राजस्थान का अजमेर शहर ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह के लिए जाना जाता है. दरगाह पर हर समुदाय के श्रध्दालु पहुंचते है और ख्वाजा गरीब नवाज के सामने अपना माथा टेकते है. लेकिन इस दरगाह और शहर के साथ एक ऐसा काला इतिहास भी जुड़ा है जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता है. इस काले इतिहास पर अजमेर 92 नाम की एक फिल्म रिलीज होने जा रही है. फिल्म के ऊपर अभी से विवाद शुरू हो गया है. मुस्लिम पक्ष का कहना है कि फिल्म के जरिए अल्पसंख्यक वर्ग के खिलाफ नफरत फैलाने का काम किया जा रहा है. कई बड़े मुस्लिम संगठनों ने फिल्म को बैन करने की मांग भी की है. आखिर ये काला इतिहस क्या है , आइएं जानते है.
क्या थी घटना ?
साल 1992 में अजमेर के एक अखबार ने बड़ा खुलासा किया. खुलासे में सामने आया कि अजमेर के चिश्ती परिवार के सदस्यों और रसूखदार परिवार के लोगों ने स्कूल और कॉलेज की 100 से ज्यादा लड़कियों को अपने जाल में फंसाकर उनका यौन शोषण किया और उन्हें ब्लैकमैल किया. मामले का खुलासा तब हुआ जब फोटो प्रिंट करने वाली कलर लैब्स ने लड़कियों की नग्न तस्वीरे प्रिंट की और उन्हें वितरित किया. मामले में मशहूर चिश्ती परिवार के सदस्य फारूक और नफीस का नाम सामने आया था. पुलिस जांच में सामने आया था कि सलीम और नफीस अपने दोस्तों के साथ स्कूल जाने वाली बच्चियों को धमकाते थे और सामूहिक बलात्कार कर नग्न फोटोज खींचते थे, केस की जांच में खुलासा हुआ था कि ये लोग पहले एक लड़की को ब्लैकमैल करते है और उससे उसकी दोस्तों को भी लाने को बोलते थे. इसके बाद यह एक तरह की चैन बनती चली गई, जिसमें कई लड़कियां शिकार बनी.
क्यो उठ रही बैन करने की मांग ?
खादिमों की संस्था अंजुमन सैयद जादगान के सचिव सैयद सरवर चिश्ती ने फिल्म को बैन करने की मांग की है. उनका कहना है कि फिल्म के जरिए दोनों समुदायों के बीच नफरत फैलाने का काम किया जा रहा है. वहीं इंडिया मुस्लिम फाउंडेशन के चेयरमैन डॉक्टर शोएब जमाई ने कहा है कि अगर फिल्म के जरिए दरगाह को बदनाम करने का काम किया जाएगा तो मेकर्स के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी. एक और मुस्लिम संगठन जमीयत के अध्यक्ष महमूज मदनी का कहना है कि इस फिल्म के जरिेए अजमेर शरीफ की दरगाह को बदनाम करने का काम किया जा रहा है. अपराधिक घटनाओं को धर्म से जोड़ने की जगह सरकार कार्रवारई करें तो ज्यादा बेहतर होगा.
क्या था कोर्ट का फैसला ?
मामले में 6 बाल बाद 1998 में पहला जजमेंट आया जिसमें 8 लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई. बाद में राजस्थान हाईकोर्ट ने पुलिस द्वारा बनाएं गए चार आरोपियों को बरी कर दिया, जबकि बाकि आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई. फारूक चिश्ती को मानसिक रूप से अस्थिर बता दिया गया. 2003 में सुप्रीम कोर्ट ने बाकि 4 आरोपियों की उम्रकैद की सजा को घटाकर 10 साल कर दिया था. सलीम चिश्ती इतने सालों तक फरार रहा है उसने 2012 में अपने आप को राजस्थान पुलिस के सामने सरेंडर कर दिया. लेकिन कुछ दिनों उसे भी जमानत पर रिहा कर दिया गया.
केरल स्टोरीज पर भी उठा था विवाद
ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है , जब किसी फिल्म पर विवाद उठ रह हो. इससे पहले हाल ही में आई केरल स्टोरीज पर भी विवाद उठ चुका है. विवाद इतना बढ़ गया था कि इस पर कई राज्य सरकारों ने बैन लगा दिया था, हालांकि बाद में सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप किया और फिल्म को पूरे देश में रिलीज करवाया. केरल स्टोरीज पर भी हिंदु- मुस्लिम के बीच नफरत फैलाने के आरोप लगे थे, लेकिन फिल्म रिलीज हुई और बड़ी हिट साबित हुई.