बिहार में नीतीश के नेतृत्व वाली गठबंधन की सरकार पर उनके अपने ही आंखे तरेरने लगे हैं। वजह एक नहीं कई हैं। बढ़ते विवाद और टकरार के कारण बिहार की सियासी गलियों में चर्चा होने लगी है कि कई राजनैतिक दलों में आपसी खटपट शुरु हो गई है। आए दिन बैठकों में विवाद होते हैं तो कई बार अपने निजी हितों को लेकर उठापटक होने लगती है। हालांकि ये भी सही है कि अभी पूरी तरह से विवाद सड़कों पर नहीं आ रहे हैं लेकिन लोकसभा चुनाव आते आते इस तरह के विवाद अभी और बढ़ेगे।
. चार लाख शिक्षक करने जा रहे आंदोलन
. गठबंधन में शामिल दलों का मिल रहा समर्थन
. बिहार की सरकार पर दाग रहे सवाल
. बीपीएससी परीक्षा के मामले ने बढ़ाया टेंशन
. बिहार कैबिनेट की नियमावली का विरोध
ऐसा माना जाता है कि बिहार में दो ही दिग्गज नेता है जिनके नेतृत्व में सभी निर्णय होते हैं। राज्य के सीएम नीतीश कुमार और उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव। बाकी के जितने से सहयोगी संगठन है उन्हे बहुत ज्यादा भाव नहीं दिया जा रहा है। इससे ये खुद को उपेक्षित महसूस करने लगे हैं। अभी ताजा मामला बिहार के शिक्षकों को लेकर गर्माने लगा है। राज्य के करीब 4 लाख शिक्षक नीतीश सरकार से नाराज हैं।
क्यों भड़क रहे है शिक्षक
बिहार के 4 लाख शिक्षकों ने सरकार एक निर्णय का विरोध किया है। इस निर्णय के तहत शिक्षकों को बीपीएसी की परीक्षा देकर खुद को साबित करना पड़ेेगा कि ये पढ़ाने के काबिल हैं या नहीं। मतलब जो शिक्षक इस परीक्षा में सफल होंगे उन्ही को सरकारी कर्मचारी माना जाएगा। इससे शिक्षकों ने राज्य सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। उन्होंने अपनी मांग रखते हुए कहा है कि बिहार सरकार को तत्काल इस निर्णय को वापस लेना चाहिए। नई नियमावली को कैबिनेट की मंजूरी के बाद शिक्षक संघ ने साफ कर दिया है कि इस तरह के नियमों वो नहीं मानेंगे और अपनी लड़ाई लोकतांत्रितक तरीके से लड़ेंगे।
गठबंधन में शामिल दल भी शिक्षकों के साथ
बिहार सरकार में राजद और जेडीयू के अलावा वाम दल भी शामिल हैं। ऐसे में इन दलों ने भी शिक्षकों की मांगों का समर्थन करते हुए मांगों पर पुन: विचार करने को कहा है।सीपीआई-माले,सीपीआई और सीपीएम ने भी टीचर्स की मांग को जायज ठहरातें हुए उनका समर्थन किया है। बता दें कि बिहार में सरकार की नई नियामावली के विरोध में प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च माध्यमिक एक साथ खड़े हो गए हैं। इन संगठनों ने चरणबध्द तरीके से आंदोलन करने का निर्णय लिया है। पहले 20 मई को सभी प्रमंडल मुख्यालय में प्रदर्शन करेंगे इसके बाद 22 मई को जिला मुख्यालय पर धरना देंगे और जुलाई में विधानसभा सत्र के दौरान पटना में प्रदर्शन करेंगे।
इसलिए बढ़ा है आक्रोष
बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ के महासचिव और पूर्व सांसद शत्रुघ्न प्रसाद सिंह की माने तो उनका कहना है कि दो दशक से पढ़ा-लिखा रहे शिक्षकों को सरकारी कर्मचारी का दर्जा और कुछ ज्यादा वेतन का लालच दिया जा रहा है। उन्हे बीपीएससी की परीक्षा के बहाने बड़ी संख्या में शिक्षकों को बाहर का रास्ता दिखाने का एक तरीका हो सकता है। ये किसी भी हाल में ठीक नहीं है। इसके अलावा स्कूलों में एक ही तरह का काम करने वाले तीन तरह के शिक्षक हों जाएंगे ये संविधान में समानता के अधिकारों का सीधा उल्लघंन है। उन्होंने कहा कि सरकार सम्मान के साथ शिक्षकों को काम करने नहीं देगी तो शिक्षक समान काम के लिए समान वेतन और समान दर्जा की मांग के लिए सड़क पर संघर्ष करेंगे।