असीरगढ़ का किला।मध्यप्रदेश के बुरहानपुर जिले में सतपुड़ा की वादियों में बना है। हिंद्स्तान के इतिहास में इस किले को लेकर भरा पूरा इतिहास है तो वहीं कई तरह की किवदंती थी जो महाभारत काल से जुड़ी है। हिद्स्तान के इतिहास में इस किले को अजेय दुर्ग माना जाता था।इस किले के अंदर अनाज के भंडार से लेकर पानी के इतने सारे स्त्रोत थे कि एक पूरा का पूरा गांव महीनों यहां बसर कर सकता था।
अकबर ने जीता था किला
मुगल सम्राट अकबर ने इस किले को सन 1600 के आसपास जीत लिया। इतिहास में इश किले के दक्कन का दरवाजा कहा जाता है। क्योकिं यही से महाराष्ट् का खानदेश शुरू होता है और इसी जगह पर मुगलों ने अपने सेना के साथ डेरा डाला था। मुगलों के मंसूबे इस जगह से दक्षिण भारत तक जाना है। दक्षिण भारत में मराठों पर हमला करने के लिए योजनाऐं इसी किले से बनती थी। कहा जाता है कि ये किला कोई राजा जीत नहीं सका। जिसने भी किले पर कब्जा किया कूटनीति से ही किया क्योकि किले की बनावट ऐसी है कि 60 एकड़ में बना किला तीन भागों में बंटा है बीच का हिस्सा कमरगढ निचला हिस्सा मलयगढ़ और फिर असीरगढ़। इस किले में गंगा जमुना नाम के दो कुंड हैं।
रहस्यों से भरपूर है किला
किला बहुत रहस्यमयी माना जाता है और इसका किस्सा महाभारत काल से भी जुड़ता है। माना जाता है महाभारत काल के पात्र अश्वत्थामा इस किले में घूमते हैं।अशवत्थामा किले के अंदर बने गुप्तेश्वर मंदिर में पूजा करते है। रोज सुबह शिवलिंग पर एक ताजा गुलाब का फूल चढा होता है। किले के आसपास गांव के लोग बताते है कि सिर पर बने घाव से खून रिसता एक व्यक्ति अकसर यहां होता है लेकिन जो उसे देख लेता है वो फिर कभी देख नहीं पाता।
इतिहास के पन्नों में इस किले को दकक्न की चाभी कहा जाता है। वहीं रहस्य से जुड़े किस्से भी इस किले के साथ पीढी दर पीढी सुनाए जा रहे हैं। तमाम रहस्यों के बीच असीरगढ़ का किला इतिहास और रहस्यों को समेटे आज भी अभेद दुर्ग की तरह खड़ा है।