ऐसा कोई नहीं होगा जिसे रेवड़ी नहीं भाती होगी। रेवड़ी का नाम लेते ही हर किसी के मुंह में पानी आ जाता है। लेकिन रेवड़ी की तासीर भी निराली है। रेवड़ी को चुनाव में परोसा जाता है तो जीभ का स्वाद ही नहीं चुनावी फिजा भी बदल देती है। चुनावी राज्य मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के सियासी अखाड़े में दांव आजमा रहे। सियासी दल और वहां की सरकारें दोनों हाथ से रेवड़ी बांट रहे हैं।
- साल के अंत में हैं विधानसभा चुनाव
- मप्र, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में चुनाव
- सत्ताधारी पार्टियां बांट रहीं चुनावी रेवड़ी
दरअसल नवंबर-दिसंबर में तीन राज्य मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में विधानसभा चुनाव के लिए तैयारियां जोर-शोर से शुरू हो गई हैं। मध्यप्रदेश सहित छत्तीसगढ़ और राजस्थान में आचार संहिता लागू होने में अब 100 दिन से भी कम समय रह गए हैं। चुनाव का समय नजदीक आने के साथ इन राज्यों में राजनीतिक सरगर्मी भी बढऩे लगी हैं। केन्द्रीय चुनाव आयोग ने इसके लिए राज्य के प्रशासनिक अधिकारियों के साथ बैठक कर तैयारी तेज करने के निर्देश दिए हैं। आयोग की टीम राज्यों के साथ मिलकर तैयारियों को धरातल पर क्रियान्वित करने को कहा है।
रियायत बटोर रही जनता
ऐसे में इन राज्यों में सत्ताधारी और प्रमुख राजनीतिक दल लोगों को लुभाने के तरीके ढूढ रहे हैं। इन राज्यों में सत्ताधारी पार्टी ने लोगों को मुफ्त की रेवड़ी बांटने के साथ कई रियायतें देने की शुरूआत कर दी है। छत्तीसगढ़ में जहां चुनाव से ठीक पहले बेरोजगारों को बेरोजगारी भत्ते देने के साथ नौकरियों का पिटारा खोल दिया है वहीं सरकार बनने पर धान खरीद 2800 सौ रुपये प्रति क्विंटल करने का ऐलान किया है। इधर मध्यप्रदेश सरकार लाडली बहना योजना से महिलाओं को हर महीने एक हजार रुपए देने के साथ कई रियायते देना शुरू कर दिया है। इसी तरह राजस्थान में भी अशोक गहलोत सरकार ने 500 में गैस सिलेंडर और मुफ्त बिजली से लेकर कई दूसरी योजनाओं के साथ वोटर्स को लुभाने का तरीका अपनाया है।