बोहरीबंद विधानसभा सीट, यहां है समस्याओं का अंबार,किसे चुनेगी जनता इस बार?

Bohriband Assembly Seat

मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव की सुगबुगाहट शुरू हो चुकी है। नेता विधायक भावी उम्मीदवार भी जोर आजमाइश दौरे और बैठकों का दौर भी शुरू कर चुके हैं। जीत के सारे कयास प्रयास लगाये जाने लगे है। माननीय विधायकजी में अब बारी है मध्यप्रदेश की बहोरीबंद विधानसभा सीट की। प्रणय प्रभात पांडेय ने यहां 2018 में बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ा था और जीत हासिल की थी। वैसे बहोरीबंद विधानसभा सीट पर ज्यादातर समय कांग्रेस का ही कब्जा रहा है। इनमें से 20 साल तक कांग्रेस से विधायक रहे डॉक्टर निशिथ पटेल और पूर्व मंत्री स्वर्गीय श्रवण पटेल का कार्यकाल जुड़ा है। निशिथ पटेल श्रवण पटेल के पिता हैं। क्षेत्र से मंत्री बनने के बाद भी बहोरीबंद विधानसभा का जो विकास होना चाहिए वो नहीं हो सका। पानी की किल्ल्त से लोग इतना जूझ रहे है कि बूंद-बूंद पानी को मोहताज हैं। शिक्षा और स्वास्थ्य का हाल भी बेहाल है। जाहिर है जिनका हिसाब विधानसभा चुनाव में जनता अपने जनप्रतिनिधियों से जरूर मांगेगी। यही सवाल कर रहे हैं हम पांच साल क्या किया विधायक जी।

बहोरीबंद में समस्याओं का अंबार हैं। जो चुनाव के नजदीक आते ही सियासी मुद्दों के रूप में गूंजने लगी हैं। ये भी तय है कि मुद्दों के इस शोर में जो अपनी बात जनता के कानों तक पहुंचा पाएगा। उसे ही जनता विधानसभा तक पहुंचाएगी। पहली नजर में बहोरीबंद विधानसभा क्षेत्र में कुछ भी नया नजर नहीं आता। अब तक सियासत में इस इलाके की उपेक्षा की। इसका अंदाजा यहां की समस्याओं को देखकर लगाया जा सकता है। इस इलाके की सीमा में प्रवेश करते ही समस्याओं का सामना हो जाता है। यहां की अधिकतर आबादी गांवों में रहती है। इलाकों में रहने वाले लोगों के लिए पानी की किल्लत बड़ी समस्या है। राज्य सरकार की ज्यादातर नल–जल योजनाएं बंद पड़ी हैं। लोग बूंद-बूंद पानी के लिए मोहताज हैं,जिसे लेकर यहां की जनता में अपने जनप्रतिनिधि को लेकर गुस्सा साफ तौर पर देखा जा सकता है। ऐसा नहीं है कि विधानसभा चुनाव में केवल पानी का मुद्दा ही सुनाई देगा।

कब कौन और किस पार्टी के रहे विधायक

आइए जानते हैं बोहरीबंद विधानसभा सीट से कब कब कौन और किस पार्टी के विधायक रहे। बोहरीबंद विधानसभा सीट पर पिछली बार 2018 में प्रणय प्रभात पांडेय बीजेपी से 89041 वोट हासिल कर विधायक बने। 2013 में प्रभात पाण्डेय ने ही बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़कर 54504 वोट हासिल किये। इससे पहले साल 2008 में डॉ.निशिथ पटेल ने कांग्रेस के टिकट पर मैदान में उतरे और 25822 वोट हासिल कर विधायक बने। साल 2003 में भी निशिथ पटेल कांग्रेस के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे थे और 35436 वोट हासिल कर विधायक बने। 1998 श्रवण कुमार कांग्रेस 28612 वोट मिले। 1990 रानी दुबे बीजेपी 31629 वोट मिले। 1985 श्रवण कुमार पटेल कांग्रेस 26687 वोट मिले। 1980 सरवन कुमार कांग्रेस 23812 वोट मिले 1977 ताराचंद चौरसिया जेएनपी 19826 वोट मिले। 1972 कुंजबिहारी लाल कांग्रेस 16721 वोट मिले थे। बहोरीबंद विधानसभा क्षेत्र में बीजेपी के प्रत्याशी प्रणय पांडेय ने कांग्रेस प्रत्याशी कुंवर सौरभ सिंह को लगभग 16 हजार वोट से हराकर जीत दर्ज की थी। विधायक प्रणय पांडेय पूर्व विधायक प्रभात पांडेय के बेटे हैं। बता दें प्रभात पाण्डेय भी इसी विधानसभा से विधायक निर्वाचित हुए थे। अब अपने कार्यकाल में मध्यप्रदेश की बीजेपी सरकार के योजनाओं को और अपने क्षेत्र में विकास की गंगा बहाने की बात तो दमदारी से कर रहे हैं। लेकिन सच्चाई क्या है ये हम क्षेत्र की जनता से ही जानते हैं।

