आखिर क्यों हो रहा है राजस्थान में राइट टू हेल्थ बिल पर विवाद, आपदा में अवसर तलाश रही बीजेपी

Right to Health Bill in Rajasthan

राजस्थान में साल के अंत में विधानसभा चुनाव होना हैं। ऐसे में राज्य की अशोक गहलोत सरकार निजी क्षेत्र के डॉक्टरों के विरोध का सामना कर रही है। प्रदेश भर में डॉक्टर राइट टू हेल्थ बिल को लेकर सड़क पर उतर आए हैं। राजस्थान सरकार और निजी डॉक्टर्स संघर्ष समिति के बीच इस बिल को लेकर विरोध थमने का नाम नहीं ले रहा है। पिछले 12 दिन से समित और सरकार के बीच गतिरोध बना हुआ है। हालांकि सीएक अशोक गहलोत मामला शांत कराने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने डॉक्टरों को भगवान का दर्जा देते हुए कहा कि जो बिल सरकार लेकर आई है वह जनहित में है। ऐसे में डॉक्टर हड़ताल का रास्ता छोडे़ और चर्चा करें।

मंत्री बोले-डॉक्टर सरकार पर अहसान नहीं कर रहे

सीएम की अपील के बाद भी निजी डॉक्टर बिल का विरोध बंद करने के मूड में नहीं है। वहीं गहलोत सरकार में चिकित्सा मंत्री प्रसादी लाल मीणा के बयान ने आग में घी डालने का काम किया। राइट टू हेल्थ बिल को लेकर मंत्री मीणा ने कहा किसी भी अस्पताल का भुगतान शेष नहीं है। सरकार ने 15 दिन में सभी अस्पतालों क भुगतान कर दिया है। मंत्री मीणा यही नहीं रुके उन्होंने कहा डॉक्टर्स सरकार पर एहसान नहीं कर रहे। काम के बदले ने पैसे दिए जा रहे हैं। काम करेंगे तो पैसा देंगे। उन्होंने कहा राइट टू हेल्थ बिल लागू होने के बाद उसे मानना होगा। नहीं तो करवाई की जाएगी। राज्य सरकार के दरवाजे चर्चा के लिए हमेशा खुले हैं। कानून को वापस लिया जाए ये कहने का अधिकार डॉक्टरों के पास नहीं है। वहीं मंत्री मीणा ने कहा ये कानून जनता के हित में है। अगर डॉक्टरों के कोई सुझाव है तो सरकार उसे मानने के लिए तैयार है। ये बिल किसी भी कीमत पर सरकार वापस नहीं लेगी।

सीएम ने बिल पढ़ा है या बजट की तरह ब्यूरोक्रेसी पर छोड़ा

वहीं चिकित्सा मंत्री मीणा के बयान के बाद डॉक्टर्स संघर्ष समिति ने प्रेस कांफ्रेंस बुलाई। जिसमें डॉक्टर्स ने कहा सीएम गहलोत ने बिल पढ़ा भी है या फिर पिछली बार जिस तरह से बजट पढ़ा था उसी तरह ही ब्यूरोक्रेसी पर छोड़ दिया है। जिसके चलते आज प्रदेश की यह स्थिति हुई है। डॉक्टरों ने राजस्थान सरकार के स्वास्थ्य अधिकार बिल का विरोध कियाण् इंडियन मेडिकल एसोसिएशन द्वारा एक अखिल भारतीय विरोध दिवस की घोषणा की गई थी। सिद्दपुर आईएमए के सदस्यों ने काली पट्टी बांधकर विरोध जताया। राजस्थान सरकार द्वारा पारित स्वास्थ्य अधिकार विधेयक के विरोध में सिद्धपुर सहित पूरे भारत में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की 1700 शाखाएं और गुजरात राज्य की 110 शाखाएं शामिल हुईं। काला फीता बांधकर काला दिवस मनाया गया। स्वास्थ्य का अधिकार संविधान द्वारा भारत के नागरिकों को दिया गया है और इसे प्रदान करना राज्य की जिम्मेदारी है। सिद्दपुर आईएमए ने कहा कि असंवैधानिक बिल के जबरन कार्यान्वयन से निजी स्वास्थ्य सेवाओं में बाधा आएगी और उच्च अंत प्रौद्योगिकी संचालित स्वास्थ्य सेवाओं की मौत की घंटी बज जाएगी। अध्यक्ष डॉण् अनीशभाई मंसूरी ने कहा।

गुजरात के डॉक्टर भी आए साथ

राजस्थान सरकार की ओर से पारित स्वास्थ्य अधिकार बिल के खिलाफ देश भर में विरोध शुरू हो गया है। जिसमें राजकोट सहित गुजरात के लगभग 3300 डॉक्टर शामिल हुए हैं। इस विधेयक में प्रावधान किया गया है कि यदि रोगी किसी निजी अस्पताल में आपातकालीन उपचार के लिए भर्ती होता है और उस उपचार का खर्च वहन करने में सक्षम नहीं होता है तो राजस्थान सरकार उपचार का खर्च वहन करेगी। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की 1700 शाखाएं और गुजरात की 110 शाखाएं राजस्थान सरकार द्वारा पारित स्वास्थ्य विधेयक के खिलाफ अखिल भारतीय विरोध दिवस में शामिल होंगी।

बीजेपी को मिला चुनावी मुद्दा

गहलोत सरकार के प्रति डॉक्टरों की नाराजगी से बीजेपी खुश है क्योंकि साल के अंत में विधानसभा चुनाव होना है। ऐसे में राजस्थान भारतीय जनता पार्टी के पूर्व अध्यक्ष सतीश पूनिया ने लेटर लिख मुख्यमंत्री से राइट टू हेल्थ बिल पर समाधान की मांग की है। उन्होंने लिखा कि मेडिकल और स्वास्थ एक ऐसा क्षेत्र है। जहां 24 घंटे सेवाओं की आवश्यकता होती है। किसी सरकार को किसी समस्या के अहंकार की तरफ नहीं समाधान की तरफ बढ़ना चाहिए। जो गतिरोध था। वह लगातार बढ़ रहा हैं। सरकार ने कोशिश नहीं कि डॉक्टर्स की समस्या को समझने की। जिसकी वजह से आज विरोध बढ़ने के साथ हालत पूरी तरह बिगड़ चुके हैं। पूनिया ने कहा राइट टू हेल्थ के बिल में यदि मंशा ठीक होती। तो आम लोगों को मेडिकल सुविधा ठीक मिले। इस पर सब एकमत है। लेकिन दोनों ही पक्षों को संजीदगी से सुनकर और उसका योग्य समाधान होना चाहिए था। मालूम हो कि इंडियन मेडिकल एसोसिएशन गुजरात के 3300 समेत साढ़े पांच लाख डॉक्टर भी विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए हैं।

प्रकाश कुमार पांडेय

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