राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत,राजस्थान की राजनीति का वो कद्दावर चेहरा जिसका जादू मतदाताओं के सिर चढ़कर बोलता है। एक ऐसा नेता जो अपने सौम्य व्यवहार से न सिर्फ अपने समर्थकों का दिल जीत लेता है बल्कि विरोधी भी उनके अंदाज के कायल दिखते हैं। जिस सीट से वह विधानसभा चुनाव लड़ते हैं। वहां की जनता उन्हें हर बार सिर आंखों पर बिठाती है। अशोक पिता भले ही जादूगर थे लेकिन अशोक गहलोत अब राजनीति में रहकर लोगों पर जादू कर रहे हैं, लेकिन 2023— 24 का बजट पेश करते समय उनका बजट भाषण बदल गया। चूक बड़ी थी लिहाजा उनकी बड़ी किरकिरी हो रही है।
- कभी पिता के साथ दिखाते थे अशोक गहलोत जादू
- छात्र जीवन से ही थी राजनीति में दिलचस्पी
- सियासत में उतरने की शुरुआत एनएसयूआई से की
- 1973 से 1979 में रहे राजस्थान एनएसयूआई के अध्यक्ष
- क्षत्रिय, जाटों और ब्राह्मणों के बीच बनाई अपनी पहचान
- पांच बार रहे जोधपुर से सांसद
- 1 दिसंबर 1998 में पहली बार बने राजस्थान के मुख्यमंत्री
माली जाति के नेता ने मरुभूमि में बनाई सियासी पैठ
इसे अशोक गहलोत का जादू ही कहा जाएगा कि जिस राज्य में क्षत्रिय, जाटों और ब्राह्मणों का वर्चस्व हो, वहां माली जाति के इस नेता ने गहरी पैठ बना ली। राजस्थान का सीएम पद संभाल रहे हैं। 1998 में उन्होंने तमाम बड़े नेताओं की चुनौती के बीच सीएम पद संभाला था। अशोक गहलोत की छात्र जीवन से ही राजनीति में दिलचस्पी थी। इस दौरान वह समाजसेवा में भी सक्रिय हो चुके है। सियासत में उतरने की शुरुआत उन्होंने कांग्रेस के छात्र संगठन एनएसयूआई से की थी। साल 1973 से 1979 में वह एनएसयूआई राजस्थान के अध्यक्ष रहे तो गहलोत 7वीं लोकसभा के लिए 1980 में पहली बार जोधपुर से कांग्रेस के टिकट पर जीतकर संसद पहुंचे। इसके बाद जोधपुर से ही लगातार चार बार चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे। यहां से लगातार शानदार प्रदर्शन का इनाम उन्हें केंद्रीय मंत्री बनने के तौर पर मिला। गहलोत को इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और पी.वी.नरसिम्हा राव के मंत्रिमंडल में जगह मिली। इसके अलावा वह तीन बार राजस्थान के मुख्यमंत्री भी रहे। बाद पहली बार 1 दिसंबर 1998 को मुख्यमंत्री बने और पांच साल तक कांग्रेस सरकार चलाई। इसके बाद 2008 में जब कांग्रेस को दोबारा सत्ता मिली तो वह दूसरी बार मुख्यमंत्री बने। तीसरी बार 2018 में वे अपने सभी विरोधियों को परास्त करते हुए मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज हुए।
गहलोत के पिता थे जादूगर
बता दें अशोक गहलोत माली जाति से संबंध रखते हैं। बहुत कम लोग इस बात को जानते हैं कि उनके पूर्वजों का पेशा जादूगरी था। गहलोत के पिता स्वर्गीय लक्ष्मण सिंह गहलोत जादूगर थे। अशोक गहलोत ने भी अपने पिता से जादू सीखा था और कुछ वक्त के लिए इस पेशे को अपनाया भी। लेकिन यह उनकी नियति नहीं थी। उन्हें तो सियासत के मैदान में रहकर मतदाताओं पर जादू करना था और वह इसमें कामयाब भी रहे।
बजट को बताया 2028 की तैयारी
