Ramcharitmanas Row अखिलेश के लिए इधर जाऊं या उधर जाऊं वाली हालत, नया वीडियो तो यही बताता है

रामचरितमानस पर विवाद कम क्यों नहीं हो रहा?

Mainpuri Lok Sabha by-election Akhilesh alleges administration is doing work of BJP

Ramcharitmanas Row: रामचरितमानस पर विवाद है कि कम ही नहीं हो रहा है। ताजा मसला भागवत के बयान का है। स्वामी रविदास जयंती के अवसर पर भागवत ने मराठी में एक बयान दिया, जिसको मीडिया में ब्राह्मण-विरोधी बना दिया गया। इस पर स्वामीप्रसाद मौर्य ने बयान दिया कि अगर भागवत का यह बयान मजबूरी में नहीं है, तो उनको रामचरितमानस से वह पंक्तियां हटवा देनी चाहिए, जिनसे लोगों की भावना आहत होती हैं। पहले जानिए कि अब तक क्या हुआ है

अखिलेश दो नावों पर क्यों हैं सवार?

इसको समझने के लिए सपा का इतिहास समझना होगा। लोकदल में विभाजन के बाद मुलायम सिंह ने 1992 में समाजवादी पार्टी का गठन किया था। सपा का बेस भले ही एम यानी मुसलमान और वाय मतलब यादव का समीकरण था, लेकिन मुलायम सबको साध कर चलते थे। अभी जब रामचरितमानस पर बवाल शुरू हुआ है, तो सपा के सवर्ण नेताओं में बेचैनी है। अखिलेश इस बार अपनी रणनीति बदलकर पूरी तरह दलितों-पिछड़ों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, इसलिए मौर्य को तो नहीं छू रहे, लेकिन सवर्णों को भी लेकर चलना चाहते हैं। यही उनकी दुविधा है। अब थोड़ा सपा का इतिहास देखें-

सपा में रहते जनेश्वर मिश्र केंद्र में मंत्री बने. बृजभूषण तिवारी और किरणमय नंदा सपा में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पद तक पहुंचे।  अब अखिलेश की पूरी निगाह उन दलित वोटों पर है, जिन्हें वह मानते हैं कि वे मायावती के साथ नहीं हैं। इसलिए मौर्य हों या पटेल, इनके बयानों पर अखिलेश लगाम नहीं लगाते, उल्टा तुष्टीकरण करते हैं।

अखिलेश मिशन 2024 के लिए तलाश रहे जमीन

मिशन 2024 के लिए अखिलेश यादव नया दांव चल रहे हैं। वह ओबीसी, दलित और मुस्लिम का गठजोड़ बनाकर बीजेपी को रोकने की तैयारी में हैं। इसी संदर्भ में अखिलेश यादव के हालिया फैसलों को देखना चाहिए।

सपा के भीतर बवाल

हालांकि, अखिलेश यादव की नई रणनीति के बीच पार्टी के भीतर ही जूतमपैजार की नौबत है। पार्टी के सवर्ण नेता घायल महसूस कर रहे हैं। सियासी उबाल उफान पर है। कार्यकारिणी गठन के बाद पूर्वांचल के कद्दावर नेता ओम प्रकाश सिंह हों या प्रयागराज की तेजतर्रार नेता रिचा सिंह, सबने सोशल मीडिया पर मोर्चा खोल दिया है। सपा में सवर्ण नेताओं की मुखरता को पार्टी के भीतर सियासी घमासान के तौर पर ही समझना चाहिए।

पिछड़ा और सवर्ण की राजनीति में पार्टी के भीतर सवर्ण नेताओं को भविष्य की चिंता भी सताने लगी है। पार्टी के भीतर जो सवर्ण नेता खुद को लोकसभा का दावेदार मान रहे हैं, उनके सामने दो महत्वपूर्ण सवाल हैं। पहला तो यह कि सपा लोकसभा में कितने सीटों पर सवर्ण उम्मीदवारों को टिकट देगी? दूसरा, क्या अखिलेश की इस रणनीति से नाराज सवर्ण पार्टी को वोट देंगे?

पार्टी के भीतर सवर्ण नेताओं की छटपटाहट इन्हीं दो सवालों को लेकर है।

अखिलेश के लिए राह मुश्किल

यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में समाजवाद पार्टी ने 79 सवर्णों को टिकट दिया था और उनमें से 10 ही जीत पाए। इसलिए अखिलेश इस बार रणनीति में बदलाव कर रहे हैं और दलितों को जोड़ना चाह रहे हैं। हालांकि, पार्टी के अंदरूनी घमासान और सवर्णों को साधने की कोशिश में वह कितना सफल होते हैं, यह दरअसल गौर करने की बात होगी।

 

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