भगवान विष्णु को समर्पित बद्रीनाथ धाम हिमालय क्षेत्र में स्थित है. पहाड़ी इलाका और भारी बर्फबारी के चलते यहां का मौसम काफी ठंडा हो जाता है. ऐसी स्थिति में बद्रीधाम ही नहीं बल्कि चारों धाम के कपाट बंद कर दिए जाते हैं. इस वर्ष कपाट बंद करने का दिन 20 नवंबर है. आज ही के दिन शाम को 6ः15 मिनट पर भगवान बद्रीनाथ के कपाट को बंद कर दिया जायेगा. ये कपाट 6 मास के शीतकाल के बाद एक बार फिर खोल दिए जाएंगे और इसके बाद फिर श्रद्धालू भगवान के दर्शन कर सकेंगे.
कपाट बंद हो से पहले होगा ये काम
कपाट बंद होने से पहले बाबा बद्रीनाथ के दर्शन के लिए लोगों की भीड़ लगी हुई है. पूरे मंदिर परिसर को करीब 20 क्विंटल फूलों से सजाया गया है. इस भीषण ठंड में भी बद्रीनाथ के कपाट बंद होने के समय साक्षी बनने के लिए हजारों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए वहां पर पहुंचे रहे है. इस बार 16 नवंबर से ही बद्रीनाथ के कपाट बंद होने की प्रक्रिया की शुरुआत हो चुकी थी और आज साम 6ः15 मिनट में बद्रीनाथ के कपाट बंद होने से पहले बद्रीनाथ के मुख्य पुजारी रावल जी माता लक्ष्मी की मूर्ति को गर्भगृह में स्थापित करेंगे. इसके पश्चात उद्धव जी, कुबेर जी और शंकराचार्य जी की गद्दी डोली में मांडुलेश्वर के लिए रवाना होगी.
हिंदू धर्म की आस्था का केन्द्र बद्रीधाम
उत्तराखंड के चमोली में स्थित बद्रीनाथ धाम हिंदू धर्म की आस्था का केंद्र है. ये मंदिर बद्रीनारायण के नाम से भी जाना जाता है. अलखनंदा नदी के किनारे पर स्थित इस स्थान को भी बद्रीनाथ कहा जाता है. इस मंदिर में भगवान बद्रीनाथ के स्वरूप की पूजा की जाती है. इस मंदिर में भगवान विष्णू की सालिग्राम की मूर्ति रखी गई है. इस मूर्ति के बारे में कहा जाता है कि 18वी शताब्दी में नारद कुंड से इस मूर्ति को आदिशंकराचार्य ने निकालकर मंदिर में इसकी स्थापना की थी. चार धाम में एक बद्रीनाथ धाम भी है. बता दें कि बद्रीनाथ धाम भारत के उत्तर में स्तिथ होने के बावजूद भी इस मंदिर के पुजारी जिन्हें रावल कहा जाता है, वो दक्षिण भारत के केरल के ब्राह्मण होते हैं.