West Bengal में Dhokle पर भारी पड़ा Rasogulla

West Bengal में Dhokle पर भारी पड़ा Rasogulla

जितेंद्र वर्मा की कलम से…

बंगाल के नतीजे आ गए. दो मई हो गई. न दीदी गई न टीएम सी गई. नतीजे आ गए. बंगाल फिर ममता मय हुआ. ममता ने जिस धाक के साथ कहा था कि हम हमारा रोशगुल्ला खाएगा तुम अपना ढोकला रखो. बंगाल चुनाव का अगर आकलन करे तो न तुम हारे न हम जीते शायद ऐसे ही कुछ लगते ये नतीजे. ममता ने बंगाल जीत लिया लेकिन नंदी ग्राम हार गई. पर ममता के चेहरे पर शिकन नही है उन्होंने नंदी ग्राम के लोगो के फैसले के सहर्ष स्वीकार किया. वही बीजेपी ने ममता के हरा दिया लेकिन बंगाल नही जीत सके. अगर दोनो ही दलो को आकलन करे तो बीजेपी के खाते में हारकर भी जीत है. और ममता के खाते में जीतकर भी हार ही है.

दरअसल बीजेपी ने बंगाल में सालो लगा दिए. बीजेपी के महासचिव 2014 से लगातार बंगाल में रणनीति बना रहे है. तमाम सारी रणनीतियो के बाद 2021 तक बीजेपी कम से कम इतनी सफल तो मानी जा सकती है कि इन चुनावो को हिंदी मीडिया में सबसे दिलचस्प चुना बना दिया. ममता की पार्टी पर सेंध लगा दी और तो और सबसे बडी उपलब्धि ममता को नंदीग्राम से हरा दिया. इतने सालो में बंगाल के बेटल में ये सारी अचीवमेंट बीजेपी के ही खाते में जाऐंगे. इसके अलावा सत्ता नही तो कम मजबूत के विपक्ष के तौर पर बीजेपी अब बंगाल में मैदान में आ चुकी है. वही ममता दीदी की बात करे तो बंगाल का बेटल उन्होने जीत लिया , लेकन अपनी सीट को हार गई. बंगाल के लोगो के उनकी पार्टी को सर आंखो पर ऱखा लेकिन दीदी को नंदीग्राम ने नापसंद कर दिया. कुल मिलाकर देखे तो दोनो ही दलो ने बहुत कुछ पाया भी है और खोया भी है टीएमसी ने किला बरकरार रखा तो बीजेपी बंगाल में सत्ता की राह तलाशते तलाशते विपक्ष की कुर्सी तक जा पहुंची वो भी अपने आप में बहुत बडा एचीवमेंट है. बीजेपी के लिए क्योकि ये चुनाव बंगाल का था, जिसमें इन सालो से पहले कभी बीजेपी को कोई वजूद ही नही था. ये चुनाव खतरे की घंटी है. बीजेपी के लिए भी क्योकि बंगाल मे कही न कही लेफ्ट और कांग्रेस ने दीदी के लिए मैदान छोड दिया था. मतलब साफ है कि जो बीजेपी के खिलाफ मैदान मे ही उसका साथ देना है और बीजेपी ने जिस ध्रुवीकरण की बात कही थी उसने बीजेपी को जितना फायदा दिया उससे कही ज्यादा टीएमसी को दे दिया. यही वजह रही कि चुनावी नतीजो पर कुछ ऐसा कहना पड रहा है कि न तुम जीते न हम हारे.

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