राजस्थान की दो बार मुख्यमंत्री रह चुकीं वसुंधरा राजे सिंधिया को राजनीति विरासत में मिली है। चुनावी राजनीति में उन्हें गुर्जर और जाट वर्ग का खासा समर्थन मिलता रहा है। ग्वालियर सिंधिया राजघराने से ताल्लुक रखने वालीं वसुंधरा राज 2003 में राजस्थान की महिला मुख्यमंत्री बनी थीं।
- कायम है मरुभूमि में वसुंधरा राजे का दबदबा
- दो बार राजस्थान की मुख्यमंत्री रह चुकीं हैं वसुंधरा राजे
- वसुंधरा राजे को आती है हर वर्ग को साधने की कला
- मप्र के ग्वालियर राजघराने की बेटी
- राजस्थान के जाट राजघराने की बहू
- राजपूत, जाट और गुर्जर वर्ग देता है राजे का साथ
- वसुंधरा राजे को राजस्थान की जनता कहते हैं महारानी
दरअसल राजस्थान एक ऐसा प्रदेश जहां की सियासत तीन मुख्य जातियों के इर्दगिर्द घुमती है। वसुंधरा राजे मध्य प्रदेश के ग्वालियर राजघराने से हैं। ऐसे में वह एक वर्ग से कहती हैं मैं राजपूत की बेटी हूं। उनकी शादी राजस्थान के एक जाट राजघराने में हुई, ऐसे में वह कहती हैं मैं जाटों की बहू हूं। इतना ही नहीं उनके बेटे दुष्यंत सिंह का विवाह गुर्जर घराने में हुआ हैं,इसलिए वे कहती हैं मैं गुर्जरों की समधन हूं। हर वर्ग को साधने की उनकी यह कला ही उन्हें सबसे अलग करती है। शायद यही वजह है कि राजस्थान का उच्चवर्ग चुनावों में उनके साथ खड़ा नजर आता है।
मध्यप्रदेश में जहां ज्योतिरादित्य सिंधिया पूरे प्रदेश में घूम-घूमकर कहते हैं कि वे महाराजा नहीं बल्कि आम इंसान है, जनता के सेवक हैं। वहीं वसुंधरा राजे को पूरा राजस्थान महारानी कहता है। वे इसे बखूबी स्वीकार भी करती हैं। तेवर ऐसा है कि चाहे लोकसभा चुनाव 2014 हो या 2018 के विधानसभा चुनाव में टिकट वितरण से पहले इस तरह की खबरें आती रहीं हैं कि दिल्ली का नेतृत्व महारानी के आगे फिर अपनी दाल नहीं गला पाया।
मां से मिली विरासत को बढ़ाया आगे
वसुंधरा राजे की पहली पहचान उनकी मां विजया राजे सिंधिया से है। राजमाजा विजया राजे सिंधिया भारतीय जनसंघ की संस्थापक सदस्यों में से एक थीं। ऐसे में मां से मिली विरासत को वसुंधरा राजे ने बखूबी आगे बढ़ाया। सबको साधते हुए उनका सियासी सफर अब भी जारी है। इस बार भी वे राजस्थान विधानसभा चुनाव में अहम भूमिका निभाने की तैयारी में हैं।
बता दें बचपन वे उन्हें सामाजिक कार्य पसंद थे। लेकिन बाद में वसुंधरा राजे बीजेपी से जुड़ गईं और साल 1984 में पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में शामिल हुईं। वसुंधरा ने अपना पहला चुनाव मध्य प्रदेश के भिंड लोकसभा सीट से लड़ा था। हालांकि उन्हें इस चुनाव में हार मिली, लेकिन पहले चुनाव में हार के बाद भी वसुंधरा घर नहीं बैठीं एक तरफ पति से अलगाव और दूसरी तरफ राजनीति में संघर्ष करते हुए वे राजस्थान की राजनीति में उतरीं और 1985 में धौलपुर विधानसभा सीट से चुनाव जीता। इस पहली जीत से उनका राजनैतिक ग्राफ जो बढ़ा। साल 1987 में वसुंधरा राजस्थान बीजेपी की उपाध्यक्ष बनीं, तो साल 1998-1999 में अटल बिहारी वाजपेयी मंत्रिमंडल में विदेश राज्यमंत्री रहीं। वे पहली बार 8 दिसम्बर 2003 से 11 दिसम्बर 2008 तक और दूसरी बार 13 दिसम्बर 2013 से 16 दिसम्बर 2018 तक राज्य की मुख्यमंत्री रहीं।
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