गहलोत ने मुख्यमंत्री के तौर पर इस कार्यकाल का अंतिम बजट पेश किया। जैसा कि उम्मीद थी इस लोक लुभावने बजट में गहलोत साहब ने खजाना खोल दिया। चिरंजीवी बीमा योजना की राशि 25 लाख कर दी। 500 रुपये में गैस सिलिंडर और 100 यूनिट बिजली मुफ़्त। युवाओं के लिए ढेरों योजनाएँ तो बुजुर्गों की पेंशन दुगाना और महिलाओं को रोडवेज़ के बसों में आधा किराया और 5 हज़ार में सिलाई मशीन। यहीं नहीं छात्राओं को मुफ़्त में स्कूटी और ढेरों घोषणाएं की। अशोक गहलोत को उम्मीद है कि वे इस बजट के सहारे राजस्थान की गद्दी पर फिर काबिज हो पाएंगे। जैसा कि अक्सर राजस्थान में होता नहीं है। वहां हर पांच साल में सरकार बदल जाती है। वैसे तो अशोक गहलोत ने कोई कसर नहीं छोड़ी है। लेनिक वो अपने बजट को किस हद तक लागू कर पाते हैं। उसी पर सब निर्भर करेगा। मगर इतना तो कहना पड़ेगा कि जादूगर अशोक गहलोत ने अपने पिटारे से तोहफों की बरसात जनता पर जरूर कर दी है।
कहीं भारी न पड़ जाए ये चूक
लेकिन दोहरे फ्रंट पर जूझ रहे मुख्यमंत्री गहलोत से राज्य का बजट पेश करते हुए इस चूक की कल्पना शायद उनके विरोधियों ने भी नहीं की थी। मुख्यमंत्री कुछ मिनटों तक पुराने बजट के पन्ने पढ़ते चले गए। जिस लोकलुभावन बजट की भूमिका उनकी सरकार की ओर से पिछले लंबे अर्से से बांधी जा रही थी। वो चंद मिनटों में धूमिल हो गई। देखते ही देखते पुराना बजट पढ़ने का मुख्यमंत्री गहलोत का वीडियो सोशल मीडिया पर छा गया। हालांकि बवाल के बीच सीएम अशोक गहलोत का कहना है वो एक ह्यूमन एरर था। बीजेपी ने जानबूझकर हंगामा कर रही है।
पायलट गुट को मिल गया मौका
राज्य के पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट लगातार सत्ता में परिवर्तन का दबाव बना रहे हैं, लेकिन अशोक गहलोत, पायलट के सभी दावों को पलटते आ रहे हैं। सचिन पायलट को कोई भी मौका नहीं मिल पा रहा था, लेकिन बजट भाषण बदले जाने के प्रकरण में भाजपा के साथ सचिन को भी एक बड़ा मौका दे दिया। यह देखना दिलचस्प होगा कि चुनाव से 9 महीने पहले सचिन पायलट ‘बजट के पुराने पन्ने’ को कितना हवा में उछाल पाते हैं। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में इसी महीने के अंत में कांग्रेस का राष्ट्रीय अधिवेशन होना है। इस अधिवेशन में पुराने बजट के पन्ना प्रकरण को गहलोत विरोधी गुट उठाने की कोशिश जरुर करेगा। विरोधी कह सकते हैं कि अब युवा नेतृत्व को राजस्थान में आगे बढ़ाया जाए, क्योंकि जब मुख्यमंत्री इतना नहीं समझ पा रहे हैं कि क्या पढ़ना और क्या नहीं पढ़ना? तो जनता में कैसे उनके नेतृत्व में सरकार रिपीट का संदेश जाएगा? ऐसे में माना जा रही है कि 50 साल से सक्रिय राजनीति कर रहे अशोक गहलोत के समक्ष पिछले 4 साल का यह सबसे बड़ा संकट नजर आने लगा है। बजट के चंद पुराने पन्नों को जितनी हवा मिलेगी। उतना ही उनकी कुर्सी पर संकट गहराता दिखेगा। इस बार वह जादू की कौन सी छड़ी चलाते हैं? यह देखना होगा, क्योंकि गहलोत बजट को इस चुनाव नहीं, बल्कि वर्ष 2028 के विधानसभा चुनाव का बजट बता रहे हैं।