आसमान से बरस रही आग ने पूरे देश को चिंता में डाल दिया है। तापमान लगातार बढ़ रहा है और लोग हीटस्ट्रोक का शिकार हो रहे हैं। इसका असर भारत के 90 प्रतिशत हिस्से में देखने को मिल रहा है,लेकिन सबसे ज्यादा दिल्ली प्रभावित हो रही है। इसी बीच आई एक रिपोर्ट ने यहां तक संकेत दिए है कि हीटवेव से देश की प्रगति भी प्रभावित हो रही है।
. देश की प्रगति में बाधक हीटवेव
. मुंबई में हीटस्ट्रोक से 13 की हुई मौत
. दिल्ली के तापमान को कम करने का दिए सुझाव
. पांच दशक में 17 हजार की मौत
. जीडीपी में आ सकती है गिरावट
कैंब्रिज विश्वविद्यालय में रामित देबनाथ और उनके सहयोगियों की स्टडी रिपोर्ट में कहा है कि यदि देश में गर्म हवाओं के प्रभाव को नियंत्रित करने में मजबूत कदम नहीं उठाए गए तो हालात बहुत खराब हो सकते हैं। सबसे ज्यादा असर दिल्ली पर होगा। यहां तक की संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास के लक्ष्य प्राप्त करना भी कठिन होगा और देश की प्रगति धीमी हो जाएगी।
50 साल में 17 हजार की मौत
हीटवेव के प्रभावों के चलते बीते 50 सालों में करीब 17 हजार लोगों की मौत हुई है।मिनिस्ट्री ऑफ अर्थ साइंस के पूर्व सचिव एम राजीवन के मुताबिक वर्ष 2021 में एक शोधपत्र प्रकाशित हुआ था जिसमें 1971 से लेकर 2019 तक भारत में हीटवेव से मरने वालों का आंकड़ा 706 था। अभी हाल ही में मुंबई में हुई एक घटना हमें चौंकाती है जहां हीटस्ट्रोक से 13 लोगों की मौत हो गई।
जीडीपी में कमी की संभावना
भारत में जिस तरह से तापमान में वृृध्दि हो रही है वो कई मायनों में चिंता बढ़ा रही है। जानकारों का अनुमान है कि देश में करीब 80 प्रतिशत लोग ज्यादा गर्मी महसूस करते है। जिसके कारण उनमें काम करने की क्षमता भी कम हो जाती है। मैकिन्से ग्लोबल इंस्टीटयूट की एक रिपोर्ट ने चेतावनी देते हुए कहा है कि अगर ऐसा ही रहा तो भारतमें 2030 तक जीडीपी यानी सकल घरेलू उत्पाद में सालाना ढाई से साढ़े चार प्रतिशत की कमी हो सकती है।
इसलिए तपती है दिल्ली
खासतौर से दिल्ली की बात करें तो हीटवेव को लेकर हुए अध्ययन से पता चलता है कि यहां का रहन सहन और जीवन शैली के कारण भी तापमान में वृृध्दि हुई है।अध्ययनकर्ताओं’का कहना है कि घनी बस्तियों में रह रही आबादी,उच्चताप सूचकांक वाले क्षेत्रों में भीड़भाड़,पानी,बिजली और स्वच्छता में कमी के साथ साथ स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच में कमी और घरों में बायोमास,मिटृी का तेल और कोयला जैसे संसाधनों से बनाया जाने वाला खाना भी दिक्कतें बढ़ा रहा है। यदि मैदानी इलाकों की बात करें तो यहां न्यूनतम 40 डिग्री सेल्सियस तापमान रहता है। इसी तरह तटीय इलाकों में 37 और पहाड़ी क्षेत्रों में 30 डिग्री सेल्सियस न्यूनतम तापमान रहता है। जो कि सामान्य से 4.5 डिग्री सेल्सियस अधिक का पैमाना है।