2018 की स्थिति

बूंद-बूंद पानी को हैं मोहताज

बोहरीबंद क्षेत्र के रहवासियों का कहना है हम तो हर दिन पानी बाहर से ही बुलवाना पड़ता। हमारे लिए पानी का कोई इंतजाम नहीं किया गया है। हेंडपंप थे जो बंद हो गए हैं। हालांकि सरपंच की ओर से टेंकर पहुंचाए जा रहे है। लेकिन ये नाकाफी है।

जमीनी स्तर पर लोग परेशान

बोहरी बंद बस स्टैड पर जब व्यवसायी सौरभ गुप्ता से बात हुई तो उनका कहना था विधायक जी प्रयास तो कर रहे हैं। लेकिन लोगों को योजनाओं का लाभ नहीं मिल रहा है। जमीनी स्तर पर लोग परेशान हैं। धंधा लगभग बंद हो गया है। पानी की समस्या जस की तस बनी हुई है। वहीं सत्येन्द्र जैन का कहना है। सरकार ठीक ठाक चल रही है। विकास कार्य हो रहे हैं। विधायक जी सज्जन पुरुष हैं। हालांकि जल संकट बना हुआ है। रात में कभी कभी लाइट गुल हो जाती है।

‘सरकार बदलना चाहिए बीस साल हो गए’

रहवासी राजेन्द्र प्रसाद गुप्ता का कहना है। विकास जो हो रहा है वो तो होगा। शासन का पैसा है। विधायक के फंड में जितना पैसा है। उतना तो खर्च करेंगे विधायक जी लेकिन सरकार बदलना चाहिए बीस साल हो गए। गुलामी की जींदगी जी रहे हैं। वैसे हम बीजेपी के आदमी है। लोकतंत्र सैनानी के हम बेटे हैं लेकिन सरकार बदना चाहिए। वहीं ग्रामीण महिलाएं कहती हैं। योजनाएं कहा चल रही हैं। किसी को पता ही नहीं। गांव में सड़क है या नहीं बराबर है। आंगनवाड़ी है विधायक जी भी कभी कभार गांव में आ जाते हैं। क्या करे साहब बहुत महंगाई है। काम धंधे भी नहीं चल रहे। हिनौती ग्राम पंचायत के रहवासी कहते हैं कोई विकास के काम नहीं हुए हैं। विधायक जी ने कोई काम नहीं कराया। हम ग्रामीणों को सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल रहा है। न तालाब बना है न रपटा बना है सड़क भी नहीं है।

अब भी है नर्मदा जल का इंतजार

पूर्व विधायक निशिथ पटेल का कहना है सरकार कांग्रेस की बनने जा रही है। इस बार बोहरीबंद में भी इस बार कांग्रेस का विधायक चुनकर आयेगा। जनता कांग्रेस को चुनेगी। मौजूदा बीजेपी विधायक के राज में जनता परेशान हैं। 2013 में नर्मदा जल लाने की घोषणा सीएम शिवराज सिंह चौहान ने की थी। लेकिन वो घोषणा कोरी साबित हुई। बोहरीबंद विधानसभा क्षेत्र को अब तक नर्मदाजल का इंतजार है। किसानों और नौजवानों की नाराजगी किसी से छिपी नहीं है। शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं का भी बुरा हाल है। मार्बल की खदानें और तेंदूपत्ता उपार्जन का केंद्र होने के बाद भी बहोरीबंद में बेरोजगारी चरम पर है। बीते कुछ साल में मार्बल से जुड़े कई उद्योग बंद हुए है। वहीं बीड़ी कारखाने बंद होने का असर भी पड़ा है। युवा रोजगार के लिए पलायन करने को मजबूर हैं।

क्षेत्र के स्वास्थ्य केन्द्र को डॉक्टरों का इंतजार

आकंड़े बता क्षेत्र की सच्चाई बया कर रहे हैं। यहां बहोरीबंद सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में डॉक्टर कुल चार हैं। जिसमे दो बांड पर और दो रेगुलर जबकि जरूरत कम से कम 6 डॉक्टरों की है तो वही नर्स 7 है। वार्ड ब्वाय तो एक भी नहीं। ड्रेसर सिर्फ एक है लेब-तकनीशियन और अटेंडेंट के नाम पर किसी को पदस्थ नहीं किया। फार्मासिस्ट भी एक है जबकि जरूरत 2 की है। मजदूरों के पलायन की बात करें तो हाल ही में मजदूरों के पलायन का एक मामला सामने आया था। जिसमें किसी तरह रेस्क्यू कर मजदूरों को जिला प्रशासन महाराष्ट्र , कर्नाटक से सुरक्षित लाया जा सका था। क्योंकि यहां पर्याप्त रोजगार के अवसर नही। अस्पतालों की हालत ये है कि अस्पताल महज रेफर सेंटर बनकर रह गए हैं। क्षेत्र में किसी बड़ी घटना या गंभीर हालत में मरीज के पहुंचने पर दूसरे अस्पतालों को रेफर किया जाता है। बहोरीबंद में जिस तरह के सियासी समीकरण बन रहे हैं। इतना तो तय है कि यहां मुद्दों के साथ साथ चुनावी मैनेजमेंट भी नतीजों को काफी प्रभावित करेगा और फिलहाल सभी पार्टी इसी में जुटी हुई हैं लेकिन किसे सफलता मिलती है। ये आने वाला वक्त ही बताएगी।

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