किस्सा अप्रैल 1999 का है। ये वो सन् था जब विश्व में भारत के लोकतंत्र की मिसाल और मजबूत होने वाली थी। विश्व में लोकतंत्र की एक नई इबारत लिखी जाने वाली थी।
अप्रैल 1999 जब मौजूदा अटल बिहारी वाजपेयी सरकार से AIDMK ने समर्थन वापस ले लिया और सरकार अल्पमत में आ गई। सरकार के पास 30 सासंदो की कमी हो गई। उस वक्त सरकार बचाने और गिराने दोनों की कवायदें राजनैतिक गलियारों में जोर पकड़ने लगी। छोटे छोटे दलों और छोटी छोटी पार्टियों को एप्रोच किया जाने लगा। पांच सांसदो वाली मायावती की पार्टी को भी दोनों ही दलों ने अप्रोच किया।
16 अप्रैल का दिन होगा। जब पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजयेपी को बसपा सुप्रीमों माने मायावती ने उनको भरोसा दिलाया कि सब ठीक होगा। बसपा के पास उस वक्त पांच सांसद। वही अटल बिहारी वाजपेयी कैबिनैट में उस व्क्त के हैवीवेट मंत्रियों लालकृष्ण आडवाणी और प्रमोद महाजन ने मायावती से समर्थन देने के बारे में बात की थी। सूत्र बताते है कि उस वक्त आडवाणी और प्रमोद महाजन ने मायावती से कहा कि अगर वो हमारी सरकार को समर्थन करती हैं तो उनको शाम तक उत्तरप्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है। वहीं मायावती की पार्टी के वरिष्ठ नेता और सांसद अकबर अहमद और आरिफ मोहम्मद ने समझाया कि बीजेपी के साथ जाना ठीक नहीं होगा लेकिन क्योंकि भाजपा के साथ उत्तरप्रदेश मे सरकार बनाकर हम पहले ही अपने अल्पसंख्य वोटरों नाराज कर चुकें है। ऐसे में हमारे सामने सपा की भी चुनौती है अगर हमने फिर बीजेपी का साथ दिया तो सरकार बच सकती है और हमारे वोटर हाथ से जा सकते है। सूत्र बताते है कि बीजेपी ने मायावती को उत्तरप्रदेश के सीएम बनने का ऑफर किया था। वहीं विरोधी दल के नेता शरद पंवार भी मायावती से मिले और उनको नंबर गेम समझाकर कहा कि अगर आप बीजेपी का साथ देंगी तो सरकार बच सकती है। मायावती ने शरद पंवार की बातें भी सुनी। इसके बाद 17 अप्रैल के दिन जब वोटिंग के जरिए अटल बिहारी वाजपेयी सरकार को विश्वास मत हासिल करना था। 144 खंबो की संसद भवन में सभी ओर एक ही सवाल गूंज रहा था कि क्या अटल बिहारी वाजपेयी बहुमत साबित कर सकेंग।
विश्वास मत को लेकर हुई वोटिंग
जीएम सी बालयोगी ने संसद की कारवाई शुरू की ऐलान हुआ कि विश्वास मत के लिए वोटिग होगी। फिर वो वक्त आया कि वोटिंग शुरू हुई। बीएसपी के सांसद आऱिफ मोहम्मद वोट देने पंहुचे बताया जाता है कि मायावती ने पीछे से जोर से निर्देश दिए कि आरिफ लाल बटन। देखते देखते स्कोर बोर्ड पर नंबर दिखने लगे। अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के पक्ष में 269 वोट पड़े और विपक्ष में 270 मतलब साफ था कि सरकार बहुमत साबित नहीं कर पाई वो भी एक नंबर से। एक वोट से अटल बिहारी वायपेयी की तेरह महीने की सरकार गिर गई। स्पीकर ने सकार के बहुमत खोने का हाउस में विधिवत एनाउंस किया और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी सहित बीजेपी के नेता मायूस होकर बाहर जाने लगे सभी दल के सांसद एक एक कर अपने अपने पार्टी कक्ष में लौटने लगे। उस समय सभी के दिमाग में एक ही सवाल था कि आखिर वो एक वोट किसका था। तीन नाम थे जिनके वोटो पर कयास थे. एक नाम आरिफ मोहम्मद का जिसे मायावती ने बटन दबाने के ठीक पहले निर्देश दिए। दूसरा नाम गिरधर गोमांग का जो कांग्रेस पार्टी से थे जो ओडिशा मुख्यमंत्री बन गए थे लेकिन उस वक्त तक पार्टी के सांसद थे, उस समय कांग्रेस का व्हिप था और स्पीकर ने उन्हें स्वविवेक से वोट देने का अधिकार दिया था। इसलिए माना जाता है कि उन्होंने पार्टी व्हिप के हिसाब से अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में वोट किया और तीसरा नाम जिसे लेकर सभी के मन में सवाल था वो था सैफुद्दीन सोज का। सैफुद्दीन सो उस वक्त नेशनल कांफ्रेस के सांसद थे और सूत्र बतातें है कि उन्होंने पार्टी के नेता फारूख अबदुल्ला से पार्टिगत कारणों से नाराज होकर क्रास वोटिंग की थी।
बहराहल भारतीय संसद के इतिहास में इससे पहले इस तरह का कोई वाकया नहीं हुआ. उसके बाद सरकारों के खिलाफ कभी इस तरह से अविश्वास प्रस्ताव नहीं आए और अगर आए भी तो इस तरह से वोटिंग की नौबत नहीं हुई। हिंदुस्तान ही नहीं शायद विश्व के इतिहास में कोई सरकार एक वोट से इस तरह गिरी।
प्रकाश कुमार पांडेय