Assembly Election 2023:“गुजरात मॉडल” के बाद बीजेपी के “गुजरात फार्मूले” ने बढ़ाई बैचैनी

Gjurat Formula

गुजरात विधानसभा चुनावों के पहले लगातार गुजरात मॉडल की बात होती थी। गुजरात का ‘मोदी मॉडल’ जनता को दिखाकर बीजेपी ने वहां बम्पर सीटें हासिल कर ली हैं, ऐसा कहते थे। यही नहीं, गुजरात के बाहर भी, यहां तक कि पूरे देश में गुजरात-मॉडल की ही चर्चा होती थी। क्या पक्ष, क्या विपक्ष, गुजरात-मॉडल की बड़ाई हो या बुराई, कसौटी पर वह रहता ही था।

बीजेपी को बम्पर सीटें मिलने के बाद अब गुजरात फार्मूले पर सबका ध्यान आ गया है और सबसे बड़ा सवाल है कि क्या गुजरात का फॉर्मूला बाकी राज्यों में लागू होगा।

मध्यप्रदेश,छत्तीसगढ़ और राजस्थान में हैं चुनाव

नवंबर 2023 में मध्यप्रदेश छत्तीसगढ़ और राजस्थान में विधानसभा चुनाव होने हैं। इनको एक साल भी नही बचा। गुजरात और हिमाचल के चुनावों से निपट कर बीजेपी इन तीन राज्यों में अपनी चुनावी रणनीति पर काम करना शुरू करेगी। तीनों ही राज्य हिंदीभाषी हैं और 2023 के चुनावों के चार-पांच महीने बाद 2024 लोकसभा चुनाव होने हैं। इसलिए पार्टी आलाकमान का फोकस इन चुनावों में और भी ज्यादा होगा। ऐसे में इन राज्यों के बीजेप नेताओं की धड़कने बढ़ गई हैं कि –कभी भी आलाकमान का कोई भी फरमान आ सकता है। थोड़ा समझते हैं कि इन राज्यों में समीकरण क्या है?

मध्यप्रदेश में बीजेपी कांग्रेस बराबरी पर

मध्यप्रदेश में 2018 में बीजेपी को हार मिली। बीजेपी बहुमत से 7 सीट दूर रह गई। बीजेपी को सत्ता छोड़नी पड़ी और कांग्रेस ने सरकार बना ली। मार्च 2020 मे सिंधिया की बगावत के चलते कांग्रेस की सरकार गिर गई और बीजेपी ने फिर सरकार बना ली। हालांकि, बीजेपी की सरकार के साथ 2018 से चल रही कई समस्याएं और बढ़ गई हैं। मसलन, सिंधिया के साथ उनके कई सारे समर्थक भी बीजेपी में आए और उनको लगातार पार्टी में आउट ऑफ वे प्रमोशन और ट्रीटमेंट मिलने से बीजेपी के आम कार्यकर्ताओं में निराशा है।

जिन 28 सीटों पर सिंधिया समर्थक आए हैं, उन पर 2020 के उपचुनावों में सिंधिया और बीजेपी की संधि के तहत टिकट उन्हीं को दिए गए। इस बार इन सीटों पर किसे उतारा जाएगा ये सवाल बीजेपी कार्यकर्ताओं और टिकट के दावेदारों के दिलो-दिमाग में छाया है।

2018 में पार्टी की अंदरूनी कलह और एंटी इनकम्बैन्सी जैसे फेक्टर हावी रहे और 2023 में भी यही मुद्दे बीजेपी को भारी पड़ सकते है।

शिवराज के नेतृत्व पर सवाल

2005 से लेकर अब तक मध्यप्रदेश में बीजेपी की कमान मुख्मयमंत्री शिवराज सिंह चौहान के पास है। ऐसे में कई सारे चेहरे जो पार्टी से उम्मीद लगाऐ बैठे थे वो सभी पिछले 18 साल में राजनैतिक रिटारमेंट के आसपास आ गए लेकिन उनकी उम्मीदों पर पार्टी खरी नहीं उतरी। इसके अलावा मंहगाई, बेजरोजगारी, आरक्षण जैसे मुद्दे लगातार बने हुए हैं।

छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ में बीजेपी को 2018 में ही करारी हार मिली। इस हार के बाद पूर्व मुख्यमंत्री डाक्टर रमन सिंह को न तो नेता प्रतिपक्ष बनाया न ही पार्टी में कोई बड़ी जिम्मेदारी सौंपी गई। वैसे छत्तीसगढ़ में पार्टी लगातार बदलाव भी कर रही है और सगंठन की मजबूती के लिए काम भी। हालांकि, अभी तक के उपचुनावों में भी बीजेपी के लिए कुछ अच्छे संकेत कम से कम छत्तीसगढ़ से तो नहीं आ रहे। ऐसे में पार्टी किस रणनीति पर काम करेगी ये देखना होगा। छत्तीसगढ़ कांग्रेस की फूट ही एकमात्र ऐसा फैक्टर है, जो बीजेपी के काम आ सकता है।

राजस्थान में क्या होगी रणनीति

राजस्थान आमतौर पर हिमाचल की तरह का राज्य है। ये लोकतंत्र की प्रयोगशाला के तौर पर जाना जाता है। यहां हर पांच साल में सरकार बदलती है। अगर इस लिहाज़ से देखें तो राजस्थान में 2023 में बीजेपी की सरकार होनी चाहिए, लेकिन क्या कांग्रेस इतनी आसानी से सरकार हाथ से जाने देगी। हाल ही में कांग्रेस ने अपने प्रभारी बदले हैं। वहीं राजस्थान में महारानी को इगनोर कर पाना बीजेपी के लिए परेशानी बढ़ा सकता है। ऐसे में बीजेपी किस तरह की रणनीति बनाएगी कि महारानी वसुंधरा राजे और कार्यकर्ता सभी खुश हों।

मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस ही चुनौती

2018 के चुनावों में तीनों ही राज्यों में कांग्रेस की सरकार बनी। मध्यप्रदेश में सिंधिया की बगावत से वापस बीजेपी ने सत्ता हासिल कर ली, लेकिन पार्टी के अंदरूनी हालात नहीं बदले। संगठन और सत्ता दोनों में कार्यकर्ताओं की नाराजगी लगातार बनी है। वहीं राजस्थान और छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री अशोक गेहलोत और भूपेश बघेल दोनों ही दमदारी से सरकार चला रहे हैं।

क्या गुजरात का फॉर्मूला होगा लागू

अगर इन तीनों राज्यों में गुजरात का फॉर्मूला लागू होगा तो मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री समेत मंत्री और संगठन सभी में अचानक बदलाव होगा। ऐसे में मुख्यमंत्री का चेहरा वह होगा जिसे विपक्ष मुद्दा न बनाए और नए चेहरों को मुख्य धारा की राजनीति में लाकर मोदी मॉडल पर वोट मांगे जाएं। यही वजह है कि गुजरात मॉडल के बाद गुजरात फार्मूले ने सबकी नींद उड़ा ऱखी है। मध्यप्रदेश में खासकर इसकी चर्चा है, क्योंकि 2018 के चुनावों के  बाद यही एक राज्य है जिसमें बीजेपी की सरकार है।

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