अर्जुन राम मेघवाल का सियासी कद बढ़ा: जानिए इसके पीछे की कहानी

कैबिनट में अचानक फेरबदल की ये रही वजह

राजनीति में भाजपा से ज्यादा सटीक दांव पेंच खेलने वाला फिलहाल कोई नहीं है। पार्टी के निर्णय हो या नेताओं के बयान। इनके पीछे कुछ न कुछ कारण जरूर होता है। केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज कैबिनेट में मामूली फेल बदल करके कुछ नए संकेत दिए हैं। केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू को कानून मंत्री के पद से हटाकर उन्हें पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय का जिम्मा सौंप दिया है। जबकि उनके मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार अर्जुन राम मेघवाल को दिया गया है। जबकि अर्जुन राम मेघवाल पहले से ही संसदीय कार्य मंत्रालय और संस्कृति मंत्रालय के राज्यमंत्री के रूप में काम कर रहे थे।

पहले जानते हैं मेघवाल के बारे में

अर्जुन राम मेघवाल भारतीय प्रशासनिक सेवा में रहे है और उन्होने वीआरएस लेकर 2009 में भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा था। बीकानेर लोकसभा सीट से उन्हे विजयी मिली और वे सांसद बन गए। यहां यह भी बताना जरूरी है कि बीकानेर भाजपा के लिए एक सुरक्षित सीट मानी जाती है। इसके बाद मेघवाल ने 2014 और 2019 में भी वहां से जीत दर्ज की है। उन्हे वर्ष 2016 में मोदी सरकार में वित्त राज्य मंत्री का दायित्व दिया गया था। इसके बाद जल संसाधन राज्य मंत्री के रूप में भी उन्होंने काम किया। मेघवाल ने बीकानेर के राजकीय डूंगर कालेज से स्नातक और स्नातकोत्तर की उपाधि के साथ एलएलबी की पढ़ाई की है।मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में मई 2019 में संसदीय मामलों और भारी उद्योग और सार्वजनिक उद्यम राज्य मंत्री बनाया गया। 2021 में उन्हें संस्कृति मंत्रालय में राज्य मंत्री बनाया गया। अब उन्हें कानून मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार दिया गया है। एक तरह से वह इस मंत्रालय के सर्वेसर्वा हो गए हैं। इस तरह मोदी सरकार ने उनके सियासी कद को बढ़ा दिया है।

कैबिनट में अचानक फेरबदल की ये रही वजह

राजनीति के जानकारों की माने तो एक तो बड़ा कारण यह है कि कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भाजपा सरकार बनाने में कामयाब नहीं हो पाई। उसके पीछे के जो कारण भाजपा मानकर चल रही है उसमें कहा जा रहा है कि कर्नाटक में दलित,पिछड़े और लिंगायत वोटरों कांग्रेस की तरफ शिफ्ट हो गए हैं। शायद इसी वजह से भाजपा कर्नाटक में चुनाव हारी है। इसलिए भाजपा ने आगामी चुनाव वाले राज्यों में दलितों पर फोकस करना शुरु कर दिया है। दूसरा कारण यह भी माना जा रहा है कि बीते कुछ महीनों में न्यायपालिका के साथ किरेन रिजिजू के बढ़ते तकरार और मंत्रियों के कामकाज की समीक्षा के बाद ये कदम उठाया गया है।

भाजपा का दलित चेहरा है मेघवाल

भाजपा में मेघवाल दलित समुदाय का बड़ा चेहरा माने जाते हैं। ये वही मेघवाल है जो सिर पर पगड़ी बांधकर साइकल से संसद भवन पहुंचे थे। उन्हे 2013 में सर्वश्रेष्ठ सांसद का पुरस्कार भी मिल चुका है। अब इसी साल के अंत में राजस्थान विधानसभा के चुनाव होना है। राजनीति की गलियों में माना जाने लगा है कि इसी कारण मेघवाल को पदोन्नत कर मोदी सरकार और भारतीय जनता पार्टी ने राजस्थान में दलित मतदाताओं को साधने का एक नया दांव चला है और बताने की कोशिश की है कि भाजपा दलित हितैषी है।

राजस्थान में दलितों के वोट से बनती है सरकार

राजस्थान में दलितों की अच्छी खासी संख्या है। यहां की कुल 2 सौ विधानसभा सीटों में से 34 सीटें अनुसूचित जाति और 25 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं। राजस्थान में दलित मतदाता परंपरागत तरीके से भाजपा का ही वोट बैंक माना जाता है। पिछले तीन विधानसभा चुनावों को बात करें तो आंकड़े बताते हैं कि जिस दल ने एससी और एसटी सीटों पर कब्जा जमाया है,राजस्थान में उसी की सरकार बनी है। यही कारण है कि मेघवाल का सियासी कद बढ़ाकर भाजपा ने राजस्थान के दलित वोटरों को साधने का एक तरह से प्रयास किया है। उल्लेखनीय है कि 2011 की जनगणना को देखें तो
राजस्थान में अनुसूचित जाति  की कुल जनसंख्या का 17.83% और अनुसूचित जनजाति  की आबादी 13.48% है। यानी 31 फीसदी से ज्यादा दलित वोटरों की आबादी है।

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