दलित समाज खासकर उत्तर भारत के राज्यों से पूरी तरह छिटक कर बीएसपी के पाले में चला गया। हालांकि दलितों का एक बड़ा तबका अब बीएसपी के कमजोर होने पर बीजेपी के साथ खड़ा नजर आ रहा है। 1980 के दशक में बीएसपी का गठन दलित समाज में राजनीतिक और सामाजिक चेतना जगाने के लिए किया गया था। उस समय एक नारा भी बड़ा चर्चित हुआ था बीएसपी की की क्या पहचान… नीला झंडा और हाथी निशान…यह नारा दलित गांवों में जमकर गूंजा था और मायावती की पार्टी ने दलित समाज के बीच पहचान बनाई थी। हालांकि अब बदलते दौर में यह वर्ग बसपा से दूर हुआ है।

2024 में कांग्रेस के पाले में गए दलित वोट

लोकसभा चुनाव 2024 में संविधान और आरक्षण का मुद्दा उठाकर कांग्रेस ने दलित वोटों में सेंधमारी की थी। जिसके बाद से ही कांग्रेसही लगातार दलित समाज का विश्वास हासिल करने के लिए अब खुलकर मैदान में उतरने की स्टैटेजी बना रही है। इसके तहत ही कांग्रेस ने जय बापू, जय भीम और जय संविधान के नाम से अपना अभियान शुरु किया है। यही वजह है कि बसपा की स्टाइल में ही अब कांग्रेस ने भी दलित समाज के विश्वास को हासिल करने की कवायद में है। जिसके लिए राहुल गांधी और प्रियंका गांधी से लेकर कांग्रेस के तमाम नेता इन दिनों के गले में नीला अंगवस्त्र डाले दिखाई दे रहे हैं।

2019 के मुकाबले 53 सीट ज्यादा मिलीं

2024 के लोकसभा चुनाव में दलित बाहुल्य वाली 156 सीटों के परिणाम देखें तो विपक्षी महागठबंधन को 93 और एनडीए ने 57 सीट पर जीत दर्ज की। दलित वोटर्स वाली 156 लोकसभा सीटों में इस बार 2019 के मुकाबले विपक्ष को 53 सीट का लाभ हुआ। एनडीए को लोकसभा की 34 सीट का नुकसान उठाना पड़ा। इससे पहले साल 2014 और साल 2019 के चुनाव में दलितों का एकमुश्त वोट बीजेपी के खाते में गया था। जिसके चलते नरेन्द्र मोदी पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाने में सफल रहे थे।

जिसे मिला दलित का साथ..सत्ता आई उसके हाथ

2011 की जनगणना के अनुसार देश में दलितों की आबादी करीब 17 प्रतिशत है। यानी कुल जनसंख्या में करीब 20.14 करोड़ दलित हैं। देश में लोकसभा की कुल 543 सीटों में से 84 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित की गई हैं। जबकि उनका सियासी प्रभाव लोकसभा की करीब 150 से ज्यादा सीटों पर है। सीएसडीएस के आंकड़ों के अनुसार दलित बहुल लोकसभा सीटों का वोटिंग पैटर्न में बीजेपी को 2024 में 31 प्रतिशत दलित वोट मिला था। जबकि पांच साल पहले 2019 में यह आंकड़ा 34 प्रतिशत था। बीजेपी को 2024 के चुनाव में 3 फीसदी कम दलित वोट मिले। उसके सहयोगी दलों को भी दो फीसदी वोट मिले थे। वहीं कांग्रेस को इस चुनाव में 19 फीसदी दलित समाज ने अपना वोट दिया था। कांग्रेस के सहयोगी दलों को भी दलित वोटों का जबरदस्त फायदा मिला था।

प्रकाश कुमार पांडेय

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